G-B7QRPMNW6J आईये जानते है नवमांश कुंडली का महत्त्व और नवमांश की अन्य वर्गों से तुलना
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आईये जानते है नवमांश कुंडली का महत्त्व और नवमांश की अन्य वर्गों से तुलना

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कुण्डली में नवमांश का महत्व

सामान्यतः आप सभी को ज्ञात है कि कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि आपका भाग्य नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। जागरूक ज्योतिषी कुंडली सम्बन्धी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है।बिना नवमांश का अध्य्यन किये बिना भविष्यकथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है। इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है ,क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है।अतः भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है .नवमांश कुंडली(डी-9)

षोडश वर्ग में सभी वर्ग महत्वपूर्ण होते है लेकिन लग्न कुंडली के बाद नवमांश कुंडली का विशेष महत्व है।नवमांश एक राशि के नवम भाव को कहते है जो अंश 20 कला का होता है।नो नवमांश इस प्रकार होते है जैसे, मेष में पहला नवमांश मेष का, दूसरा नवमांश वृष का, तीसरा नवमांश मिथुन का, चौथा नवमांश कर्क का, पाचवां नवमांश सिंह का, छठा कन्या का, सातवाँ तुला का, आठवाँ वृश्चिक का और नवा नवमांश धनु का होता है।नवम नवमांश में मेष राशि की समाप्ति होती है और वृष राशि का प्रारम्भ होता है।वृष राशि में पहला नवांश मेष राशि के आखरी नवांश से आगे होता है।इसी तरह वृष में पहला नवमांश मकर का, दूसरा कुंभ का, तीसरा मीन का, चौथा मेष का, पाचवा वृष का, छठा मिथुन का, सातवाँ कर्क का, आठवाँ सिंह का और नवम नवांश कन्या का होता है। इसी तरह आगे राशियों के नवमांश ज्ञात किए जाते है। नवमांश कुंडली से मुख्य रूप से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है।इसके अतिरिक्त भी नवमांश कुंडली का परिक्षण लग्न कुंडली के साथ-साथ किया जाता है।यदि बिना नवमांश कुंडली देखे केवल लग्न कुंडली के आधार पर ही फल कथन किया जाए तो फल कथन में त्रुटिया रह सकती है या फल कथन गलत भी हो सकता है।क्योंकि ग्रहो की नवमांश कुंडली में स्थिति क्या है?नवमांश कुंडली में ग्रह कैसे योग बना रहे है यह देखना अत्यंत आवश्यक है तभी ग्रहो के बल आदि की ठीक जानकारी प्राप्त होती है।इसके अतिरिक्त अन्य वर्ग कुण्डलिया भी अपना विशेष महत्व रखते है।लेकिन नवमांश इन वर्गों में अति महत्वपूर्ण वर्ग है।

नवमांश कुंडली परीक्षण-:

यदि लग्न और नवमांश लग्न वर्गोत्तम हो तो ऐसे जातक मानसिक और शारीरिक रूप से बलबान होते है।वर्गोत्तम लग्न का अर्थ है।लग्न और नवमांश दोनों कुंडलियो का लग्न एक ही होना अर्थात् जो राशि लग्न कुंडली के लग्न में हो वही राशि नवमांश कुंडली के लग्न में हो तो यह स्थिति वर्गोत्तम लग्न कहलाती है।इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में एक ही राशि में हो तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है वर्गोत्तम ग्रह अति शुभ और बलबान होता है।जैसे सूर्य लग्न कुंडली में धनु राशि में हो और नवमांश कुंडली में भी धनु राशि में हो तो सूर्य वर्गोत्तम होगा।वर्गोत्तम होने के कारण ऐसी स्थिति में सूर्य अति शुभ फल देगा।वर्गोत्तम ग्रह भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार भी अपने अनुकूल भाव में बेठा हो तो अधिक श्रेष्ठ फल करता है। शुभ राशियों में वर्गोत्तम ग्रह आसानी से शुभ परिणाम देता है और क्रूर राशियों में वर्गोत्तम ग्रह कुछ संघर्ष भी करा सकता है। जब कोई ग्रह लग्न कुण्डली में अशुभ स्थिति में हो पीड़ित हो, निर्बल हो या अन्य प्रकार से उसकी स्थिति ख़राब हो लेकिन नवमांश कुंडली में वह ग्रह शुभ ग्रहो के प्रभाव में हो, शुभ और बलबान हो गया हो तब वह ग्रह शुभ फल ही देता है अशुभ फल नही देता।इसी तरह जब कोई ग्रह लग्न कुंडली में अपनी नीच राशि में हो और नवमांश कुंडली में वह ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो उसे बल प्राप्त हो जाता है जिस कारण वह शुभ फल देने में सक्षम होता है।ग्रह की उस स्थिति को नीचभंग भी कहते है।चंद्र और चंद्र राशि से जातक का स्वभाव का अध्ययन किया जाता है।लग्न कुंडली और नवमांश कुंडली में चंद्र जिस राशि में हो तथा यदि नवमांश कुंडली के चंद्रराशि का स्वामी लग्न कुंडली के चंद्रराशि से अधिक बली हो और चंद्रमा भी लग्न कुंडली से ज्यादा नवमांश कुंडली में बली हो तो जातक का स्वभाव नवमांश कुंडली के अनुसार होगा।ऐसे में जातक के मन पर नवमांश कुंडली के चंद्र की स्थिति का प्रभाव अधिक पड़ेगा।यदि नवमांश कुंडली का लग्न, लग्नेश बली हो और नवमांश कुंडली में राजयोग बन रहा हो और ग्रह बली हो तो जातक को राजयोग प्राप्त होता है। नवमांश कुंडली मुख्यरूप से विवाह और वैवाहिक जीवन केलिए देखी जाती है यदि लग्न कुंडली में विवाह होने की या वैवाहिक जीवन की स्थिति ठीक न हो अर्थात् योग न हो लेकिन नवमांश कुंडली में विवाह और वैवाहिक जीवन की स्थिति शुभ और अनुकूल हो, विवाह के योग हो तो वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त होता है।

अब देखें की नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव 30 डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात 30 का नवां हिस्सा यानी 3. 2 डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों नवमांश होते हैं। अब 30 डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये-:

पहला नवमांश    ०० से 3.२०

दूसरा नवमांश          3. २० से ६.४०

तीसरा नवमांश         ६. ४० से १०. ०

चौथा नवमांश          १० से १३. २०

पांचवां नवमांश        १३.२० से १६. ४०

छठा नवमांश           १६. ४० से २०. ००

सातवां नवमांश        २०. ०० से २३. २०

आठवां नवमांश       २३. २० से २६. ४०

नवां नवमांश           २६. ४० से ३०. ००

मेष -सिंह -धनु          (अग्निकारक राशि)   के नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।

वृष -कन्या -मकर     (पृथ्वी तत्वीय राशि) के नवमांश का आरम्भ मकर से होता है।

मिथुन -तुला -कुम्भ   (वायु कारक राशि)    के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।

कर्क -वृश्चिक -मीन   (जल तत्वीय राशि)   के नवमांश आरम्भ कर्क से होता है।

मेष -सिंह -धनु          (अग्निकारक राशि)   के नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।

वृष -कन्या -मकर     (पृथ्वी तत्वीय राशि) के नवमांश का आरम्भ मकर से होता है।

मिथुन -तुला -कुम्भ   (वायु कारक राशि)    के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।

कर्क -वृश्चिक -मीन   (जल तत्वीय राशि)   के नवमांश आरम्भ कर्क से होता है।

इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है।

उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४ मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।

अन्य उदाहरण से समझें

मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।

इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात कि २६ :१३ :०७ आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये।

"ग्रहों के उपचार करने के कुछ सरल उपाय "

सुबह "ब्रह्म मुहूर्त" में उठे

निम्नलिखित कार्य करे उस दिन के लिए आप के सभी ग्रह अनुकूल हो जायेंगे और दिन भर एक दिव्य शक्ति की अनुभूति होती रहेगी

सुबह उठ कर सबसे पहले अपने "माँ बाबू जी " के चरण सपर्श करे उस दिन के लिए "सूर्य चन्द्र" बहुत ही शुभ फल देंगे रोजाना शुभ फल चाहते हो तो रोज यह कार्य जरूर करें

एक गिलास गर्म पानी पियें जल(चन्द्र) का यह प्रवाह आपके शरीर की सारी नसों को खोल देगा

दांत साफ़ करके घर से निकल कर सैर करने जाए और घास पर नंगे पाँव चले इससे आप का "बुध" बलवान होगा

सैर पर आप अपनी पत्नी को भी ले जाएँ "पत्नी" साथ होगी तो सुबह की सैर का "लुत्फ़" ही कुछ और होगा (थोडा सा रोमानी हो जाए )दिन भर स्फूर्ति रहेगी तो "शुक्र" का रोमांस भी आप के साथ होगा

घर से जब चले तो साथ में कुछ खाने का सामान "Bread" वगैरह लेकर जाएँ कई बार रास्ते में आवारा "कुत्ते" मिलतें है उन्हें Bread खाने को दे जिससे आप का "केतु" भी अनुकूल होगा क्योंकि "कुत्ता जाति को माना गया है दरवेश ,इसकी प्रार्थना करती प्रभु के घर प्रवेश "

पन्द्रह बीस मिनट कसरत करें, जिम जाते हैं तो आप का "मंगल" आप को चुस्त दरुस्त रखेगा

नहाने से पहले सरसों के तेल की मालिश करें "शनि" की कमी भी दूर हो जायेगी

नहाने के बाद श्रद्धा अनुसार पूजा पाठ से "गुरु" भी active हो जायेंगे

भगवान् सूर्य को जल दे "राहू" के दोष भी शांत होते हैं

आज कल गर्मियाँ हैं गली मोहल्ले में सुबह सफाई कर्मचारी झाड़ू लगाने आता है उसे ठंडा पानी पिलाए या कुछ खिला दे "राहू" की आशीष भी मिल जायेगी 

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