G-B7QRPMNW6J भगवान विष्णु ने क्यों लिया था मत्स्य अवतार?15 दिसंबर, 2021 (बुधवार)
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भगवान विष्णु ने क्यों लिया था मत्स्य अवतार?15 दिसंबर, 2021 (बुधवार)

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भगवान विष्णु ने क्यों लिया था मत्स्य अवतार?

15 दिसंबर, 2021 (बुधवार)

आज मत्स्य द्वादशी है क्योंकि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था, तब से इस दिन को मत्स्य द्वादशी के नाम से मनाया जाने लगा। मत्स्यवतार श्रीहरि के विशेष अवतारों में से एक है, जो कि भगवान विष्णु का प्रथम अवतार है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और और सभी कार्य सिद्ध होते हैं।

मत्स्य द्वादशी का शुभ मुहूर्त

द्वादशी तिथि प्रारम्भ - 14 दिसंबर, मंगलवार रात 11 बजकर 38 से।
द्वादशी तिथि समाप्त - 15 दिसंबर, बुधवार रात 02 बजकर 03 मिनट तक।

मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि

आज के दिन विशेष विष्णुजी की विशेष पूजा-अर्चना का खास महत्व है। मत्स्य द्वादशी के दिन चार जल से भरे हुए कलश में फूल डालकर घर के मंदिर में स्थापित करें। अब चारों कलश को तिल की घर खली से ढक कर इनके सामने भगवान विष्णु की पीली धातु की प्रतिमा की स्थापना कर दें। स्थापित किए गए चारों कलशों की पूजा समुद्र के रूप में की जाती है। अब भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं। केसर और गेंदे के फूल भगवान को विशेष प्रकार से अर्पित करें। साथ ही तुलसी के पत्ते चढ़ाएं तथा मिष्ठान का भोग लगाएं। इसके बाद ओम मत्स्य रूपाय नमः मंत्र का जाप करें। इस प्रकार सभी भक्तों को प्रसाद बांट कर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।

मत्स्य अवतार की पौराणिक कथा

एक समय की बात है जब सृष्टी के नष्ट होने से पहले एक सत्यव्रत नाम के राजा तप कर रहे थे। जिन्हें मनु के नाम से भी जाना जाता था। वे बड़े ही उदार हृदय वाले और पुण्यात्मा व्यक्ति थे। एक दिन सूर्योदय के बाद राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ दे रहे थे। तभी अचानक से उनके हाथों में एक छोटी सी मछली आ गई। ये देखकर वे सोचने लगे कि इसको वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला - आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। ये सुनकर राजा सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडल में डाल लिया। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। एक ही रात में मछली का शरीर इतना बड़ा हो गया कि कमंडल मछली के रहने के लिए छोटा पड़ने लगा।

अब दूसरे दिन मछली राजा सत्यव्रत से बोली - कि हे राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढिए, क्योंकि मेरा शरीर बड़ा हो गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है। तब राजा ने मछली को कमंडल से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। कुछ समय बाद यह मटका भी उसके रहने के लिए छोटा पड़ गया। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को निकालकर एक सरोवर में डाल दिया, किंतु वह सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। इसके बाद राजा सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर समुद्र में डाल दिया। उसके बाद देखते ही देखते मछली ओर बड़ी हो गई, तब राजा को यह समझ आया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है।

फिर राजा आश्चर्यचकित होकर बोले -मुझे आश्चर्यचकित करने वाले आप कौन हैं? तब मत्स्यरूपधारी श्री हरि ने उत्तर दिया - हे राजन! एक हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जिससे जगत में चारों ओर हाहाकार फैला हुआ है जिससे अज्ञान और अधर्म का अंधकार छा गया है। इसलिए मैंने हयग्रीव को मारने के लिए मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से ठीक सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी और समुद्र उमड़ उठेगा जिससे भयानक वृष्टि होगी और सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जिसके कारण पृथ्वी पर चारों तरफ पानी ही पानी होगा। तब आपके पास एक नाव पहुंचेगी और आप सभी अनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्त ऋषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैं उसी समय आपको पुन: दर्शन दूंगा और आपको आत्मतत्त्व का ज्ञान प्रदान करूंगा। इसके बाद राजा सत्यव्रत उसी दिन से श्रीहरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे और ठीक सातवें दिन पृथ्वी पर प्रलय आ गया और समुद्र उमड़कर अपनी सीमाओं से बाहर बहने लगा और थोड़ी ही देर में संपूर्ण पृथ्वी जल में समा गई।

तभी एक नाव दिखाई पड़ी और राजा सत्यव्रत सप्त ऋषियों के साथ उस नाव में बैठ गए। उन्होंने नाव में अनाज और औषधियों के बीज रख दिए। तभी मत्स्यरूपी भगवान ने दर्शन दिए और राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो आज हमारे धर्म में मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है। आत्मज्ञान पाकर राजा सत्यव्रत का जीवन धन्य हो गया। जैसे ही प्रलय का प्रकोप शांत हुआ, मत्स्यरूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद हासिल कर लिए और ब्रह्माजी को पुन: दे दिए।

इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों के साथ सप्त ऋषियों और राजा सत्यव्रत का उद्वार किया। इसके साथ ही सृष्टि के संक्षरक भगवान विष्णु ने सतयुग का प्रारम्भ किया और इसके साथ राजा मनु के वंशज को मनुष्य जाति से जाना गया।

मत्स्य द्वादशी पर किए जानें वाले उपाय

  • सभी प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने और सभी संकटों को दूर करने के लिए इस दिन के दिन मछलियों को दाना डालें।
  • इस दिन नव धान को अपने सिर से वार कर पानी में डाल दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
  • आर्थिक संकट को दूर करने के लिए आज के दिन भगवान विष्णु के सम्मुख रोली मिले गाय के घी का दशमुखी दीपक जलाएं।
  • किसी भी संकट या विवाद को दूर करने के लिए भगवान विष्णु पर अर्पित किए गए गेहूं के दाने मछलियों को खिलाएं।
  • नुकसान से बचने के लिए मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के प्रसाद को गाय को खिलाएं।
  • व्यापार में सफलता पाने के लिए भगवान विष्णु पर चढ़ा सिक्का जल में प्रवाहित कर दें।
  • परिवार में खुशहाली लाने के लिए तुलसी की माला से भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें।
    ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः

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