250 शिव मंदिर हैं वहाँ जिस जगह पर जलती थीं कभी चिताएं जानिए दिलचस्प कहानी
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250 शिव मंदिर हैं वहाँ जिस जगह पर जलती थीं कभी चिताएं जानिए दिलचस्प कहानी |
250 शिव मंदिर हैं वहाँ जिस जगह पर जलती थीं कभी चिताएं जानिए दिलचस्प कहानी
वडोदरा के सयाजीबाग में विश्वमित्री नदी के श्मशान भूमि पर एक समय में हजारों की संख्या में शिव मंदिर थे. सवाल है कि आखिर क्यों लोगों ने ऐसी जगह पर इतने सारे मंदिरों की स्थापना की जहां, चिताएं जलाई जाती थीं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इतिहास के पन्ने पलटने पड़ेंगे.
250 शिव मंदिर हैं वहाँ जिस जगह पर जलती थीं कभी चिताएं जानिए दिलचस्प कहानी
कामनाथ मंदिर गुजरात में वडोदरा के सयाजीबाग में स्थित है. विश्वामित्री नदी के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों का आस्था का केंद्र है. लेकिन अधिकतर लोग शायद ही जानते हैं कि जिस भूमि पर यह भव्य मंदिर है, वहां पर आस-पास 250 से अधिक छोड़े-बड़े शिव मंदिर हैं. इतिहासकारों के मुताबिक, गायकवाड़ी काल से पहले सदियों पहले यहां पर एक बहुत बड़ा श्मशान था. 1990 के दशक के अंत तक नदी तट के पास करीब 3,500 छोटे-बड़े शिव मंदिर थे.
इतिहासकार और आर्ट क्यूरेटर चंद्रशेखर पाटिल का कहना है, ‘इस जगह को मंदिरों की भूमि कहा जाता है, गुजरात में शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां इतने सारे मंदिर एक-दूसरे के करीब बने हों. कामनाथ परिसर के अंदर हम नंदी मूर्तियों के साथ विभिन्न आकारों के शिव मंदिरों को देख सकते हैं.’
एक जगह, इतने सारे मंदिर क्यों बनाए गए?
सबसे बड़ा सवाल है कि जहां चिताएं जलाई जाती थीं, उस भूमि पर आखिर इतने सारे मंदिर क्यों बनाए गए? इस सवाल पर चंद्रशेखर पाटिल कहते हैं, ‘इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है. दरअसल, गायकवाड़ी युग के दौरान, तत्कालीन बड़ौदा राज्य के निवासी विश्वामित्री के तट पर, इस विशाल भूमि पर अपने परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार किया करते थे. उस समय परंपरा के अनुसार, अगर परिवार के किसी पुरुष सदस्य का दाह संस्कार किया जाता था, तो उस जगह पर एक छोटा-सा शिव मंदिर बना दिया जाता. इसी तरह महिला सदस्य के लिए ‘तुलसी कुंडों’ की स्थापना की गई.
कई मंदिर हो चुके हैं खंडहर
चंद्रशेखर का कहना है, ‘श्मशान भूमि पर मंदिरों का निर्माण वास्तव में एक दुर्लभ घटना है. पूर्वजों की याद में अगली पीढ़ी मंदिर का निर्माण करती थी और वहां पूजा अर्चना करती थी. ‘तुलसी कुंड’ पर लगी पट्टिकाएं आज भी इतिहास की गवाही दे रही है. हालांकि नदी घाटों के आसपास इन शिव मंदिरों में से कई अब खंडहर हो चुके हैं. हाल ही में स्थानीय लोगों ने कुछ तुलसी कुंडों को नवीनीकृत किया है. साथ ही नदी के किनारों की साफ-सफाई भी की है.’
अतिक्रमण बना अभिशाप
बताया जाता है कि 1960 के दशक में बाहर से आए लोगों ने यहां बसना शुरू कर दिया और इन मंदिरों के चारों ओर घर और दुकानें बना लीं. 1970 के बाद शहर में कई शवदाह गृह बनने के बाद लोगों ने इस स्थान पर दाह-संस्कार करना बंद कर दिया था. इस क्षेत्र में उस समय 1,600 से अधिक मंदिर और दर्जनों तुलसी कुंड थे, मगर अतिमक्रमण की वजह से धीरे-धीरे गायब हो गए.
एक स्थानीय नागरिक लाल बहादुर गुरुम याद करते हुए कहते हैं, ‘मेरे पूर्वज कई दशक पहले यहां रहने आए थे और मैं भी यहां पैदा हुआ था. हम इस भूमि के इतिहास से अवगत हैं और हमारे आसपास इतने सारे मंदिर क्यों हैं. हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि इन मंदिरों की पवित्रता का उल्लंघन न हो.’
रामनाथ-कामनाथ मंदिरों का शिवलिंग हजारों साल पुराना है, जबकि मंदिर की संरचनाएं लगभग 250 साल पहले विश्वामित्री के तट पर बनी थीं. इन दोनों मंदिरों की वर्तमान संरचनाओं में राजस्थानी कलाकारों द्वारा बनाई गई कुछ दुर्लभ दीवार पेंटिंग हैं.
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