G-B7QRPMNW6J पूजा- पाठ में नारियल का फल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है
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पूजा- पाठ में नारियल का फल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है

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पूजा- पाठ में नारियल का फल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है

पूजा- पाठ में नारियल का फल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है
पूजा- पाठ में नारियल का फल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है
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हिन्दू धर्म में हर दिन कोई न कोई व्रत या त्योहार होता है. ऐसे में पूजा-पाठ में प्रयोग होने वाली चीजों का अपना खास महत्व होता है. फिर चाहे वो रोली हो या कलावा. नारियल भी उन्हीं चीजों में से एक है जिसे हरेक पूजा-पाठ में प्रयोग किया जाता है. हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने या किसी नवीन कार्य को शुरू करने से पूर्व नारियल फोड़ने की परंपरा है. शादी-विवाह हो, त्यौहार हो, पूजा हो, कोई नया कार्य आरंभ करना हो, वाहन खरीदा हो इन सभी कार्यों में नारियल बहुत महत्वपूर्ण होता है

हिन्दू धर्म में नारियल को बहुत शुभ माना जाता है. इसलिए अधिकतर मंदिरों में नारियल फोड़ने या चढ़ाने रिवाज है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिन्दू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं को नारियल चढ़ाया जाता है. कहते हैं, किसी भी कार्य को शुरु करने से पूर्व नारियल फोड़कर भगवान को चढ़ाना शुभ होता है. पूजन की सामग्री में भी नारियल अहम् होता है. कोई भी पूजा बिना नारियल के अधूरी मानी जाती है. मान्यता है कि भगवान को नारियल चढ़ाने से जातक के दुःख-दर्द समाप्त होते हैं और धन की प्राप्ति होती है. प्रसाद के रूप में मिले नारियल को खाने से शरीर की दुर्बलता दूर होती है.

माना जाता है भगवान का वास

नारियल के फल में भगवान का वास माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इस फल में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश रहते हैं। इतना ही नहीं नारियल को  भगवान शिव का प्रिय फल भी माना जाता है और इनकी पूजा करते समय लोग नारियल का फल भी इन्हें जरूर अर्पित करते हैं।

नारियल का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के मुताबकि भगवान विष्णु जी अपने साथ धरती पर तीन चीजे लेकर आए थे। जिनमें से एक मां लक्ष्मी, दूसरा नारियल का वृक्ष और तीसरा कामधेनु था और यही कारण है कि नारियल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ माना जाता है और शास्त्रों में इस वृक्ष को पवित्र वृक्ष का दर्जा दिया गया है। शास्त्रों में नारियल के वृक्ष को श्रीफल कहा गया है और जिसमें  श्री का अर्थ है लक्ष्मी है। शास्त्रों में नारियल का जिक्र करते हुए इसे लक्ष्मी और विष्णु का फल बताया गया है।  नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है जिसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. भगवान शिव को भी नारियल बहुत प्रिय है. नारियल पर बनी तीन आँखों की तुलना शिवजी के त्रिनेत्र से की जाती है. इसलिए नारियल को बहुत शुभ माना जाता है और पूजा-पाठ में प्रयोग किया जाता है.

हिंदू धर्म में नारियल को बेहद ही शुभ माना जाता है और यही कारण है कि पूजा या हवन में नारियल का प्रयोग जरूर किया जाता है। नारियल को श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि भगवान को नारियल चढ़ाने से भगवान हर मनोकामना पूर्ण कर देते हैं। हिंदू शास्त्र में नारियल का वर्णन किया गया है और शास्त्रों के अनुसार जब भगवान विष्णु जी धरती पर आए थे, तो अपने साथ नारियल लेकर आए थे।

पहले क्यों फोड़ा जाता है नारियल

मान्यता है कि एक बार ऋषि विश्वामित्र ने इंद्र से नाराज होकर दूसरे स्वर्ग की रचना करने लगे. लेकिन वह दूसरे स्वर्ग की रचना से असंतुष्ट थे. फिर वे पूरी सृष्टि ही दूसरी बनाने लगे. दूसरी सृष्टि के निर्माण में उन्होंने मानव के रूप में नारियल का निर्माण किया. इसीलिए नारियल के खोल पर बाहर दो आँखें और एक मुख की रचना होती है. एक समय में हिन्दू धर्म के मनुष्य और जानवरों की बलि एक समान बात थी. तभी इस परम्परा को तोड़कर मनुष्य के स्थान पर नारियल चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई. पूजा में नारियल फोड़ने का अर्थ ये होता है की व्यक्ति ने स्वयं को अपने इष्ट देव के चरणों में समर्पित कर दिया और प्रभु के समक्ष उसका कोई अस्तित्व नहीं है. इसलिए पूजा में भगवान के समक्ष नारियल फोड़ा जाता है.

विष्णु अपने साथ लाएं नारियल का पेड़

मान्यता है कि भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतरित होते समय अपने साथ माता लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष और कामधेनु साथ लाए थे. नारियल के पेड़ को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश वास करते हैं. कई पुराणों में नारियल को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है. इसलिए माना जाता है कि जिस घर में नारियल होता है वहां देवी लक्ष्मी का वास होता है.

पूजा में क्यों फोड़ा जाता है नारियल

पूजा में नारियल तोड़ने का अर्थ है कि व्यक्ति ने अपने इष्ट देव को खुद को समर्पित कर दिया इसलिए पूजा में भगवान के सामने नारियल फोड़ा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि विश्वामित्र इंद्र से नाराज हो गए और दूसरा स्वर्ग बनाने की रचना करना लगे. लेकिन वो दूसरे स्वर्ग की रचना से स्तुंष्ट नहीं थे. इसके बाद उन्होंने दूसरी सृष्टि के निर्माण में मानव के रूप में नारियल का प्रयोग किया था. इसलिए उस पर दो आंखें और एक मुख की रचना होती है. पहले के समय में बलि देने का प्रथा बहुत अधिक थी. उस समय में मनुष्य और जानवरों की बलि देना समान बात थी. तभी इस परंपरा को तोड़ने के लिए नारियल चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई.

क्यों फोड़ा जाता है नारियल

भगवान के सामने नारियल को फोड़ना अहंकार का त्याग माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब हम भगवान के सामने इसे फोड़ते हैं तो हम अपने अंहकार का त्याग कर देते हैं। नारियल का बाहरी हिस्सा  घमण्ड का प्रतिक होता है जबकि अंदर वाला हिस्सा पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। मां दुर्गा के समक्ष नारियल को तोड़ना घमंड का त्याग करना होता है। वहीं नारियल के पानी को शुद्ध जल माना जाता है और इसे भगवान की मूर्ति पर चढ़ाने से मूर्ति पवित्र हो जाती है।

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