G-B7QRPMNW6J त्रिदेवों का एकमात्र स्वरूप - दत्तात्रेय
You may get the most recent information and updates about Numerology, Vastu Shastra, Astrology, and the Dharmik Puja on this website. **** ' सृजन और प्रलय ' दोनों ही शिक्षक की गोद में खेलते है' - चाणक्य - 9837376839

त्रिदेवों का एकमात्र स्वरूप - दत्तात्रेय

AboutAstrologer

त्रिदेवों का एकमात्र स्वरूप - दत्तात्रेय

18 दिसंबर, 2021 (शनिवार)

मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाती है। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के स्वरूप है। इसे दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो दत्तात्रेय जयंती पूरे भारत में मनाई जाती है। लेकिन मुख्य रूप से कर्नाटक,महराष्ट्र,आंध्र प्रदेश और गुजरात में मनाई जाती है। इस दिन महाराष्ट्र में भव्य मेला भी लगता है। भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरूओं से शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद ही दत्त स श्री मंदिर के इस पर्व-त्योंहार से संबंधित लेख में हम जानेंगे कि कब है दत्तात्रेय जयंती और शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व के साथ जानेंगे इनकी पौराणिक कहानी।

शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 18 दिसंबर, शनिवार सुबह 07:24 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 दिसंबर, रविवार सुबह 10:05 तक

भगवान दत्तात्रेय की पूजा विधि

  1. दत्तात्रेय जयंती के दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
  2. इसके बाद साधक चाहें तो मंदिर में जाकर भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है या फिर अपने घर पर ही भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है।
  3. साधक को दत्तात्रेय की पूजा करने से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ वस्त्र बिछाना चाहिए और भगवना दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
  4. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करके उनकी धूप व दीप से विधिवत पूजा करनी चाहिए।
  5. साधक को इस दिन भगवान के प्रवचन वाली अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता अवश्य पढ़नी चाहिए।

पौराणिक कथा

एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की। तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। इस पर माता संशय में पड़ गई।

उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने देवताओं को उन्हें भोजन कराया।

तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Do you have any doubts? chat with us on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...