G-B7QRPMNW6J धनु संक्रांति16 दिसंबर, 2021 गुरूवार को कारण शुभ अशुभ कार्य, पौराणिक कथा, चक जानकारियां
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धनु संक्रांति16 दिसंबर, 2021 गुरूवार को कारण शुभ अशुभ कार्य, पौराणिक कथा, चक जानकारियां

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धनु संक्रांति

16 दिसंबर, 2021 गुरूवार

जब सूर्य ग्रह किसी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो ये घटना संक्रांति कहलाती है। संक्रांति 12 होती है जो हर एक राशि की अलग-अलग होती है। जिनमें से मकर संक्रांति जो कि जनवरी माह में आती है, बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।

धनु संक्रांति का समय

16 दिसंबर 2021 से प्रातः 3 बजकर 28 मिनट से
14 जनवरी 2022 दोपहर 2 बजकर 29 मिनट तक

इस बार 16 दिसंबर को सूर्य ग्रह वृश्चिक राशि से निकलकर अपनी मित्र राशि धनु में प्रवेश करेगा, इस घटना को धनु संक्रांति कहा जाता है। आइए अब जानते है संक्रांति का महत्व क्या है।

संक्रांति का महत्व

अगर देखा जाये तो संक्रांति का सम्बन्ध कृषि, प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी है। सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर जाना जाता है, इसीलिए संक्रांति के दिन इनकी पूजा की जाती है। शास्त्रों में सूर्य देवता को समस्त भौतिक और अभौतिक तत्वों की आत्मा माना गया है। ऋतु परिवर्तन और जलवायु में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव इनकी स्थिति के अनुसार होता है। न केवल ऋतु में बदलाव बल्कि धरती जो अन्न पैदा करती है और जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है, यह सब सूर्य के कारण ही संपन्न हो पाता है।

संक्रांति के दिन पूजा-अर्चना करने के बाद गुड़ और तिल का प्रसाद बांटा जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, संक्राति एक शुभ दिन होता है। पूर्णिमा, एकादशी आदि जैसे शुभ दिनों की तरह ही संक्रांति के दिन की भी बहुत मान्यता है। इसीलिए इस दिन कुछ लोग पूजा-पाठ आदि भी करते हैं। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन किया गया है। जो भी व्यक्ति (नारी या पुरुष) संक्रांति पर व्रत रखना चाहता हो उसे एक दिन पहले केवल एक बार भोजन करना चाहिए। जिस दिन संक्रांति हो उस दिन प्रातः काल उठकर अपने दाँतो कोअच्छे से साफ़ करने के बाद स्नान करें। उपासक अपने स्न्नान के पानी में तिल अवश्य मिला लें। इस दिन दान-धर्म की बहुत मान्यता है इसीलिए स्नान के बाद ब्राह्मण को अनाज, फल आदि दान करना चाहिए। इसके बाद उसे बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति दूसरों को भी भोजन देना चाहिए।

संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है- जो व्यक्ति संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन रहता है।

इसी के साथ इस धनु संक्रांति के समयान्तराल में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह आदि नहीं किए जाते है। 16 दिसंबर से 14 जनवरी के इस समय को खरमास के नाम से जाना जाता है। आइए जानते है कि खरमास क्या होता है।

खरमास में क्यों नहीं करते शुभ कार्य

धार्मिक मान्यता के अनुसार, खरमास के दौरान सूर्य की चाल धीमी होती है इसलिए इस दौरान किया गया कोई भी कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करता है। इस दौरान हिंदू धर्म में बताए गए संस्कार, जैसे मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, नामकरण, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नए व्यापार का आरंभ, वधू प्रवेश, सगाई, विवाह आदि कोई भी कार्य नहीं किया जाता है। मान्यता है कि सूर्य देव जब भी देवगुरु बृहस्पति की राशि पर भ्रमण करते हैं, तो मनुष्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता ऐसे में उनका सूर्य कमजोर हो जाता है और उन्हें मलीन माना जाता है। सूर्य के मलीन होने के कारण इस माह को मलमास भी कहा जाता है।

धनु संक्रांति से चमक सकता है इन राशियों का भाग्य

1. मेष राशि पर धनु संक्रांति का असर
मेष राशि वालों के लिए सूर्य 16 दिसंबर को राशि से नौवीं राशि में संचार कर रहे हैं यानि राशि अनुसार सूर्य आपके भाग्य स्थान में होंगे जिससे आपको भाग्य का सहयोग मिल सकता है। जो काम काफी समय से अटके हुए थे वो पूरे हो सकते हैं। सूर्य के गोचर से धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी। इस दौरान धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा भी आप ले सकते हैं। पारिवारिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आएंगे हालांकि पिता के साथ इस दौरान मतभेद हो सकता है। सूर्य की सप्तम दृष्टि आपके तृतीय भाव पर होगी इसलिए आपके साहस और पराक्रम में भी वृद्धि हो सकती है, इसी के साथ आप कार्यक्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने समर्थ हो सकते है।

2. सिंह राशि पर धनु संक्रांति का असर
इस बार धनु संक्रांति का विशेष असर सिंह राशि पर भी पड़ने वाला है। सूर्य ग्रह सिंह राशि के जातकों के लिए पांचवी राशि से भ्रमण करेगा। इस राशि से पांचवां स्थान सक्रिय होने की वजह से छात्र-छात्राओं को शिक्षा के प्रति सतर्क रहना पड़ सकता है। इसी के साथ उच्च शिक्षा से जुड़े हुए छात्रों को अनुकूल परिणाम की प्राप्ति हो सकती है। इस राशि के लोगों को संतान पक्ष की तरफ से खुशी प्राप्त हो सकती है और आर्थिक पक्ष के मजबूत होने की संभावना है। इसी के बीच बीते समय में किए गए निवेश में लाभ मिलने की आशंका है।

3. धनु राशि पर धनु संक्रांति का असर
सूर्य का धनु राशि में गोचर आप में ऊर्जा का संचार कर रहा है। जो काम अभी तक अटके हुए थे वह भी इस दौरान पूरे हो सकते हैं। निर्णय लेने की आपकी क्षमता अच्छी होगी जिससे कार्यक्षेत्र में भी आपको अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। आपकी वाणी और व्यक्तित्व में आकर्षण बढ़ेगा जिससे सामाजिक स्तर पर आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इस राशि के जो जातक मीडिया, राजनीति, शिक्षा के क्षेत्रों में काम करते हैं उनके लिए सूर्य का गोचर अच्छे बदलाव लेकर आ सकता है। इस अवधि में अटके हुए सरकारी कार्य पूरे होने की संभावना बन रही है।

** 4.कुंभ राशि पर धनु संक्रांति का असर**
सूर्य का धनु राशि में संचार आपकी राशि से एकादश भाव में होगा इसलिए विभिन्न क्षेत्रों से इस राशि के लोगों को धन लाभ मिल सकता है। जो लोग सरकारी क्षेत्रों में कार्य करते हैं और जॉब में ट्रांसफर की बात चल रही है तो आपके लिए अच्छे बदलाव का योग दिख रहा है। इस समय निवेश भी आपके लिए लाभप्रद होगा। पारिवारिक जीवन में बड़े-भाई बहनों के साथ आपके संबंधों में सुधार हो सकता है और उनके जरिए लाभ का योग भी बनेगा। बीते समय में की गई मेहनत का सकारात्मक परिणाम भी मिलेगा।

5. मीन राशि पर धनु संक्रांति का असर
मीन राशि वालों के कर्म भाव में सूर्य देव गोचर करेंगे, इस भाव में सूर्य को दिशा बल प्राप्त होता है ऐसे में सूर्य के गोचर से आपको सुखद परिणाम मिलने की पूरी संभावना है। खासकर करियर के लिहाज से सूर्य का गोचर अनुकूल रहेगा। इस दौरान मीन राशि के उन लोगों को रोजगार मिल सकता है जो काफी समय से रोजगार की तलाश में जुटे हुए हैं। वहीं जो लोग विदेशों में जाकर जॉब करना चाहते हैं उनकी ख्वाहिश भी पूरी हो सकती है। आपके पिता नौकरी पेशा हैं तो उन्हें भी लाभ मिल सकता है। सामाजिक स्तर पर आप अपनी स्पष्ट वाणी से प्रभाव जमा सकते हैं।

खरमास की पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते है। सूर्यदेव को कहीं भी रुकने की इजाजत नहीं है, लेकिन रथ में जुड़े घोड़े लगातार चलने और विश्राम न मिलने के कारण थक जाते हैं। घोड़ों की ऐसी हालत देखकर सूर्यदेव का मन भी एक बार द्रवित हो गया और घोड़ों को तालाब के किनारे ले गए, लेकिन सूर्यदेव को तभी यह भी आभास हुआ कि अगर रथ रुका तो अनर्थ हो जाएगा। जब वे तालाब के पास पहुंचे तो देखा कि वहां दो खर मौजूद हैं। भगवान सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी पीने और विश्राम देने के लिए वहां छोड़ दिया और खर यानि गधों को रथ में जोड़ लिया। गधों को सूर्यदेव का रथ खींचने में काफी मुश्किल हो रही थी। इस दौरान रथ की गति हल्की हो गई। जैसे-तैसे सूर्यदेव इस दौरान एक मास का चक्र पूरा करते हैं। इस बीच घोड़े भी विश्राम कर चुके होते हैं। इसके बाद सूर्य का रथ फिर से अपनी गति में लौट आता है। इस तरह हर साल यह क्रम चलता रहता है और इसीलिए हर साल खरमास लगता है।


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