G-B7QRPMNW6J Manan karne yogya Katha or apne prabhu me astha or vishwas
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Manan karne yogya Katha or apne prabhu me astha or vishwas

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Manan karne yogya Katha or apne prabhu me astha or vishwas
Manan karne yogya Katha or apne prabhu me astha or Vishwas 

Manan karne yogya Katha or apne prabhu me astha or Vishwas 


मनन करने योग्य कथा और अपने प्रभु में आस्था और विश्वास 


राम नाम जपते रहो जब तक घटने प्राण कभी तो दिन दयाल के भनक पड़ेगी कान 



*पुत्री का विवाह*


बनारस की गलियों में एक राम जानकी मंदिर है, जिसकी देख रेख मंदिर के पुजारी पंडित दीनदयाल के हाथों थी। पंडितजी भी अपनी पूरी जिंदगी इस राम जानकी मंदिर को समर्पित कर चुके थे।

संपत्ति के नाम पर उनके पास एक छोटा सा मकान और परिवार में उनकी पत्नी कमला और विवाह योग्य बेटी पूजा । 

मन्दिर में जो भी दान आता वही पंडित जी और उनके परिवार के गुजारे का साधन था। बेटी विवाह योग्य जो हो गयी थी और पंडित जी ने हर मुकम्मल कोशिश की जो शायद हर बेटी का पिता करता। पर वही दान दहेज़ पे आकर बात रुक जाती। 

पंडित जी अब निराश हो चुके थे। सारे प्रयास कर के हार चुके थे।
          
एक दिन मंदिर में दोपहर के समय जब भीड़ न के बराबर होती है उसी समय चुपचाप राम सीता की प्रतिमा के सामने आँखें बंद किये अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचते हुए उनकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे।

 तभी उनकी कानों में एक आवाज आई, "नमस्कार, पंडित जी!"

झटके में आँखें खोलीं तो देखा सामने एक बुजुर्ग दंपत्ति हाथ जोड़े खड़े थे। पंडित जी ने बैठने का आग्रह किया। पंडित जी ने गौर किया कि वो वृद्ध दंपत्ति देखने में किसी अच्छे घर के लगते थे। दोनों के चेहरे पर एक सुन्दर सी आभा झलक रही थी।

"पंडित जी आपसे एक जरूरी बात करनी है।" वृद्ध पुरूष की आवाज़ सुनकर पंडित जी की तंत्रा टूटी।

"हाँ हाँ कहिये श्रीमान।" पंडित जी ने कहा।
 
उस वृद्ध आदमी ने कहा, "पंडित जी, मेरा नाम विशम्भर नाथ है, हम गुजरात से काशी दर्शन को आये हैं, हम निःसंतान हैं, बहुत जगह मन्नतें माँगी पर हमारे भाग्य में पुत्र/पुत्री सुख तो जैसे लिखा ही नहीं था।"

"बहुत सालों से हमनें एक मन्नत माँगी हुई है, एक गरीब कन्या का विवाह कराना है, कन्यादान करना है हम दोनों को, तभी इस जीवन को कोई सार्थक पड़ाव मिलेगा।"

वृद्ध दंपत्ति की बातों को सुनकर पंडित जी मन ही मन इतना खुश हुए जा रहे थे जैसे स्वयं भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने किसी को भेज दिया हो।

"आप किसी कन्या को जानते हैं पंडित जी जो विवाह योग्य हो पर उसका विवाह न हो पा रहा हो। हम हर तरह से दान दहेज देंगे उसके लिए और एक सुयोग्य वर भी है।" वृद्ध महिला ने कहा।

पंडित जी ने बिना एक पल गंवाए अपनी बेटी के बारे में सब विस्तार से बता दिया। वृद्ध दम्पत्ति बहुत खुश हुए, बोले, "आज से आपकी बेटी हमारी हुई, बस अब आपको उसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, उसका विवाह हम करेंगे।"

पंडित जी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उनकी मनचाही इच्छा जैसे पूरी हो गयी हो।

विशम्भर नाथ ने उन्हें एक विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, "बनारस में ही ये लड़का है, ये उसके पिता के आफिस का पता है, आप जाइये। ये मेरे रिश्ते में मेरे साढ़ू लगते हैं।

बस आप जाइये और मेरे बारे में कुछ न बताइयेगा। मैं बीच में नहीं आना चाहता। आप जाइये, खुद से बात करिये।

पंडित जी घबराए और बोले, "मैं कैसे बात करूँ, न जान न पहचान, कहीं उन्होंने मना कर दिया इस रिश्ते के लिए तो..??"

वृद्ध दंपत्ति ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया कि, "आप जाइये तो सही। लड़के के पिता का स्वभाव बहुत अच्छा है, वो आपको मना नहीं करेंगे।" 

इतना कह कर वृद्ध दंपत्ति ने उनको अपना मोबाइल नंबर दिया और चले गए। पंडित जी ने बिना समय गंवाए लड़के के पिता के आफिस का रुख किया।

मानो जैसे कोई चमत्कार सा हो गया। 'ऑफिस में लड़के के पिता से मिलने के बाद लड़के के पिता की हाँ कर दी', 'तुरंत शादी की डेट फाइनल हो गयी', पंडित जी जब जब उस दंपत्ति को फोन करते तब तब शादी विवाह की जरूरत का दान दहेज उनके घर पहुँच जाता।

सारी बुकिंग, हर तरह का सहयोग बस पंडित जी के फोन कॉल करते ही उन तक पहुँचने लगते। 

अंततः धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। पंडित जी की लड़की कमला विदा होकर अपने ससुराल चली गयी।

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पंडित जी ने राहत की साँस ली। पंडित जी अगले दिन मंदिर में बैठे उस वृद्ध दम्पत्ति के बारे में सोच रहे थे कि कौन थे वो दम्पत्ति जिन्होंने मेरी बेटी को अपना समझा, बस एक ही बार मुझसे मिले और मेरी सारी परेशानी हर लिए।

यही सोचते-सोचते पंडित जी ने उनको फोन मिलाया। उनका फोन स्विच ऑफ बता रहा था। पंडित जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। 

उन्होंने मन ही मन तय किया कि एक दो दिन और फोन करूँगा नहीं बात होने पर अपने समधी जी से पूछूँगा जरूर विशम्भर नाथ जी के बारे में।

अंततः लगातार 3 दिन फ़ोन करने के बाद भी विशम्भर नाथ जी का फ़ोन नहीं लगा तो उन्होंने तुरंत अपने समधी जी को फ़ोन मिलाया।

ये क्या….
फ़ोन पर बात करने के बाद पंडित जी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे। पंडित जी के समधी जी का दूर दूर तक विशम्भर नाथ नाम का न कोई सगा संबंधी, न ही कोई मित्र था।

पंडित जी आँखों में आँसू लिए मंदिर में प्रभु श्रीराम के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। और रोते हुए बोले,
*
"मुझे अब पता चला प्रभु, वो विशम्भर नाथ और कोई नहीं आप ही थे,
 
वो वृद्धा जानकी माता थीं, आपसे मेरा और मेरी बेटी का कष्ट देखा नहीं गया न?

दुनिया इस बात को माने या न माने पर आप ही आकर मुझसे बातें कर के मेरे दुःख को हरे प्रभु।"

राम जानकी की प्रतिमा जैसे मुस्कुराते हुए अपने भक्त पंडित जी को देखे जा रही थी।

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