Know the meaning and origin of Shri Ram Stuti |
श्री राम स्तुति जय श्री रामलला जी को कोटि कोटि प्रणाम
ब्रह्म मुहूर्त में सुबह उठते ही सर्वप्रथम करिये कौशल्या सुत दशरथ नंदन अयोध्या नाथ श्री राम लला के अद्भुत अलौकिक दिव्य दर्शन श्री अयोध्या धाम उत्तर प्रदेश से
5फरवरी 2024(सोमवार)
🛎️🌿जय रघुनन्दन जय सियाराम 🌿🛎️
संस्कृत में मूल श्री राम स्तुति का अर्थ है कि श्री राम की प्रशंसा करने के लिए संस्कृत भाषा में लिखी गई पहली कविता। इस स्तुति का प्रचलित नाम 'श्रीरामस्तुतिः' है, जो वाल्मीकि रामायण के प्रथम सर्ग में पाई जाती है। इस स्तुति में, महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम के गुणों, कर्मों, सौन्दर्य, और महिमा का वर्णन किया है।
इस स्तुति को पढ़ने से, हमें श्री राम के प्रति प्रेम, भक्ति, और समर्पण का भाव उत्पन्न होता है। हमें उनके मार्गदर्शन, सहायता, और कृपा की प्राप्ति होती है। हमें उनके समान सत्य, धर्म, और मर्यादा का पालन करने का प्रेरणा मिलती है।
इसलिए, हमें संस्कृत में मूल श्री राम स्तुति को सम्मानपूर्वक पढ़ना, सुनना, और समझना चाहिए। हमें इसके महत्व, संदेश, और सुंदरता को मन में समेटना चाहिए। हमें इसके माध्यम से, हमारे प्रिय प्रभु, मर्यादा पुरुषोत्तम, श्री राम को स्मरण करना, सेवा करना, और प्रसन्न करना चाहिए।
॥दोहा॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो ॥६॥
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे।
रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास
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