जगन्नाथ भगवान की मूर्ति अधूरी क्यों है?
उत्सुकतावश राजा इंद्रदयुम्न रोज दरवाजे के बाहर से मूर्ति निर्माण की आवज सुनने जाने लगे। एक दिन राजा इंद्रदयुम्न को दरवाजे के बाहर कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उन्हें लगा कहीं विश्वकर्मा जी चले तो नहीं गए। ये जानने के लिए जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला देवशिल्पी विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए और मूर्तियां वैसी ही अधूरी रह गई।
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राजा कमरे के अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं. वास्तव में वह बूढ़ा मूर्तिकार स्वयं विश्वकर्मा जी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां बनाने धरती पर आए थे.
Jagannath Puri Ratha Yatra 2021: पुरी धाम के भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों हैं अधूरी, जानिए पौराणिक कथा
हर साल की तरह इस साल भी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। परंतु कोरोना महामारी के प्रोटोकॉल के कारण आम जनता को रथयात्रा में शामिल होने की मनाही है। इसके साथ ही कई अन्य कड़े नियमों का भी पालन किया जाएगा। परंतु रथ यात्रा की सभी रस्मों का विधिवत पालन होगा। इस साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 12 जुलाई को शुरू होगी तथा इसका समापन देवशयनी एकादशी पर 20 जुलाई को होगा। पुरी का जगन्नाथ धाम हिंदुओं के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है, इसके साथ कई रोचक और रहस्मयी पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक रहस्य हैं भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति का, आइए जानतें हैं इस कथा को..
देवशिल्पी विश्वकर्मा की शर्त
हिंदू धर्म में खण्डित या अधूरी मूर्ति की पूजा को अशुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदुओं के चार धामों में से एक पुरी के जगन्नाथ धाम की मूर्तियां अधूरी हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि क्यों जगन्नाथ भगवान की अधूरी मूर्ति की पूजा की जाती है। कथा के अनुसार राजा इंद्रदयुम्न पुरी में मंदिर बनावा रहे थे तो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य उन्होंने देव शिल्पी विश्वकार्मा को सौंपा। लेकिन भगवान विश्वकर्मा ने शर्त रखी की वो मूर्ति का निर्माण बंद कमरे में करेंगे और यदि किसी ने उन्हें मूर्त बनाते देखने की कोशिश की तो वो उसी क्षण कार्य छोड़ कर चले जाएंगे। राजा इंद्रदयुम्न ने शर्त मान ली और विश्वकर्मा जी ने मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया।
राजा इंद्रदयुम्न की भूल
उत्सुकतावश राजा इंद्रदयुम्न रोज दरवाजे के बाहर से मूर्ति निर्माण की आवज सुनने जाने लगे। एक दिन राजा इंद्रदयुम्न को दरवाजे के बाहर कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उन्हें लगा कहीं विश्वकर्मा जी चले तो नहीं गए। ये जानने के लिए जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला देवशिल्पी विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए और मूर्तियां वैसी ही अधूरी रह गई। आज तक भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और बहिन सुभद्रा की मूर्तियां वैसी ही अधूरी हैं लेकिन उनके प्रति आस्था और विश्वास भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
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विश्व में अनोखी हैं ये तीन अधूरी मूर्ति, इनके दर्शन मात्र से हो जाती हैं, मनोकामना पूरी- यहां पढ़े पूरी खबर
इनके दर्शन मात्र से हो जाती हैं मनोकामना पूरी
ईश्वर को निराकार ब्रह्म भी कहा जाता हैं लेकिन उसके निराकार रूप को कोई नहीं देख सकता इसलिए साकार रूप में ईश्वर की मूर्तिया मंदिरों में स्थापित की जाती हैं । जिससे ईश्वर में मनुष्य की आस्था और श्रद्धा विश्वास बना रहे । आपने सूना या देखा ही होगा की प्रत्येक मंदिरों में सभी भगवानों की मूर्तियां पूर्ण आकार लिए ही स्थापित हैं, लेकिन एक ऐसा प्रसिद्ध मंदिर भी हैं जिसमें सदियों से विराजमान भगवान की मूर्ति आज भी अधूरी ही स्थापित हैं, कहा जाता हैं कि इस मंदिर की इन अधूरी मूर्तियों के दर्शन मात्र से मनुष्य की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं ।
यहां हैं अधूरी मूर्तियों का मंदिर
इसलिए रह गई भगवान की मूर्ति अधूरी
शास्त्रों की कथानुसार जब महान शिल्पकार देव विश्वकर्मा जी भगवान जगन्नाथ जी, बलराम जी और देवी सुभद्रा जी मूर्ति बना रहे थे तब वहां के राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह दरवाज़ा बंद करके ही मूर्तियों का निर्माण करेंगे, और जब तक मूर्तियां पूरी नहीं बन जाती स्वमं राजा या अन्य कोई भी दरवाज़ा नहीं खोलेगा । अगर किसी ने मूर्ति बनने से पूर्व ही दरवाज़ा खोला तो वह मूर्ति बनाना छोड़कर वहां से तुरंत ही चले जायेंगे ।
एक दिन बंद दरवाज़ा के अंदर मूर्ति निर्माण का काम हो रहा है या नहीं यह जानने के लिए राजा रोज़ दरवाज़ा के बहार खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज़ सुना करते थे । एक दिन राजा को आवाज़ नहीं सुनाई दी, ऐसे में राजा को लगा कि विश्वकर्मा जी काम छोड़कर चले गए, और राजा ने दरवाजे खोल दिए राजा के द्वारा दरवाजे खोले जाने पर, देव विश्वकर्मा जी अपनी शर्त के अनुसार वहां से तुरंत ही ग़ायब हो गए, और भगवान श्री जगन्नाथ, श्री बलभद्र और देवी सुभद्रा जी की मूर्तियां अधूरी ही रह गई, और उस दिन से लेकर आज तक भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर की ये तीनों मूर्तियां अधूरी हैं । कहा जाता हैं कि इन अधूरी मूर्तियों के दर्शन मात्र से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं ।
ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ धाम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है. श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है. इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका खुलासा इंजीनियरिंग में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी आज तक नहीं कर पाए. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ होने के इस शुभ अवसर पर आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के बारे में बेहद ही रोचक जानकारी देने जा रहे हैं. ये तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है लेकिन ये अधूरी क्यों है, इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए जानते हैं मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अधूरा होने के पीछे का रहस्य क्या है?
इस वजह से आज भी अधूरी हैं भगवान की मूर्तियां
मान्यताओं के मुताबिक मालवा नरेश इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे. एक बार सपने में उन्हें स्वयं श्री हरि ने दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें दारु (लकड़ी) का एक लट्ठा मिलेगा. उस लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति का निर्माण कराओ. राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें वहां लकड़ी का लट्ठा मिल गया. अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाई जाए. कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए.
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Jagannath Rath Yatra 2021: आज तक पूरी नहीं बनी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, वजह जानने के लिए पढ़ें ये दिलचस्प कथा
ये तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है लेकिन ये अधूरी क्यों है, इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं.
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जगन्नाथ भगवान की मूर्ति अधूरी क्यों है? |
आज तक क्यों अधूरी है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ धाम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है. श्री जगन्नाथ मंदिर भगवान श्री कृष्ण के भक्तों के लिए सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमुना है. इसकी बनावट के कुछ राज तो आज भी राज ही हैं जिनका खुलासा इंजीनियरिंग में बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले भी आज तक नहीं कर पाए. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ होने के इस शुभ अवसर पर आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के बारे में बेहद ही रोचक जानकारी देने जा रहे हैं. ये तो हम सभी जानते हैं कि मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है लेकिन ये अधूरी क्यों है, इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए जानते हैं मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अधूरा होने के पीछे का रहस्य क्या है?
इस वजह से आज भी अधूरी हैं भगवान की मूर्तियां
मान्यताओं के मुताबिक मालवा नरेश इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे. एक बार सपने में उन्हें स्वयं श्री हरि ने दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें दारु (लकड़ी) का एक लट्ठा मिलेगा. उस लकड़ी के लट्ठे से मूर्ति का निर्माण कराओ. राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें वहां लकड़ी का लट्ठा मिल गया. अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाई जाए. कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं श्री विश्वकर्मा के साथ एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए.
मूर्तिकार ने मूर्ति बनाने के लिए राजा के सामने रखी थी ये शर्त
उन्होंनें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें लेकिन उस कारीगर के रूप में आए बूढ़े ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी. मूर्तिकार ने कहा कि वे मूर्ति बनाने का कार्य बंद कमरे में करेंगे और यदि कमरा खुला तो वह मूर्ति बनाने के काम को बीच में ही छोड़कर चले जाएंगे. राजा ने मूर्तिकार की शर्त मान ली और कमरा बाहर से बंद करवा दिया. लेकिन काम की समीक्षा करने के लिए राजा कमरे के आसपास घुमने जरूर आता था. महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज नहीं आ रही थी. जिसके बाद राजा को जिज्ञासा हुई और उससे रहा नहीं गया.
इस वजह से अधूरी है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति
राजा कमरे के अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं. वास्तव में वह बूढ़ा मूर्तिकार स्वयं विश्वकर्मा जी थे, जो भगवान विष्णु के आग्रह पर जगन्नाथ मंदिर में कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां बनाने धरती पर आए थे. राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यही दैव की मर्जी है. तब उसी अवस्था में मूर्तियां स्थापित की गई. आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं.
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