Beyond of science बच्चे के जन्म से सम्बन्ध रखता है स्त्री का मांग में सिंदूर भरना
ब्रह्मरंध्र जीव के लिए एक प्रवेश द्वार है
सिर पर सबसे ऊपर ब्रह्मरंध्र नाम का एक बिंदु होता है। जब बच्चा
पैदा होता है तो उसके सिर पर एक नर्म जगह होती है, जहां तब तक हड्डियां विकसित नहीं
होतीं, जब तक बच्चा एक खास उम्र में नहीं पहुंच जाता।
आप
भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप
चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें
कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो
यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
रंध्र एक संस्कृत शब्द है मगर दूसरी भारतीय भाषाओं में भी
इसका इस्तेमाल होता है। रंध्र का मतलब है मार्ग, जैसे
कोई छोटा छिद्र या सुरंग। यह शरीर का वह स्थान होता है, जिससे
होकर जीवन भ्रूण में प्रवेश करता है।
जीवन प्रक्रिया में इतनी जागरूकता होती है कि वह अपने विकल्पों को
खुला रखता है। वह देखता है कि यह शरीर उस जीवन को बनाए रखने में सक्षम है या नहीं।
इसलिए वह उस द्वार को एक खास समय तक खुला रखता है ताकि अगर उसे लगे कि यह शरीर
उसके अस्तित्व के लिए ठीक नहीं है तो वह उसी रास्ते से चला जाए। वह शरीर में मौजूद
किसी अन्य मार्ग से नहीं जाना चाहता, वह जिस तरह आया था, उसी तरह जाना चाहता है। एक अच्छा मेहमान हमेशा मुख्य द्वार से आता
है और उसी से वापस जाता है। अगर वह मुख्य द्वार से आकर पिछले दरवाजे से चला जाए तो
इसका मतलब है कि वह आपका घर साफ करके गया है! आप भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा
तरीका है।
ब्रह्मरंध्र एक ‘एंटीना’ है
ब्रह्मरंध्र के बारे में बहुत कुछ कहा गया है और कई किताबें लिखी
गई हैं। दुर्भाग्य से कई लोग कल्पना करना शुरू कर देते हैं कि उनके सिर के उपरी
हिस्से में कुछ हो रहा है।
अगर आपकी भौतिकता से परे कोई आयाम आपके भीतर निरंतर सक्रिय
प्रक्रिया बन जाता है, तो कुछ समय बाद आम तौर पर
सुप्त रहने वाले ये दो चक्र जाग्रत हो जाते हैं।
आपको यह समझने की जरूरत है कि आप अपने शरीर के जिस हिस्से पर
अपने दिमाग को एकाग्र करेंगे, उसी में आपको कुछ सनसनी महसूस
होगी। आप प्रयोग करके देख सकते हैं। अपनी छोटी उंगली के सिरे पर अपना ध्यान एकाग्र
करें, आपको
वहां काफी संवेदना महसूस होने लगेगा। शरीर में कई बार यहां-वहां मनोवैज्ञानिक
मरोड़ और ऐंठन महसूस होती रहती है, खासकर
अगर आप जल्दी परेशान होने वाले या तनाव में आ जाने वाले शख्स हैं। ऐसा होने पर ये
नहीं समझ लेना चाहिए, कि शरीर में कोई महान
प्रक्रिया हो रही है।
शरीर में 114 चक्र हैं, जिनमें से दो भौतिक शरीर से बाहर हैं। अगर आपकी भौतिकता से परे कोई आयाम आपके भीतर निरंतर सक्रिय प्रक्रिया बन जाता है, तो कुछ समय बाद आम तौर पर सुप्त रहने वाले ये दो चक्र जाग्रत हो जाते हैं। उनके सक्रिय होने पर आपके सिर पर एक एंटीना बन जाता है जो आपको जीवन का एक खास नजरिया प्रदान करता है!
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