बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष दूर करने के उपाय
एक सुंदर एवं दोषमुक्त घर हर व्यक्ति की कामना होती है। किंतु
वास्तु विज्ञान के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में भवन निर्माण में कुछ अशुभ तत्वों तथा
वास्तु दोषों का समावेश हो जाता है। फलतः गृहस्वामी को विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कष्टों का
सामना करना पड़ता है। घर के निर्माण के बाद फिर से उसे तोड़कर दोषों को दूर करना कठिन
होता है। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए इन दोषों को दूर करने के
कुछ उपाय बताए हैं। उन्होंने प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणों, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति
आदि के उचित उपयोग की सलाह दी है। यहां वास्तु दोषों के निवारण के निमित्त कुछ उपाय
प्रस्तुत हैं जिन्हें अपना कर विभिन्न दिशाओं से जुड़े दोषों को दूर किया जा सकता है।
ईशान {पूर्व-उत्तर}
ü यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या
पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक
रूप से बढ़ जाता है।
ü यदि ईशान कटा हो अथवा किसी अन्य
कोण की दिशा बढ़ी हो, तो किसी साधु पुरुष अथवा अपने गुरु या बृहस्पति ग्रह या फिर ब्रह्मा जी का कोई
चित्र अथवा मूर्ति या कोई अन्य प्रतीक चिह्न ईशान में रखें। गुरु की सेवा करना सर्वोत्तम
उपाय है। बृहस्पति ईशान के स्वामी और देवताओं के गुरु हैं। कटे ईशान के दुष्प्रभाव
को कम करने के लिए साधु पुरुषों को बेसन की बनी बर्फी या लड्डुओं का प्रसाद बांटना
चाहिए।
ü यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य
स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। यदि यहां जल हो, तो चीनी मिट्टी के एक पात्र में जल और तुलसीदल या फिर गुलदस्ता अथवा एक पात्र में फूलों की पंखुड़ियां
और जल रखें। शुभ फल की प्राप्ति के लिए इस जल और फूलों को नित्य प्रति बदलते रहें।
ü अपने शयन कक्ष की ईशान दिशा की
दीवार पर भोजन की तलाश में उड़ते शुभ पक्षियों का एक सुंदर चित्र लगाएं। कमाने हेतु
बाहर निकलने से हिचकने वाले लोगों पर इसका चमत्कारी प्रभाव होता है। यह अकर्मण्य लोगों
में नवीन उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है।
ü बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ
योगी की मुद्रा में बैठे महादेव शिव का ऐसा फोटो, चित्र अथवा मूर्ति स्थापित करें, जिसमें उनके भाल पर चंद्रमा हो
और लंबी जटाओं से गंगा जी निकल रही हों।
ü ईशान में विधिपूर्वक बृहस्पति
यंत्र की स्थापना करें।
ü पूर्व दिशा
ü यदि पूर्व की दिशा कटी हो,
तो पूर्वी दीवार पर एक बड़ा शीशा
लगाएं। इससे भवन के पूर्वी क्षेत्र में प्रतीकात्मक वृद्धि होती है।
ü पूर्व की दिशा के कटे होने की
स्थिति में वहां सात घोड़ों के रथ पर सवार
भगवान सूर्य देव की एक तस्वीर, मूर्ति अथवा चिह्न रखें।
ü सूर्योदय के समय सूर्य भगवान
को जल का अर्य दें। अर्य देते समय गायत्री मंत्र का सात बार जप करें। पुरूष अपने पिता
और स्त्री अपने स्वामी की सेवा करें।
ü प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन
सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु एक खिड़की होनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं हो,
तो उस भाग में सुनहरी या पीली
रोशनी देने वाला बल्ब जलाएं।
ü पूर्व में लाल, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग
करें। पूर्वी क्षेत्र में मिट्टी खोदकर जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल उगाएं अथवा पूर्वी
बगीचे में लाल गुलाब रोपें।
ü अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार
पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए हंस, तोता, मोर आदि अथवा भोजन की तलाश में अपना घोंसला छोड़ने को तैयार
शुभ पक्षियों का चित्र लगाएं। अकर्मण्य और कमाने हेतु बाहर जाने से हिचकने वाले व्यक्तियों
के लिए यह जादुई छड़ी के समान काम करता है।
ü बंदरों को गुड़ और भुने चने खिलाएं।
ü पूर्व में सूर्य यंत्र की स्थापना
विधि विधान पूर्वक करें।
आग्नेय,{पूर्व-दक्षिण}
• यदि आग्नेय कोण पूर्व दिशा में
बढ़ा हो, तो इसे काटकर वर्गाकार
या आयताकार बनाएं।
• शुद्ध बालू और मिट्टी से आग्नेय
क्षेत्र के सभी गड्ढे इस प्रकार भर दें कि यह क्षेत्र ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन
नैर्ऋत्य से नीचा रहे।
• यदि आग्नेय किसी भी प्रकार से
कटा हो अथवा पर्याप्त रूप से खुला न हो, तो इस दिशा में लाल रंग का एक दीपक या बल्ब अग्नि देवता के सम्मान
में कार्य करते समय कम से कम एक प्रहर (तीन
घंटे) तक जलाए रखें।
• यदि आग्नेय कटा हो, तो इस दिशा में अग्नि देव की
एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न
रखें। गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति रखने से भी उक्त दोष दूर होता है। अग्नि देव की
स्तुति में ऋग्वेद में उल्लिखित पवित्र मंत्रों का उच्चारण करें।
• आग्नेय कोण में दोष होने पर वहां
भोजन में प्रयोग होने वाले फल, सब्जियां (सूर्यमुखी, पालक, तुलसी, गाजर आदि) और अदरक मिर्च,
मेथी, हल्दी, पुदीना, कढ़+ी पत्ता आदि उगाएं अथवा मनीप्लांट लगाएं।
• आग्नेय दिशा से आने वाली सूर्य
किरणों को रोकने वाले सभी पेड़ों को हटाएं। इस दिशा में ऊंचे पेड़ न लगाएं
• आग्नेय का स्वामी ग्रह शुक्र
दाम्पत्य संबंधों का कारक है। अतः इस दिशा के दोषों को दूर करने के लिए अपने जीवनसाथी
के प्रति प्रेम और आदर भाव रखें।
• घर की स्त्रियों को नए रेश्मी
परिधान, सौंदर्य प्रसाधन,
सामग्री, सजावट के सामान और गहने आदि देकर
हमेशा खुश रखें। यह सर्वोत्तम उपाय है।
• प्रत्येक शुक्रवार को गाय को
गेहूं का आटा, चीनी और दही से बने पेड़े खिलाएं। प्रतिदिन रसोई में
बनने वाली पहली रोटी गाय को खिलाएं। दोषयुक्त आग्नेय में गाय-बछड़े की सफेद संगमरमर
से बनी मूर्ति या तस्वीर इतनी ऊंचाई पर लगाएं कि वह आसानी से दिखाई दे।
• आग्नेय में शुक्र यंत्र की स्थापना
विधिपूर्वक करें।
दक्षिण दिशा
Ø यदि दक्षिणी क्षेत्र बढ़ा हो,
तो उसे काटकर शेष क्षेत्र को
वर्गाकार या आयताकार बनाएं। कटे भाग का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।
Ø यदि दक्षिण में भवन की ऊंचाई
के बराबर या उससे अधिक खुला क्षेत्र हो, तो ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां उगाएं।
Ø इस दिशा में कंक्रीट के बड़े
और भारी गमलों में घर में रखने योग्य भारी प्रकृति के पौधे लगाएं।
Ø यमराज अथवा मंगल ग्रह के मंत्रों
का पाठ करें।
Ø इस दिशा के स्वामी मंगल को प्रसन्न
करने के लिए घर के बाहर लाल रंग का प्रयोग करें। दक्षिण दिशा के दोष अग्नि के सावधानीपूर्वक
उपयोग और अग्नि तत्व प्रधान लोगों के प्रति उचित आदर भाव से दूर किए जा सकते हैं।
Ø इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार
पर हनुमान जी का लाल रंग का चित्र लगाएं।
Ø दक्षिण दिशा में विधिपूर्वक मंगल
यंत्र की स्थापना करें।
नैर्ऋत्य दिशा
• नैर्ऋत्य दिशा के बढ़े होने से
असहनीय परेशानियां पैदा होती हैं। यदि यह क्षेत्र किसी भी प्रकार से बढ़ा हो,
तो इसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
• रॉक गार्डन बनाने अथवा भारी मूर्तियां
रखने हेतु नैर्ऋत्य सर्वोत्तम है। यदि यह क्षेत्र नैसर्गिक रूप से ऊंचा या टीलेनुमा
हो या इस दिशा में ऊंचे भवन अथवा पर्वत हों,
तो इस ऊंची उठी जगह को ज्यों
का त्यों छोड़ दें।
• यदि नैर्ऋत्य दिशा में भवन की
ऊंचाई के बराबर अथवा अधिक खुला क्षेत्र हो, तो यहां ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त
घर के भीतर कंक्रीट के गमलों में भारी पेड़ पौधे लगाएं।
• इस दिशा में भूतल पर अथवा ऊंचाई
पर पानी का फव्वारा बनाएं।
• राहु के मंत्रों का जप स्वयं
करें अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं।
• श्राद्धकर्म का विधिपूर्वक संपादन
कर अपने पूर्वजों की आत्माओं को तुष्ट करें। इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर मृत सदस्यों
की एक तस्वीर लगाएं जिस पर पुष्पदम टंगी हों।
• मिथ्याचारी, अनैतिक, क्रोधी अथवा समाज विरोधी लोगों
से मित्रता न करें। वाणी पर नियंत्रण रखें
• तांबे, चांदी, सोने अथवा स्टील से निर्मित सिक्के
या नाग-नागिन के जोड़े की प्रार्थना कर उसे नैर्ऋत्य दिशा में दबा दें।
• नैर्ऋत्य दिशा में राहु यंत्र
की स्थापना विधिपूर्वक करें।
पश्चिम दिशा
• यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो,
तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार
बनाएं।
• यदि इस दिशा में भवन की ऊंचाई
के बराबर या अधिक दूरी तक का क्षेत्र खुला
हो, तो वहां ऊंचे वृक्ष या
घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त इस दिशा
में घर के पास बगीचे में लगाए जाने वाले सजावटी पेड़-पौधे जैसे इंडोर पाम, रबड़ प्लांट या अंबे्रला ट्री
कंक्रीट के बड़े व भारी गमलों में लगा सकते हैं।
• भूतल पर बहते पानी का स्रोत अथवा
पानी का फव्वारा भी लगा सकते हैं।
• पद्म पुराण में उल्लिखित नील
शनि स्तोत्र अथवा शनि के किसी अन्य मंत्र का जप और दिशाधिपति वरुण की प्रार्थना करें।
• सूर्यास्त के समय प्रार्थना के
अलावा कोई भी अन्य शुभ कार्य न करें।
• पश्चिम दिशा में शनि यंत्र की
स्थापना विधिपूर्वक करें।
वायव्य {उत्तर-पश्चिम}
v यदि वायव्य दिशा का भाग बढ़ा
हुआ हो, तो उसे वर्गाकार या आयताकार
बनाएं अथवा ईशान को बढ़ाएं।
v • यदि यह भाग घटा हो तो वहां मारुतिदेव की एक तस्वीर,
मूर्ति या संकेत चिह्न लगाएं।
हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति भी लगाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के चंद्र की एक तस्वीर या चित्र
भी लगाएं, दोषों से रक्षा होगी।
v वायुदेव अथवा चंद्र के मंत्रों
का जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
v पूर्णिमा की रात खाने की चीजों
पर पहले चांद की किरणों को पड़ने दें और फिर उनका सवेन करें।
v निर्मित भवन से बाहर खुला स्थान
हो, तो वहां ऐसे वृक्ष लगाएं,
जिनके मोटे चमचमाते पत्ते वायु
में नृत्य करते हों।
v वायव्य दिशा में बने कमरे में
ताजे फूलों का गुलदस्ता रखें।
v इस दिशा में एक छोटा फव्वारा
या एक्वेरियम (मछलीघर) स्थापित करें।
v अपनी मां का यथासंभव आदर करें,
सुबह उठकर उनके चरण छूकर उनका
आशीर्वाद लें और शुभ अवसरों पर उन्हें खीर खिलाएं।
v प्रतिदिन सुबह, खासकर सोमवार को, गंगाजल में कच्चा दूध मिलाकर
शिवलिंग पर चढ़ाएं और शिव चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
v वायव्य दिशा में प्राण-प्रतिष्ठित
मारुति यंत्र एवं चंद्र यंत्र की स्थापना करें।
उत्तर दिशा
• यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो,
तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद
शीशा लगाएं।
• यदि उत्तर का भाग घटा हो,
तो इस दिशा में देवी लक्ष्मी
अथवा चंद्र का फोटो, मूर्ति अथवा कोई संकेत चिह्न लगाएं। लक्ष्मी देवी चित्र में कमलासन पर
विराजमान हों और स्वर्ण मुद्राएं गिरा रही हों।
• विद्यार्थियों और संन्यासियों
को उनके उपयुक्त अध्ययन सामग्री का दान देकर सहायता करें। उत्तर दिशा के स्वामी बुध
से अध्ययन सामग्री का विचार किया जाता है।
• दिशा में हल्के हरे रंग का पेंट
करवाएं।
• उत्तर क्षेत्र की उत्तरी दीवार
पर तोतों का चित्र लगाएं। यह पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए जादू का काम करता है।
• इस दिशा में बुध यंत्र की स्थापना
विधिपूर्वक करें। इसके अतिरिक्त कुबेर यंत्र अथवा लक्ष्मी यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित करें।
• इस तरह ऊपर वर्णित ये सारे उपाय
सहज व सरल हैं जिन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय
किया जा सकता है।
अर्थ व्यवस्था के विशेष वास्तु उपचार
वास्तु शास्त्र का आधार प्रकृति है। आकाश, अग्नि, जल, वायु एवं पृथ्वी इन पांच तत्वों को वास्तु-शास्त्र में
पंचमहाभूत कहा गया है। शैनागम एवं अन्य दर्शन साहित्य में भी इन्हीं पंच तत्वों की
प्रमुखता है। अरस्तु ने भी चार तत्वों की कल्पना की है। चीनी फेंगशुई में केवल दो तत्वों
की प्रधानता है- वायु एवं जल की। वस्तुतः ये पंचतत्व सनातन हैं। ये मनुष्य ही नहीं
बल्कि संपूर्ण चराचर जगत पर प्रभाव डालते हैं। वास्तु शास्त्र प्रकृति के साथ सामंजस्य
एवं समरसता रखकर भवन निर्माण के सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है। ये सिद्धांत मनुष्य
जीवन से गहरे जुड़े हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है-
पन्चवाहि वहत्यग्रमेशां प्रष्टयो युक्ता अनु सवहन्त।
अयातमस्य दस्ये नयातं पर नेदियोवर दवीय ॥ 10 /8 ॥
सृष्टिकर्ता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हें संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हें
अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते हैं। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से
निवास गृह व कार्य गृह आदि का वातावरण तथा वास्तु शुद्ध व संतुलित होता है,
तब प्राणी की प्रगति होती है।
ऋग्वेद में कहा गया है-
ये आस्ते पश्त चरति यश्च पश्यति नो जनः।
तेषां सं हन्मो अक्षणि यथेदं हर्म्थ तथा।
प्रोस्ठेशया वहनेशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः।
स्त्रिायो या : पुण्यगन्धास्ता सर्वाः स्वायपा मसि !!
हे गृहस्थ जनो ! गृह निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य का प्रकाश
सब दिशाओं से आए तथा सब प्रकार से ऋतु अनुकूल हो, ताकि परिवार स्वस्थ रहे। राह चलता राहगीर भी अंदर न
झांक पाए, न ही गृह में वास करने
वाले बाहर वालों को देख पाएं। ऐसे उत्तम गृह में गृहिणी की निज संतान उत्तम ही उत्तम
होती है।
वास्तु शास्त्र तथा वास्तु कला का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार
वेद और उपवेद हैं। भारतीय वाड्.मय में आधिभौतिक वास्तुकला (आर्किटेक्चर) तथा वास्तु-शास्त्र
का जितना उच्चकोटि का विस्तृत विवरण ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद में उपलब्ध है, उतना अन्य किसी साहित्य में नहीं।
गृह के मुख्य द्वार को गृहमुख माना जाता है। इसका वास्तु शास्त्र
में विशेष महत्व है। यह परिवार व गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वत्ता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार
को हमेशा बाकी द्वारों की अपेक्षा बड़ा व सुसज्जित रखने की प्रथा रही है। पौराणिक भारतीय
संस्कृति के अनुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, केले के पत्र या स्वास्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करना चाहिए।
मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला हो। इसे दहलीज भी कहते
हैं। इससे निवास में गंदगी भी कम आती है तथा नकारात्मक ऊर्जाएं प्रवेश नहीं कर पातीं।
प्रातः घर का जो भी व्यक्ति मुख्य द्वार खोले, उसे सर्वप्रथम दहलीज पर जल छिड़कना चाहिए, ताकि रात में वहां एकत्रित दूषित
ऊर्जाएं घुलकर बह जाएं और गृह में प्रवेश न
कर पाएं।
गृहिणी को चाहिए कि वह प्रातः सर्वप्रथम घर की साफ-सफाई करे
या कराए। तत्पश्चात स्वयं नहा-धोकर मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर एकदम सामने स्थल पर
सामर्थ्य के अनुसार रंगोली बनाए। यह भी नकारात्मक ऊर्जाओं को रोकती है। मुख्य प्रवेश
द्वार के ऊपर केसरिया रंग से ९ग९ परिमाण का स्वास्तिक बनाकर लगाएं। मुख्य प्रवेश द्वार
को हरे व पीले रंग से रंगना वास्तुसम्मत होता है।
खाना बनाना शुरू करने से पहले पाकशाला का साफ होना अति आवश्यक
है। रोसोईये को चाहिए कि मंत्र पाठ से ईश्वर को याद करे और कहे कि मेरे हाथ से बना
खाना स्वादिष्ट तथा सभी के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक हो। पहली चपाती गाय के, दूसरी पक्षियों के तथा तीसरी
कुत्ते के निमित्त बनाए। तदुपरांत परविार का भोजन आदि बनाए।
विशेष वास्तु उपचार
ü निवास गृह या कार्यालय में शुद्ध
ऊर्जा के संचार हेतु प्रातः व सायं शंख-ध्वनि
करें। गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें तथा क्क का उच्चारण करते हुए समस्त
गृह में धूम्र को घुमाएं।
ü प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर
सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
ü यदि परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य
अनुकूल रहेगा, तो गृह का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। ध्यान रखें, आईने व झरोखों के शीशों पर धूल नहीं रहे। उन्हें प्रतिदिन
साफ रखें। गृह की उत्तर दिशा में विभूषक फव्वारा या मछली कुंड रखें। इससे परिवार में
समृद्धि की वृद्धि होती है।
वास्तु दोष निवारण के कुछ सरल उपाय
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो
जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य
नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है।
Ø पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण)
में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी
चाहिए।
Ø पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व
(ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान
के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
Ø घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा
करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि
नहीं होगी।
Ø पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा
नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन
भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक
मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड
हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
Ø घर में दरवाजे अपने आप खुलने
व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते
तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है।
इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें।
Ø खिड़कियां खोलकर रखें,
ताकि घर में रोशनी आती रहे।
Ø घर के मुख्य द्वार पर गणपति को
चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
Ø o महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले,
तिजोरी आदि में नहीं रखें,
सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा।
Ø घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे
हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
Ø सामान्य स्थिति में संध्या के
समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना
चाहिए।
Ø घर में पढ़ने वाले बच्चों का
मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
Ø घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन
साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
Ø उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश
हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
Ø अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार
की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
Ø भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव
अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
Ø पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज
सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति
बनी रहेगी।
Ø भवन के चारों ओर जल या गंगा जल
छिड़कें।
Ø घर के अहाते में कंटीले या जहरीले
पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
Ø कहीं जाने हेतु घर से रात्रि
या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें।
Ø किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही
खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।
Ø घर में या घर के बाहर नाली में
पानी जमा नहीं रहने दें।
Ø घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने
दें, अन्यथा धन की हानि होगी।
Ø शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं
रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है।
Ø भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में
पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए।
अल्पविराम !
जय श्री राम
अक्षय शर्मा
9837378309-6839
pt.akshayg@gmail.com
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