G-B7QRPMNW6J Jyeshtha Purnima Vrat 2022 अखंड सौभाग्य के लिए व्रत से दूर करें चंद्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत विधि
You may get the most recent information and updates about Numerology, Vastu Shastra, Astrology, and the Dharmik Puja on this website. **** ' सृजन और प्रलय ' दोनों ही शिक्षक की गोद में खेलते है' - चाणक्य - 9837376839

Jyeshtha Purnima Vrat 2022 अखंड सौभाग्य के लिए व्रत से दूर करें चंद्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत विधि

AboutAstrologer

Jyeshtha Purnima Vrat 2022 अखंड सौभाग्य के लिए व्रत से दूर करें चंद्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत विधि

Jyeshtha Purnima Vrat 2022 For good luck keep away from fasting method of Chandradosh Puja
Jyeshtha Purnima Vrat 2022 अखंड सौभाग्य के लिए व्रत से दूर करें चंद्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत विधि


साल 2022 में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 14 जून दिन मंगलवार को पड़ रही है। साथ ही इस दिन ज्येष्ठ का अंतिम बड़ा मंगल भी है। इस पूर्णिमा में व्रत पूजन करने से चंद्र दोष दूर होता है। भीषण गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए लोगों को प्रयासरत रहना चाहिए। ऐसे में किसी भी व्रत पूजन का विशेष महत्व है। अगर पूर्णिमा के दिन व्रत किया जाता है, तो उसे पितृदोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है। संतान सुख भी प्राप्त होता है और चंद्र दोष भी दूर हो जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत होता है। इस दिन भी सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत तरह की व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती है। सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस जगहों की सुहागिन महिलाएं उत्तर भारतीय की तुलना में 15 दिन के बाद वट सावित्री का व्रत रखती हैं।  जानिए वट पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

वट यानी बरगद के पेड़ की आयु बहुत लंबी होती है. यही कारण है कि वट पूर्णिमा के दिन महिलाएं व्रत रखकर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. साथ ही अपने पति और घर-परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार,  वट वृक्ष के नीचे तपस्या करके सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी. वहीं हिंदू धर्म में माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर त्रिदेवों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है. इसलिए इस धार्मिक दृष्टि से बरगद के पेड़ को बहुत खास माना जाता है. 

ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा की तिथि - 13 जून रात 9:02 पर शुरू होकर और 14 जून दिन मंगलवार को समाप्त होगी।

पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त प्रात: 11:54 से दोपहर 12:49 तक रहेगा।

पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय 7:29 पर है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत चंद्रोदय समय

पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय शाम 7 बजकर 29 मिनट है। ऐसे में चंद्रदेव की पूजा का विशिष्ट लाभ है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का व्रत रखने वाले सुबह-सुबह स्नान करके व्रत का प्रारंभ करते हैं। महिलाएं व्रत के दिन फलाहार रहती हैं। शाम के समय चंद्र दर्शन करके ही व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन लोग सत्यनारायण व्रत की कथा का श्रवण भी करते हैं। माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना भी की जाती है। चंद्रमा का दर्शन करने से चंद्र दोष दूर हो जाता है।

एक लोटे में पानी लेकर उसमें दूध, शक्कर, अक्षत और फूल डालकर चंद्र दर्शन के समय जल चढ़ाया जाता है। ऐसा करने से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन ही महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ ही घर की उन्नति और संपन्नता के लिए माता लक्ष्मी से प्रार्थना करती हैं। वट सावित्री का व्रत उत्तर भारत में जेष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। जेठ का बड़ा मंगल भी 14 जून को है। इस दिन पूजा-पाठ और व्रत रखने से बजरंगबली की भी कृपा प्राप्त होगी।

वट पूर्णिमा पूजन विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके सुहागिन महिलाएं साफ वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार कर लें।

बरगद के पेड़ के नीचे जाकर गाय के गोबर से सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बना लें। अगर गोबर नहीं हैं तो सुपारी का इस्तेमाल कर सकती हैं।

सावित्री और मां पार्वती का प्रतीक बनाने के लिए दो सुपारी में कलावा लपेटकर बना लें।

अब चावल, हल्दी और पानी से मिक्स पेस्ट बना लें और इसे हथेलियों में लगाकर सात बार बरगद में छापा लगा दें।

अब वट वृक्ष में जल अर्पित करें।

 फूल, माला, सिंदूर, अक्षत, मिठाई, खरबूज, आम, पंखा सहित अन्य फल अर्पित करें।

फिर 14 आटा की पूड़ियों लें और हर एक पूड़ी में 2 भिगोए हुए चने और आटा-गुड़ के बने गुलगुले रख दें और इसे बरगद की जड़ में रख दें।

फिर जल अर्पित कर दें।

घी का दीपक और धूप जला दें।

अब सफेद सूत का धागा  या कलावा लेकर वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करते हुए बांध दें।

5 से 7 या फिर अपनी श्रद्धा के अनुसार परिक्रमा कर लें। इसके बाद बचा हुआ धागा वहीं पर छोड़ दें।

इसके बाद हाथों में भिगोए हुए चना लेकर व्रत की कथा सुन लें। फिर इन चने को अर्पित कर दें।

फिर सुहागिन महिलाएं माता पार्वती और सावित्री के को चढ़ाए गए सिंदूर को तीन बार लेकर अपनी मांग में लगा लें।

अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोल सकती हैं।

व्रत खोलने के लिए बरगद के वृक्ष की एक कोपल और 7 चना लेकर पानी के साथ निगल लें। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Do you have any doubts? chat with us on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...