14 दिसंबर, 2021 (मंगलवार)
इस व्रत मात्र को करने से ही आपके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उपवास करने वाले को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। जी हाँ मित्रों, हम बात कर रहे है मोक्षदा एकादशी व्रत के बारे में जो कि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस एकादशी को मोह का नाश करने वाली एकादशी भी कहा जाता है और यह एकादशी भी भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है।
हमारे शास्त्रों के अनुसार जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध में अर्जुन को ज्ञान दिया था, उस समय मोक्षदा एकादशी का समय ही चल रहा था। इसलिए इसे गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इस दिन व्रत रखने से मोक्ष प्राप्ति के साथ अनंत गुना लाभ की प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है और गीता के 18 अध्यायों की पूजा की जाती है।
मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि का प्रारम्भ - 13 दिसम्बर, सोमवार को रात 9 बजकर 35 मिनट से।
एकादशी तिथि समाप्त - 14 दिसम्बर, मंगलवार को रात 11 बजकर 38 मिनट पर।
पारणा का शुभ समय - 15 दिसम्बर, बुधवार सुबह 7 बजकर 55 मिनट से 9 बजकर 57 मिनट तक।
तो मित्रों ये था मोक्षदा एकादशी से जुड़े शुभ मुहूर्त जिसमें आप व्रत का पारणा अगले दिन यानि कि 15 दिसंबर, को सुबह शुभ मुहूर्त में कर सकते है। आइए अब जानते है मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि के बारे में।
पूजा विधि -
इस दिन प्रातःकाल में उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजन के लिए एक चौकी पर विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले जल, अक्षत, फूल अर्पित कर हल्दी का तिलक करें। भगवान को धूप, दीप,नैवेद्य अर्पित कर मोक्षदा एकादशी व्रत कथा का पठन या श्रवण करें। पूजन के अंत में आरती करें। उसके बाद प्रसाद ग्रहण करके दिन भर यथाशक्ति व्रत रखें और व्रत का पारणा अगले दिन शुभ मुहूर्त में करें। इसी के साथ इस एकादशी को विशेष रूप से कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते है कि इस दिन किन चीजों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
इस दिन किसी भी प्रकार से तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। जो लोग एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें दशमी तिथि को सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लेना चाहिए ताकि अगले दिन आपके पेट में अन्न का अंश न रहे। इसी के साथ जो लोग एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें भी इस दिन खासतौर पर चावलों का सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी व्रत को कभी हरिवासर समाप्त होने से पहले पारण नहीं करना चाहिए। द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करना पाप के समान माना जाता है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो इस स्थिति में सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है। द्वादशी तिथि पर प्रातः पूजन व ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात ही व्रत का पारण करना चाहिए।
इसी के साथ आज के दिन इन चीजों का विशेष तौर से ध्यान रखें जो आपको भूलकर भी नहीं करनी चाहिए। आज के दिन पेड़ पौधो की फूल पत्तियां ना तोड़े और मांस मंदिरा, लहुसन - प्याज जैसे तामसिक भोजन से दूर रहने के साथ किसी का दिया हुआ भोजन भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। आज के दिन किसी भी महिला का अपमान ना करें और ना ही किसी की बुराई करें।
आगे देखना ना भूलें मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा।
मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा
14 दिसंबर, 2021 (मंगलवार)
क्या है मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा और क्यों इसके सुनने मात्र से ही आपके मोह और मोक्ष का नाश हो जाता है। तो आइए जानते है कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कौनसी कथा सुनाई।
भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते है कि प्राचीनकाल की बात है एक गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा रहता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे च्ति में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
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