ग्रह और रोग.....मैडीकल ऐसटरोलोजी के अधार पर रोगों का उपचार...।।
बुध से सम्बन्धित रोग और रत्न
शरीर की चमड़ी का कारक
बुध होता है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि से दृष्टि में या युति के साथ होगा तो चर्म रोग होने के पूरे आसार
बनेंगे। रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है.
एक ग्रह दूसरे ग्रह को
कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं। रोग सामान्य भी हो सकता है
और गंभीर भी। ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता
है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है। दूसरा रोग लंबा समय
लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है।
मंगल से सम्बन्धित रोग और रत्न
मंगल रक्त का कारक है, यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, शत्रु राशिस्थ हो, नीच हो, वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा. मुख्य बात यह है कि यदि मंगल बुध का
योग होगा तो किसी भी प्रकार की समस्या अवश्य खड़ी होगी। इसी प्रकार मंगल शनि का योग
खुजली पैदा करता है, खून खराब करता है। लग्नेश से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध होने पर वह अवश्य ही चर्म-रोग
का कारण बनता है। यदि यह योग कुंडली में हो किन्तु दशा अच्छी चल रही हो तो हो सकता
है कि वह रोग ना हो जब तक उस ग्रह की दशा अन्तर्दशा पुनः ना आये।
यदि शनि पूर्ण बली हो
और मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है। यदि मंगल और केतु
छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है। यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें
भाव में हों तो व्रण (फोड़ा) होता है। यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता
है।
यदि बुध और राहु षष्ठेश
और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है (एक्जीमा जैसा)। यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर
लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है। यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म–रोग प्राचीन काल से रोगों के उपचार हेतु रत्नों का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है.रत्नों में चुम्बकीय शक्ति होती है जिससे वह ग्रहों की रश्मियों एवं उर्जा को अवशोषित कर लेती है जिस ग्रह विशेष का रत्न धारण करते हैं उस ग्रह की पीड़ा से बचाव होता है और सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है.रत्न चिकित्सा का यही आधार है.
बृहस्पति से सम्बन्धित रोग और रत्न
ग्रहों में बृहस्पति
को गुरू का स्थान प्राप्त है.इस ग्रह के अधीन विषय हैं गला,
पेट, वसा, श्वसनतंत्र.कुण्डली में जब यह ग्रह कमजोर होता है तो व्यक्ति कई प्रकार के रोग का सामना करना होता हे.व्यक्ति सर्दी, खांसी, कफ से पीड़ित होता है.गले का रोग परेशान करता है, वाणी सम्बन्ध दोष होता है.पीलिया, गठिया, पेट की खराबी व कीडनी सम्बन्धी रोग बृहस्पति के कारण उत्पन्न होता है.रत्नशास्त्र में पुखराज को बृहस्पति का रत्न माना गया है.इस रत्न के धारण करने से शरीर में बृहस्पति की उर्जा का संचार होता है जिससे इन रोगों की संभावना कम होती है एवं रोग ग्रस्त होने पर जल्दी लाभ मिलता है.
शुक्र से सम्बन्धित रोग और रत्न
शुक्र ग्रह सौन्दय का
प्रतीक होता है.यह त्वचा,
मुख, शुक्र एवं गुप्तांगों का अधिपति होता है.कुण्डली में शुक्र दूषित अथवा पाप पीड़ित होने पर व्यक्ति को जिन रोगों का सामना करना होता है उनमें गुप्तांग के रोग प्रमुख हैं.इस ग्रह के कारण होने वाले अन्य रोग हैं तपेदिक, आंखों के रोग, हिस्टिरिया, मूत्र सम्बन्धी रोग, धातु क्षय, हार्निया. इस ग्रह का रत्न मोती है जो अंतरिक्ष में मौजूद इस ग्रह की रश्मियों को ग्रहण करके इसे व्यक्ति को स्वास्थ्य लाल मिलता है.
शनि से सम्बन्धित रोग और रत्न
ज्योतिषशास्त्र में शनि
को क्रूर ग्रह कहा गया है.इस ग्रह का प्रिय रंग काला और नीला है.इस ग्रह का रत्न नीलम है.जिससे नीली आभा प्रस्फुटित होती रहती है.इस रत्न को बहुत ही चमत्कारी माना जाता है.इस रत्न को धारण करने से शनि से सम्बन्धित रोग जैसे गठिया, कैंसर, जलोदर, सूजन, उदरशूल, कब्ज, पक्षाघात, मिर्गी से बचाव होता है.जो लोग इन रोगों से पीड़ित हैं उन्हें इस रत्न के धारण करने से
लाभ मिलता है.शनि के कारण से दुर्घटना
और हड्डियों में भी परेशानी आती है.नीलम धारण करने से इस प्रकार की परेशानी से बचाव होता है.
राहु से सम्बन्धित रोग
राहु से सम्बन्धित रोग
और रत्न ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से राहु शनि के समान ही
पापी ग्रह है.कुण्डली
में अगर यह ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो जीवन में प्रगति को बाधित करने के अलावा कई प्रकार के रोगों से परेशान करता है.इस ग्रह का रत्न गोमेद है जिसे धारण करने से राहु से सम्बन्धित रोग से बचाव एवं मुक्ति मिलती है.राहु के कारण से अक्सर पेट खराब रहता है.मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, कुष्ठ रोग उत्पन्न होता है.राहु बाधा से कैंसर, गठिया, चेचक एवं प्रेत बाधा का सामना करना पडता है।इस मे सुलेमानी हकीक ,गोमेंद चादी की अगुंठी मे पहनना चाहिए.यह इन रोगो व परशानियों मे लाभप्रद है।
केतु.से सम्बन्धित रोग व रत्न......
केतु और राहु एक ही शरीर
दो भाग है.केतु की प्रकूति भी राहु के सामन है.इसे भी कुर ग्रुहो की श्रेणी मे रखा
गया है।शरीर मे खुन की कमी,मुत्र रोग,,त्वचा रोग,बावासीर,आजीर्न,पेट के रोग,इस मे लहुसुनिया व सुलेमानी हकीक धारन चाहिए।
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