माँ अन्नपूर्णा जयंती विशेष
19 दिसंबर, 2021 (रविवार)
मार्गशीर्ष मास दान धर्म का महीना कहलाता है। इस महीने की पूर्णिमा के दिन माँ पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप के अवतरण दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माँ अन्नपूर्णा की आराधना करनी चाहिए, माँ की कृपा से किसी भी घर में कभी भी अन्न की कोई कमी नहीं होती है। अन्नपूर्णा जयंती को अन्न दान की विशेष महिमा है। यदि इस दिन कोई भक्त अन्न दान करता है, तो उसे अगले जन्म में भी धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती है।
जब पृथ्वी पर खाने के लिए कुछ नहीं बचा, तब माँ पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण कर सभी को इस संकट से उबारा। अन्नपूर्णा जयन्ती को मनुष्य के जीवन में अन्न के महत्व को समझाने हेतु मनाया जाता है। इस दिन रसोई की सफाई एवं अन्न के सदुपयोग को प्रचारित करना चाहिए। क्योंकि अन्न के सदुपयोग से व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
अन्नपूर्णा देवी पूजा का महत्व एवम उद्देश्य
अन्नपूर्णा देवी की पूजा में रसौई घर को साफ़ रखा जाता है, इससे सभी को यह सन्देश पहुँचता है कि भोज्य पदार्थों वाले स्थानों को स्वच्छ रखना चाहिये। इसके कारण लोगो में यह संदेश भी पहुँचता है, कि अन्न का अपमान अर्थात उसे व्यर्थ फेकना नहीं चाहिए। इस दिन के कारण मनुष्य को अन्न के महत्व का ज्ञान होता है, जिससे उनमें आदर का भाव आता है, इसी कारण मनुष्य में अभिमान नहीं आता।
अन्नपूर्णा जयंती पूजा विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा माता की पूजा की जाती है, इस दिन घर में रसौई घर को धो कर स्वच्छ किया जाता हैं। घर के चूल्हे को धोकर उसकी पूजा की जाती हैं। घर की रसौई घर को गुलाब जल, गंगा जल से शुद्ध किया जाता हैं। इस दिन पार्वती मैया एवम् शिवजी की पूजा की जाती हैं।
पौराणिक कथा
एक बार की बात है जब पृथ्वी लोक पर अन्न और जल समाप्त होने लगा तो जनमानस में हाहाकार मच गया। ऋषियों और मुनियों ने भगवान् ब्रह्मा तथा भगवान् विष्णु को इस संकट से अवगत कराया। तत्पश्चात् ब्रह्मा जी और विष्णु जी समस्त ऋषि और मुनियों के साथ कैलाश पहुँचे। ब्रह्मा जी ने भगवान् शिव से कहा, “प्रभु, पृथ्वी पर अन्न और जल की कमी हो गयी है। आप ही कुछ कीजिये और इस संकट से सबकी रक्षा कीजिये।” भगवान् शिव ने देवताओं को आश्वसन दिया कि सब कुछ यथावत हो जायेगा, बस वे शांति बनाये रखे। तत्पश्चात् भगवान् शिव ने पृथ्वी का भ्रमण किया। उसके उपरान्त माता पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप ग्रहण किया।
भगवान् शिव ने भिक्षु का रूप ग्रहण करके माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ले पृथ्वीवासियों में अन्न-जल वितरित किया। इस प्रकार सभी प्राणियों को अन्न और जल की प्राप्ति हुई। सभी हर्ष के साथ माता अन्नपूर्णा की जय-जयकार करने लगे। तभी से प्रति वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है और माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है। अन्नपूर्णा जयंती अन्न के महत्व का ज्ञान कराती है, और यह संदेश देती है कि कभी भी अन्न का निरादर नहीं करना चाहिए और न ही उसे व्यर्थ करना चाहिए। जितनी जरूरत हो उतना ही भोजन पकाएँ ताकि अन्न बर्बाद ना हो। इस दिन लोग अन्न दान करते हैं और जगह-जगह भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। अन्नदाता माने जाने वाले किसान भी अच्छी फ़सल के लिए अन्नपूर्णा जयन्ती पर अन्नपूर्णा देवी की पूजा करते हैं।
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