ये ग्रह देते हैं भयंकर रोग, पढ़ें चौंकाने वाले ज्योतिष रहस्य
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ज्योतिष विज्ञान को मानने वाले वैदिक शोधकर्ताओं का मानना है कि ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के शरीर का संचालन भी ग्रहों के अनुसार होता है। सूर्य आंखों, चंद्रमा मन, मंगल रक्त संचार, बुध हृदय, बृहस्पति बुद्धि, शुक्र प्रत्येक रस तथा शनि, राहू और केतु उदर का स्वामी है। जैसे:- शनि अगर बलवान है तो नौकरी और व्यापार में विशेष लाभ होता है। गृहस्थ जीवन सुचारु चलता है। लेकिन अगर शनि का प्रकोप है तो व्यक्ति को बात-बात पर क्रोध आता है। निर्णय शक्ति काम नहीं करती, गृहस्थी में कलह और व्यापार में तबाही होती है।
सूर्य से सम्बन्धित रोग:
सूर्य धरती का जीवनदाता, अगर आपकी कुंडली में सूर्य का दोष है तो आपको हड्डियों से जुड़ी बीमारियां या फिर आंखों की बीमारी हो सकती है। हृदय रोग, पाचन तंत्र की बीमारियां और टीबी भी सूर्य दोष के कारण ही होती है, लेकिन एक क्रूर ग्रह है,
वह मानव स्वभाव में तेजी लाता है। यह ग्रह कमजोर होने पर सिर में दर्द, आंखों का रोग तथा टाइफाइड आदि रोग होते हैं। किन्तु अगर सूर्य उच्च राशि में है तो सत्तासुख, पदार्थ और वैभव दिलाता है।
उपाय :- बन्दर को गुड़ और
चना खिलाना चाहिए |
चंद्रमा से सम्बन्धित रोग :
चंद्रमा एक शुभ ग्रह है लेकिन उसका फल अशुभ भी होता है। यदि चंद्रमा उच्च है तो व्यक्ति को अपार यश और ऐश्वर्य मिलता है, लेकिन अगर नीच का है तो व्यक्ति खांसी, नजला, जुकाम जैसे रोगों से घिरा रहता है। चंद्रमा के प्रभाव को अनुकूल करने के लिए सोमवार का व्रत तथा सफेद खाद्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।
उपाय :- मंदिर में दूध
देने से रोग में लाभ मिलता है |
मंगल से सम्बन्धित रोग:
यह महापराक्रमी ग्रह है। कर्क, वृश्चिक,
मीन तीनों राशियों पर उसका अधिकार है। यह लड़ाई-झगड़ा, दंगाफसाद का प्रेरक है। इससे पित्त, वायु, रक्तचाप, कर्णरोग,
खुजली, उदर, रज, बवासीर आदि रोग होते हैं। अगर कुंडली में मंगल नीच का है तो तबाही कर देता है। बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं, भूकंप, सूखा भी मंगल के कुप्रभावों के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन अगर मंगल उच्च का है तो वह व्यक्ति कामक्रीड़ा में चंचल, तमोगुणी तथा व्यक्तित्व का धनी होता है। वे अथाह संपत्ति भी खरीदते हैं। हर ग्रह शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करता है उसी के अनुसार रोग होते हैं यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है। यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा) होता है।
उपाय :-बताशे नदी में
बहाना या चीटियों को कसार डालना |
बुध से सम्बन्धित रोग और रत्न
शरीर की चमड़ी का कारक बुध होता है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है. एक ग्रह दूसरे ग्रह को कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। बुध की अशुभता हृदय रोग देती है, रोग सामान्य भी हो सकता है और गंभीर भी। ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है।
उपाय :-कन्या की सेवा
करना या किन्नर को दान देना |
बृहस्पति से सम्बन्धित रोग और रत्न
ग्रहों में बृहस्पति को गुरू का स्थान प्राप्त है.इस ग्रह के अधीन विषय हैं गला, पेट, वसा, श्वसनतंत्र.कुण्डली में जब यह ग्रह कमजोर होता है तो व्यक्ति कई प्रकार के रोग का सामना करना होता हे.व्यक्ति सर्दी, खांसी, कफ से पीड़ित होता है.गले का रोग परेशान करता है, वाणी सम्बन्ध दोष होता है.पीलिया, गठिया, पेट की खराबी व कीडनी सम्बन्धी रोग बृहस्पति के कारण उत्पन्न होता है.रत्नशास्त्र में पुखराज को बृहस्पति का रत्न माना गया है.इस रत्न के धारण करने से शरीर में बृहस्पति की उर्जा का संचार होता है जिससे इन रोगों की संभावना कम होती है एवं रोग ग्रस्त होने पर जल्दी लाभ मिलता है. बृहस्पति बुद्धि से संबंधित परेशानी देता है।
उपाय :-मंदिर में चने की
डाल देना, देव दर्शन करना |
शुक्र से सम्बन्धित रोग और रत्न
शुक्र ग्रह सौन्दय का प्रतीक होता है.यह त्वचा, मुख, शुक्र एवं गुप्तांगों का अधिपति होता है.कुण्डली में शुक्र दूषित अथवा पाप पीड़ित होने पर व्यक्ति को जिन रोगों का सामना करना होता है उनमें गुप्तांग के रोग प्रमुख हैं.इस ग्रह के कारण होने वाले अन्य रोग हैं तपेदिक, आंखों के रोग, हिस्टिरिया, मूत्र सम्बन्धी रोग, धातु क्षय, हार्निया. इस ग्रह का रत्न मोती है जो अंतरिक्ष में मौजूद इस ग्रह की रश्मियों को ग्रहण करके इसे व्यक्ति को स्वास्थ्य लाल मिलता है.
जैसे शुक्र काम कला का प्रतीक है तो समस्त यौन रोग शुक्र की अशुभता से ही होते हैं।
उपाय :-दूध, दही का दान
करना |
शनि से सम्बन्धित रोग और रत्न
ज्योतिषशास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह कहा गया है.इस ग्रह का प्रिय रंग काला और नीला है.इस ग्रह का रत्न नीलम है.जिससे नीली आभा प्रस्फुटित होती रहती है.इस रत्न को बहुत ही चमत्कारी माना जाता है.इस रत्न को धारण करने से शनि से सम्बन्धित रोग जैसे गठिया, कैंसर, जलोदर, सूजन, उदरशूल, कब्ज, पक्षाघात, मिर्गी से बचाव होता है.जो लोग इन रोगों से पीड़ित हैं उन्हें इस रत्न के धारण करने से लाभ मिलता है.शनि के कारण से दुर्घटना और हड्डियों में भी परेशानी आती है.नीलम धारण करने से इस प्रकार की परेशानी से बचाव होता है. यदि शनि पूर्ण बली हो और मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है।
उपाय :-मजदूर की सेवा
करना, भेंस को रोटी देना |
राहु से सम्बन्धित रोग
राहु से सम्बन्धित रोग और रत्न ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से राहु शनि के समान ही पापी ग्रह है.कुण्डली में अगर यह ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो जीवन में प्रगति को बाधित करने के अलावा कई प्रकार के रोगों से परेशान करता है.इस ग्रह का रत्न गोमेद है जिसे धारण करने से राहु से सम्बन्धित रोग से बचाव एवं मुक्ति मिलती है.राहु के कारण से अक्सर पेट खराब रहता है.मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, कुष्ठ रोग उत्पन्न होता है.राहु बाधा से कैंसर, गठिया, चेचक एवं प्रेत बाधा का सामना करना पडता है।इस मे सुलेमानी हकीक ,गोमेंद चादी की अगुंठी मे पहनना चाहिए.यह इन रोगो व परशानियों मे लाभप्रद है।
उपाय :-चीटियों को कसार डालना, मंदिर की सीढ़ी को साफ करना |
केतु.से सम्बन्धित रोग व रत्न......
केतु और राहु एक ही शरीर दो भाग है.केतु की प्रकूति भी राहु के सामन है.इसे भी कुर ग्रुहो की श्रेणी मे रखा गया है।शरीर मे खुन की कमी,मुत्र रोग,,त्वचा रोग,बावासीर,आजीर्न,पेट के रोग,इस मे लहुसुनिया व सुलेमानी हकीक धारन चाहिए।
उपाय :-पक्षी और सड़क के
कुत्तो को भोजन दें |
अल्पविराम
जय श्री राम
अक्षय शर्मा
9837378309-6839
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