G-B7QRPMNW6J 🚩तुलसी विवाह का पूजन और पौराणिक कथा🚩tulsi
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🚩तुलसी विवाह का पूजन और पौराणिक कथा🚩tulsi

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🚩इस विधि से करें तुलसी विवाह पूजन🚩
💥👉15 नवंबर, 2021 (सोमवार)
कार्तिक माह में भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप और मां तुलसी के विवाह का विधान है। देवोत्थान एकादशी के दिन चतुर्मास की समाप्ति होती है। कई लोग देवोत्थान एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह करते हैं तो वहीं कई जगहों पर इसके अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। ऐसे में एकादशी और द्वादशी दोनों तिथियों का समय तुलसी विवाह के लिए तय किया गया है।

💥👉कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। तुलसी विवाह के लिए एक चौकी पर आसन बिछा कर तुलसी जी को और शालीग्राम की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। चौकी के चारों और गन्ने का मंडप सजाएं और कलश की स्थापना करें। सबसे पहले कलश और गौरी गणेश का पूजन करना चाहिए। इसके बाद माता तुलसी और भगवान शालीग्राम को धूप, दीप, वस्त्र, माला, फूल अर्पित करें। तुलसी जी को श्रृगांर के सामान और लाल चुनरी चढ़ाई जाती है। पूजा में मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरूद और अन्य मौसमी फल भी चढाएं। ऐसा करने से सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इसके बाद तुलसी मंगाष्टक का पाठ करें। हाथ में आसन सहित शालीग्राम जी को लेकर तुलसी जी के सात फेरे लेने चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु और तुलसी जी की आरती का पाठ करना चाहिए। पूजन के बाद प्रसाद का वितरण करें।

.🚩तुलसी विवाह की पौराणिक कथा🚩

💥👉15, नवम्बर, 2021 (सोमवार)

💥👉माता तुलसी का असली नाम वृंदा था। यूं तो उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था लेकिन वह श्री विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थीं। बड़े होने के बाद वृंदा का विवाह जलंधर नामक असुर से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त तो थी ही साथ ही वह पतिव्रता स्त्री भी थीं। उनकी भक्ति और पूजा के कारण उनका पति जलंधर अजेय होता गया और इसके चलते उसे अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया। घमंड मे आकर उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को बंधी बना लिया।

👉इससे क्रोधित होकर सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना की। परंतु जलंधर का अंत करने के लिए सबसे पहले उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग करना अनिवार्य था।
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इसके परिणामस्वरूप जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। लेकिन जब वृंदा को श्रीहरि के छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि वह तो आजीवन उनकी आराधना करती रही फिर उन्होंने ऐसा क्यू किया? श्रीहरि इस प्रश्न का उत्तर देने मे असमर्थ रहे। वृंदा ने अपने पति की मृत्यु के शोक मे भगवान विष्णु को यह श्राप दे डाला कि उन्होंने वृंदा के साथ पाषाण की तरह व्यवहार किया, इसलिए वह पत्थर के बन जाएंगे। यह कहते ही भगवान श्री हरि पत्थर समान हो गए और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। यह पत्थर, भगवान का शालिग्राम रूप कहलाया।
💥👉। यह पत्थर, भगवान का शालिग्राम रूप कहलाया।

तब देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना श्राप वापस ले लें। भगवान विष्णु भी वृंदा के साथ हुए छल से लज्जित थे। अंत में वृंदा ने भगवान विष्णु को क्षमा कर दिया और जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा की राख से एक पौधा निकला जिसे श्रीहरि ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना वह किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे। उनके शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा और कालांतर लोग इस तिथि को तुलसी विवाह किया करेंगे। जो भी इस पूजा को करेगा उसे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।

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