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Paush Putrada Ekadashi fast that gives happiness to children, its story and its importance |
Paush Putrada Ekadashi पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रावती नाम की एक नगरी में सुकेतुमान नामक राजा राज करते थे।
राजा सुकेतुमान बहुत ही कुशल, दानी और बहादुर राजा थे. जिससे उनकी प्रजा बहुत ही खुश और संतुष्ट थी।राजा प्रजा के हित में कार्य किया करते थे और कोशिश करते थे कि प्रजा में कोई व्यक्ति दुखी न हो।
लेकिन इतने पुण्य कार्य करने के बाद भी राजा हमेशा चिंतित रहता था. क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी और शास्त्रों के अनुसार संतान न होने पर व्यक्ति अपने पितरों का ऋण नहीं उतार पाता।
इसलिए राजा दिन-रात इसी सोच में रहता था कि मेरा पिंडदान कौन करेगा और मेरे मरने के बाद पितरों का ऋण कैसे उतरेगा।
इसी सोच-विचार में राजा के दिन कट रहे थे. एक दिन राज घूमते हुए जंगल में पहुंचे जहां ऋषि तपस्या कर रहे थे. राजा ने ऋषि को दंडवत प्रणाम किया तो ऋषि ने उनका चेहरा देखकर चिंता को समझ लिया. फिर पूछा कि राजा आप चिंतित क्यों हैं?
फिर राजा ने ऋषि के सामने अपनी सारी व्यथा कह दी और कहा कि मेरे दुखों को दूर करने का कोई हल बताएं. ताकि मुझे संतान प्राप्ति हो और पितरों का ऋण उतार सके।
ऋषि ने राजा की सारी व्यथा सुनी और कहा कि पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन "पुत्रदा एकादशी" का व्रत करें. यह व्रत करने से आपकी संतान प्राप्ति की कामना पूरी होगी।
राजा ने ऋषि को प्रणाम किया और महल की ओर चल दिया. फिर पौष पुत्रदा एकादशी के दिन राजा व उनकी पत्नी दोनों ने यह व्रत रखा. जिसके बाद उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई।
इसलिए कहा जाता है कि पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से संतान सुख प्राप्त होता है।
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