जानें क्या
है खरमास
का महत्व, इसका
नाम क्यों
पड़ा खरमास
खरमास को खर मास कहने के पीछे भी पौराणिक कथा है। खर का तात्पर्य गधे से है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सूर्य अपने सात घोड़ों यानी रश्मियों के सहारे इस सृष्टि की यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है। लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सातों घोडे़ हेमंत ऋतु में थककर एक तालाब के निकट रुक जाते हैं, ताकि पानी पी सकें। सूर्य को अपना दायित्व बोध याद आ जाता है कि वह रुक नहीं सकते, चाहे घोड़ा थककर भले ही रुक जाए। यात्रा को अनवरत जारी रखने के लिए तथा सृष्टि पर संकट नहीं आए, इसलिए भगवान भास्कर तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में जोतकर यात्रा को जारी रखते हैं। गधे अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे, इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो धरती पर प्रकट होता है। मकर संक्रांति के दिन पुन: सूर्यदेव अपने घोड़ों को रथ में जोतते हैं, तब उनकी यात्रा पुन: रफ्तार पकड़ लेती है। इसके बाद धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है।
चूंकि सनातन
धर्म में
सूर्य को
महत्वपूर्ण कारक
ग्रह माना
जाता है, ऐसे
में सूर्य
की कमजोर
स्थिति को
अशुभ माना
जाता है
इस कारण
खरमास में
किसी भी
तरह के
मांगलिक कार्यों
पर रोक
लगा दी
जाती है।
खरमास के नियम
धार्मिक
मान्यता के
अनुसार खरमास
के महीने
में पूजा-पाठ,तीर्थ यात्रा, मंत्र
जाप, भागवत गीता, रामायण
पाठ और
विष्णु भगवान
की पूजा
करना बहुत
शुभ माना
गया है।
खरमास के
दौरान दान, पुण्य, जप, और
भगवान का
ध्यान लगाने
से जीवन
के सभी
कष्ट दूर
हो जाते
हैं। इस
मास में
भगवान शिव
की आराधना
करने से
कष्टों का
निवारण होता
है। ब्रह्म
मुहूर्त में
उठकर स्नान
आदि से
निवृत होकर
तांबे के
लोटे में
जल, रोली या
लाल चंदन, शहद
लाल पुष्प
डालकर सूर्यदेव
को अर्घ्य
दें। इस
महीने में
सूर्यदेव को
अर्घ्य देना
बहुत फलदाई
है।
0 टिप्पणियाँ