G-B7QRPMNW6J Manan Karne Yogya Katha Mahabhart ki गीता के 11 वें अध्याय में 33 वे श्लोक में विधि का विधान
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Manan Karne Yogya Katha Mahabhart ki गीता के 11 वें अध्याय में 33 वे श्लोक में विधि का विधान

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Manan Karne Yogya Katha Mahabhart ki
Manan Karne Yogya Katha Mahabhart ki Vidhi ka Vidhan

Manan Karne Yogya Katha विधि का विधान निश्चित है..

Manan Karne Yogya Katha जन्मेजय का वेदव्यास जी से कुतर्क

जन्मेजय अभिमन्यु के पुत्र व राजा परीक्षित के पुत्र थे। एक दिन इन्होंने वेदव्यास जी से कुतर्क किया। जहां आप थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म, द्रोणाचार्य, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे। फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए। और देखते-देखते अपार जन धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता।

अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द थे, फिर भी व्यास जी शांत रहे। उन्होंने कहा, पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतना सामर्थ्य था कि वे युद्ध को रोक सकते थे। जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा। बोला मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए। मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता।

Manan Karne Yogya Katha वेदव्यास जी ने जन्मेजय को उसकी घटनाक्रम सुनाना 

व्यास जी ने कहा पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन, 3 साल बाद तू काले घोड़े पर शिकार करने जाएगा। दक्षिण दिशा में एक समंदर तट पर पहुंचेगा। वहां एक सुंदर स्त्री मिलेगी। तो उसे महलों में लाएगा। उसे विवाह करेगा। उसके कहने पर यज्ञ करेगा उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण आएंगे वहां एक घटना घटित होगी रानी के कहने पर तू ब्राह्मणों को प्राण दंड देगा, इससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा। जिससे तुझे कुष्ठ रोग होगा एवं तेरी मृत्यु का कारण यही बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सके तो रोक ले।

वेदव्यास जी की बात सुनकर उसने शिकार पर जाना छोड़ दिया। परंतु जब होनी का समय आया तो इसे शिकार पर जाने की बलवती इच्छा हुई। इसलिए सोचा काला घोड़ा नहीं लूंगा। पर उस दिन उसे अस्तबल में काला घोड़ा ही मिला। सोचा दक्षिण दिशा में नहीं जाऊंगा परंतु घोड़ा अनियंत्रित होकर दक्षिण दिशा की ओर गया और समुद्र तट पर पहुंचा वहां एक सुंदर स्त्री को देखा उस पर मोहित हुआ। सोचा इसे शादी नहीं करूंगा। परंतु उसे महलों में लाकर उसके प्यार में पढ़ कर उसने विवाह किया। इस स्त्री के पुत्र ना होने पर रानी के कहने से पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ किया गया। उस यज्ञ में युवा ब्राह्मण ही आए रानी ब्राह्मणों को भोजन करा रही थी। तभी हवा चली और रानी के वस्त्र उड़ने लगे। यह देखकर युवा ब्राह्मण हंसने लगे। रानी क्रोधित हुई। रानी के कहने पर इन्हें प्राण दंड की सजा दी गई। फल स्वरुप इससे उसे कोड हुआ, अब यह घबराया , और शीघ्र व्यास जी के पास पहुंचा। उनसे जीवन बचाने की प्रार्थना करने लगा। 

वेदव्यास जी ने कहा एक अंतिम अवसर तेरे प्राण बचाने का और है, मैं तुझे महाभारत का श्रवण कर आऊंगा जिसे तुझे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ सुनना, इसे तेरा कोड मिटता जाएगा। परंतु यदि किसी भी प्रसंग पर तूने अविश्वास किया तो मैं महाभारत का वाचन रोक दूंगा। फिर मैं भी तेरा जीवन नहीं बचा पाऊंगा। याद रखना अब तेरे पास यह अंतिम अवसर है।

जन्मेजय श्रद्धा विश्वास से श्रवण करने लगा। इसमें भीम के बल का वह प्रसंगा आया जिसमें उसने हाथी की सूंड पकड़कर उसे अंतरिक्ष में उछाला वह आज भी अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। जन्मेजय अपने को रोक नहीं पाया वह बोला असंभव ऐसा कैसे हो सकता है।

Manan Karne Yogya Katha वेदव्यास जी ने जन्मेजय को प्रमाण देना :

व्यास जी ने महाभारत का वाचन रोक दिया। व्यास जी ने कहा पुत्र मैंने तुझे कितना समझाया परंतु तो अपना स्वभाव नियंत्रित नहीं कर पाया। क्योंकि यह होनी द्वारा निश्चित था। व्यास जी ने मंत्र शक्ति से आव्हान किया। हाथी पृथ्वी की आकर्षण शक्ति में आकर नीचे गिरे और  व्यास जी ने कहा यह मेरी बात का प्रमाण है।

जितनी मात्रा में जन्मेजय श्रद्धा विश्वास से कथा श्रवण की उतनी मात्रा में  वह उस कुष्ठ रोग से मुक्त हुआ। परंतु एक बिंदु रह गया। और यही उसकी मृत्यु का कारण बना।

हमारे जीवन का नाटक परमात्मा के द्वारा लिखा गया है। होता वही है जो वह चाहता है। इसलिए कहा गया है कर्म हमारे हाथ फल विधि के हाथों में है।

गीता के 11 वें अध्याय के 33 वे श्लोक मैं श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो निमित्त बना है..!!

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