भारतीय हवन के शारीरिक और वैज्ञानिक लाभ
भारतीय हवन के
शारीरिक और वैज्ञानिक लाभ :-
आयुर्वेद के विभिन्न
ग्रंथों के प्रयोग से जो अग्नि में औषधी डालकर धूनी से ठीक होते है वह भी यज्ञ
चिकित्सा का रूप है।
नीम के पत्ते, वच, कूठ, हरण, सफ़ेद सरसों, गूगल के चूर्ण को घी में
मिलाकर धूप दें इससे विषमज्वर नष्ट हो जाता है।
नीम के पत्ते, वच, हिंग, सैंधानमक, सरसों, समभाग घी में मिलाकर धूप
दें उससे व्रण के कर्मी खाज पीव नष्ट होते है।
मकोय के एक फल को घृत
लगाकर आग पर डालें उसकी धूनी से आँख से कर्मी निकलकर रोग नष्ट हो जाते है।
वैदिक यज्ञ चिकित्सा>>>>>>>>>
अगर, कपूर, लोवान, तगर, सुगन्धवाला, चन्दन, राल
इनकी धूप देने से दाह शांत होती है।
अर्जुन के फूल बायविडंग, कलियारी
की जड़, भिलावा, खस, धूप सरल, राल, चन्दन, कूठ
समान मात्रा में बारीक़ कुटें इसके धूम से कर्मी नष्ट होते है।
खटमल तथा सिर के जुएं भी नष्ट हो जाते है
सहजने के पत्तों के रस को ताम्र पात्र में डालकर तांबे की मूसली
से घोंटें घी मिलाकर धूप दें।
इससे आँखों की पीड़ा अश्रुस्राव आंखो का किरकिराहट व शोथ दूर
होता है।
असगन्ध निर्गुन्डी बड़ी कटेरी, पीपल
के धूम से अर्श (बवासीर) की पीड़ा शांत होती है।
महामारी प्लेग Pleg में
भी यज्ञ से आरोग्य लाभ होता है।
हवन गैस hawan Gas से
रोग के कीटाणु नष्ट होते है।
जो नित्य हवन करते हैं उनके शरीर व आसपास में ऐसे रोग उत्पन्न
ही नहीं होते जिनमें किसी भीतरी स्थान से पीव हो।
यदि कहीं उत्पन्न हो गया हो तो वह मवाद हवन गैस से शीघ्र सुख
जाता है और घाव अच्छा हो जाता है।
हवन hawan में
शक्कर जलने से हे फीवर नहीं होता।
हवन hawan में
मुनक्का जलने से टाइफाइड फीवर के कीटाणु नष्ट हो जाते है।
पुष्टिकारक वस्तुएं जलने से मिष्ठ के अणु वायु में फ़ैल कर अनेक
रोगों को दूर कर पुष्टि भी प्रदान करते है।
यज्ञ सौरभ महौषधि है। यज्ञ में बैठने से ह्रदय रोगी को लाभ
मिलता है।
गिलोय के प्रयोग से हवन करने से कैंसर के रोगी को लाभ होने के
उदहारण भी मिलते है।
गूगल के गन्ध से मनुष्य को आक्रोश नहीं घेरता और रोग पीड़ित नहीं
करते ।
गूगल, गिलोय, तुलसी
के पत्ते, अतीस, जायफल, चिरायते के फल सामग्री में मिलाकर यज्ञ
करने से मलेरिया ज्वर दूर होता है।
गूगल, पुराना
गुड, केशर, कपूर, शीतलचीनी, बड़ी इलायची, सौंठ, पीपल, शालपर्णी पृष्ठपर्णी मिलाकर यज्ञ करने
से संग्रहणी दूर होती है।
चर्म रोगों में सामग्री में चिरायता गूगल कपूर, सोमलता, रेणुका, भारंगी के बीज, कौंच के बीज, जटामांसी, सुगंध कोकिला, हाउवेर, नागरमौथा, लौंग डालने से लाभ होता है।
जलती हुई खांड के धुंए में वायु शुद्ध करने की बड़ी शक्ति होती
है।
इससे हैजा, क्षय, चेचक आदि के विष शीघ्र नष्ट हो जाते
है।
डा. हैफकिन फ़्रांस के मतानुसार घी जलने से चेचक के कीटाणु मर
जाते है।
घी और केशर के हवन से इस महामारी का नाश हो सकता है।
शंख वृक्षों के पुष्पों से हवन करने पर कुष्ठ रोग दूर हो जाते
है।
अपामार्ग के बीजों से हवन करने पर अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर
होते है।
ज्वर दूर करने के लिए आम के पत्ते से हवन करें।
वृष्टि लाने के लिए वेंत की समिधाओं और उसके पत्रों से हवन
करें।
वृष्टि रोकने के लिए दूध और लवण से हवन करें।
ऋतू परिवर्तन पर होने वाली बहुत सि बीमारियां सर्दी जुकाम
मलेरिया चेचक आदि रोगों को यज्ञ से ठीक किया जा सकता है।
एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली
हवन सामग्री पर :--
1. सर के रोग:-
सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी आदि के लिए
ब्राह्मी, शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद
, कपूर , पीली सरसो
2. स्त्री रोगों:-वात पित्त, लम्बे
समय से आ रहे बुखार हेतु
बेल, श्योनक, अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय
इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम
3. पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु:-
सफेद
चन्दन का चूरा , अगर
, तगर , अश्वगंधा
, पलाश , कपूर
, मखाने, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , लौंग , बड़ी
इलायची , गोला
4. पेट एवं लिवर रोग हेतु:-
भृंगराज
, आमला , बेल
, हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा
, गुग्गुल घी , इलायची
5. श्वास रोगों हेतु:-
वन
तुलसी, गिलोय, हरड , खैर अपामार्ग, काली मिर्च, अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस
6. कैंसर नाशक हवन:-
गुलर
के फूल, अशोक की छाल, अर्जन की छाल, लोध, माजूफल, दारुहल्दी, हल्दी, खोपारा, तिल, जो
, चिकनी सुपारी, शतावर , काकजंघा, मोचरस, खस, म्न्जीष्ठ, अनारदाना, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, ,गंधा विरोजा, नारवी ,जामुन
के पत्ते, धाय के पत्ते, सब को सामान मात्रा में लेकर चूर्ण
करें तथा इस में दस गुना शक्कर व एक गुना केसर से हवन करें |
7. संधि गत ज्वर ( जोड़ों का दर्द ) :-
संभालू
( निर्गुन्डी ) के पत्ते , गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम के पत्ते, गुग्गल, सफ़ेद
सरसों, नीम के पत्ते, रल आदि का संभाग लेकर चूरन करें , घी मिश्रित धुनी दें, हवन करें।
8. निमोनियां नाशक हवन :-
पोहकर
मूल, वाच, लोभान, गुग्गल, अधुसा, सब को संभाग ले चूरन कर घी सहित हवं
करें व धुनी दें |
9. जुकाम नाशक :-
खुरासानी
अजवायन, जटामासी , पश्मीना कागज, लाला बुरा ,सब को संभाग ले घी सचूर्ण कर हित हवं
करें व धुनी दें |
10. पीनस ( बिगाड़ा हुआ जुकाम ) :-
बरगद
के पत्ते, तुलसी के पत्ते, नीम के पत्ते, वा|य्वडिंग,सहजने की छाल , सब को समभाग ले चूरन कर इस में धूप का
चूरा मिलाकर हवन करें व धूनी दें।
11. श्वास – कास नाशक :-
बरगद
के पत्ते, तुलसी के पत्ते, वच, पोहकर
मूल, अडूसा – पत्र, सब का संभाग कर्ण लेकर घी सहित हवं कर
धुनी दें |
12. सर दर्द नाशक :-
काले
तिल और वाय्वडिंग चूरन संभाग ले कर घी सहित हवं करने से व धुनी देने से लाभ होगा |
13. चेचक नाशक:-
खसरा
गुग्गल, लोभान, नीम
के पत्ते, गंधक , कपूर, काले तिल, वाय्वासिंग , सब का संभाग चूरन लेकर घी सहित हवं
करें व धुनी दें।
14. जिह्वा तालू रोग नाशक:-
मुलहठी, देवदारु, गंधा
विरोजा, राल, गुग्गल, पीपल, कुलंजन, कपूर और लोभान सब को संभाग ले घी सहित
हवं करीं व धुनी दें |
15. टायफायड :-
यह
एक मौसमी व भयानक रोग होता है | इस
रोग के कारण इससे यथा समय उपचार न होने से रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है तथा समय
पर निदान न होने से मृत्यु भी हो सकती है | यदि
ऐसे रोगी के पास नीम , चिरायता
, पितपापडा , त्रिफला , आदि जड़ी बूटियों को समभाग लेकर इन से
हवन किया जावे तथा इन का धुआं रोगी को दिया जावे तो लाभ होगा |
16. ज्वर :-
ज्वर
भी व्यक्ति को अति परेशान करता है किन्तु जो व्यक्ति प्रतिदिन यग्य करता है , उसे ज्वर नहीं होता | ज्वर आने की अवास्था में अजवायन से
यज्ञ करें तथा इस की धुनी रोगी को दें | लाभ
होगा |
17. नजला :-
लगातार
बना रहने वाला सिरदर्द जुकाम यह मानव को अत्यंत परेशान करता है | इससे श्रवण शक्ति , आँख की शक्ति कमजोर हो जाते हैं तथा सर
के बाल सफ़ेद होने लगते हैं | लम्बे
समय तक यह रोग रहने पर इससे दमा आदि भयानक रोग भी हो सकते हैं | इन के निदान के लिए मुनका से हवन करें
तथा इस की धुनी रोगी को देने से लाभ होता है |
18. नेत्र ज्योति :-
नेत्र
ज्योति बढ़ाने का भी हवन एक उत्तम साधन है | इस
के लिए हवन में शहद की आहुति देना लाभकारी है | शहद
का धुआं आँखों की रौशनी को बढ़ता है।
19. मस्तिष्क बल :-
मस्तिष्क
की कमजोरी मनुष्य को भ्रांत बना देती है | इसे
दूर करने के लिए शहद तथा सफ़ेद चन्दन से धूनी देना उपयोगी होता है |
20. वातरोग :-
वातरोग
में जकड़ा व्यक्ति जीवन से निराश हो जाता है | इस
रोग से बचने के लिए यज्ञ सामग्री में पिप्पली ,शिरीष
छाल तथा हरड़ का उपयोग करना चाहिए | इस
के धुएं से रोगी को लाभ मिलता है |
21. मनोविकार :-
मनोरोग
से रोगी जीवित ही मृतक समान हो जाता है | इस
के निदान के लिए गुग्गल तथा अपामार्ग का उपयोग करना चाहिए | इस का धुआं रोगी को लाभ देता है |
22. मधुमेह :
यह
रोग भी रोगी को अशक्त करता है | इस
रोग से छुटकारा पाने के लिए हवन में गुग्गल, लोबान
, जामुन वृक्ष की छाल, करेला का द्न्थल, सब संभाग मिला आहुति दें व् इस की धुनी
से रोग में लाभ होता है |
0 टिप्पणियाँ