ज्योतिष में गोचर के अनुसार फलादेश के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालना
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ज्योतिष में गोचर के अनुसार फलादेश के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालना |
भावेश स्थितभांशकोणमपि वा भावं तु वा लग्नपो
लग्नेशस्थितभांशकोण
मुदयम वाअयाती भावाधिप:|
संयोगेअपि
विलोकनेअपि च तयोस्तद्भावसिंद्धि तदा
ब्रूयात्कारकयोगतस्तनुपतेर्लग्नाच्च
चंद्रादपि ||
सूत्र-1: भाव का स्वामी जिस राशि में जिस अंश पर हो, उस से त्रिकोण में गोचर वश जब लग्नेश आये |
सूत्र-2: लग्नेश जिस राशि
और अंश पर हो, उस से त्रिकोण में जब गोचर भावेश आये |
सूत्र-3: जब लग्नेश गोचर
वश भाव से गुज़रे |
इस बार के जिज्ञासा समाधान में घटना काल निर्धारण
के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है। ... घटना का संबंध किस भाव से है,
भाव
का कारक ग्रह कौन है, स्वामी ग्रह कौन है, भाव में ... यदि लग्नेश गोचरवश पंचम में आये या
पंचमेश जहां स्थित हो उस राशि में आये तो भी ... तथा पंचमेश या यम-कंटक जिस राशि
या नवांश में है उससे त्रिकोण में जब गोचरवश गुरु आता ..
जिन भावों में ग्रह स्थित होते हैं उन भावों
... लग्नेश जिस नवांश राशि में स्थित हो उस राशि तथा उससे त्रिकोण की राशियों पर
जब शनि ... में जब शनि उस राशि स्वामी के अंशों पर गोचर वश .
नाड़ी ज्योतिष - कुछ विशेष योग
हम वैदिक ज्योतिष की गणना के बारे में जानते है
कि राशि तुल्य नवमांश एवं नवमांश तुलय राशि भगण जो कि 360 डिग्री का है
उसके शुरूआत तथा अंत की कोई जानकारी नहीं होती जिससे कि उसे मापा जा सके इसलिए इसे
12 भागों में बांटा गया और प्रत्येक भाग 30 डिग्री का बना
जिससे की प्रारंभिक तथा अंतिम भाग को जाना जा सके इसका प्रारंभिक बिंदु मेष राशि
अर्थात अश्विनी नक्षत्र तथा अंतिम बिंदु मीन राशि अर्थात रेवती नक्षत्र है आगे
चलकर एक राशि जो कि 30 डिग्री की है उसे फिर 9 भागों में बांटा गया जिसका प्रत्येक भाग
अर्थात खंड 3 डिग्री 20 मिनट का बना जिसे नक्षत्र के चरण पाद अक्षर आदि नामों से जाना गया
तथा इसे ही एक नवमाश का भाग कहा जाता है ।
नवमांश
की गणना प्रारंभ होने पर एक पूर्ण नवमांश का भाग अर्थात प्रक्रिया 12
नवंमाश गत होने पर अर्थात 40 डिग्री पर संपूर्ण होती है इसी प्रकार आगे तक
चलती जाती है और सभी के सभी नवमांश 9 बार की आवर्ती मैं आते रहते हैं ।।
9 नवमांश × 40 डिग्री बराबर 360
डिग्री इसी प्रकार 3 डिग्री 20 × 12 बराबर 40 डिग्री ।
नाड़ी ग्रंथ इसी मूल सिद्धांत पर बने हैं ।।
किसी भी जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं को
जानने के लिए नवमांश की पद्धति के बारे में अनेक ग्रंथों में योग आदि तथा गोचर के
नियम मिलते हैं जैसे होरा सार जातक पारिजात जातक देश मार्ग आदि तथा अन्य
पद्धत्तियाँ भी नाडी ग्रंथों जैसे चंद्रकला नाडी ध्रुव नारी देव केरलम आदि में
मिलती है जिसे भाव सूचक नवमांश कहा गया है ।।
इसका
अर्थ यह है कि जो भी ग्रह जिन नवमांश राशियों में स्थित है उन राशियों को लग्न में
देखें कि वे किन भावों में पडती हैं ।।
जिन भावों में ग्रह स्थित होते हैं उन भावों के फल वह ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा के भुगतान में ही देगा ।।
जो नवमांश में उन राशि में बैठा है जैसे पंचम
भाव की राशि में कोई ग्रह नवमांश में है तो वह पुत्राँश कहलायेगा ।। इसी प्रकार
यदि कोई ग्रह नवमांश में लग्न के चतुर्थ भाव में पड़ने वाली राशि में स्थित है तो
उसे सुखाशँस्त कहते हैं ।।
ध्रुव नाडी नियमानुसार मेष लग्न अर्थात शुक्र
जिस नवांश राशि में हो वह यदि लग्न से केंद्र में पड़े तो राजयोग होता है इस
प्रकार देखेगेँ कि ज्यादातर ग्रह नवमांश में उन राशियौ में बैठे हो जो लग्न से
केंद्र त्रिकोण द्वितिय एवं एकादश भाव में पडते हो तो जातक का जीवन खुशहाल
ऐश्वर्या युक्त संघर्ष रहित जीवन होगा परंतु इसके विपरीत 6, 8, 12
भावों की राशियों में हो तो जातक के जीवन में संघर्ष रोग शोक आदि फल होंगे।
शनि का गोचर यदि किसी भी भाव से जिसका आप विचार
कर रहे हैं अष्टमेश को देखें कि वह किस नवमांश राशि में बैठा है यदि उस राशि तथा
उस राशि स्वामी से उससे त्रिकोण में जब गोचर में शनि उस भावेश की डिग्री पर आता है
तब उस भाव के शुभ फलों का नाश होता है |
लग्नेश जिस नवांश राशि में स्थित हो उस राशि
तथा उससे त्रिकोण की राशियों पर जब शनि गोचर में आता है तब जातक के मामा तथा नानी
मानसिक रुप से परेशान रहती हैं इसके अतिरिक्त जातक के पिता अपने भाई बहनों के शोक
से पीड़ित हो या मित्रों की मृत्यु हो चोरों से डर हो दुर्घटना ऑपरेशन आदि एँव
साला साली की मृत्यु आदि फल मिलते हैं
धनेश जिस नवांश राशि में हो उस में तथा उसे
त्रिकोण में जब शनि उन राशिशौँ की डिग्रियों के ऊपर गोचरवश आता है तब जातक की
पत्नी की मृत्यु अथवा घर परिवार में किसी की हानि या धन-संपत्ति का नाश होता है ।।
इसके अतिरिक्त उन्नति में अवरोध , पत्नी के परिवार में किसी की मृत्यु, व्यवसाय
में घाटा पत्नी को शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां आदि फल होते हैं
चतुर्थेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि में
तथा उसे त्रिकोण में जब शनि गोचर वश उस राशि स्वामी के अंशौ पर आता है तब जातक का
पिता बीमार होता है तथा चतुर्थेश जिस राशि को देखें उस राशि पर शनि का गोचर पिता
के लिए घातक होता है ।। इसके अतिरिक्त मां को शोक , पिता की पत्नी
की मृत्यु का शोक , पिता के भाइयों बहनों की मृत्यु , पिता को शारीरिक
निर्बलता या पिता की मृत्यु जैसे फल भी प्राप्त होते हैं
पंचमेश जिस नवांश राशि में हो उस में तथा उसे
त्रिकोण में जब शनि उस राशि स्वामी के अशौँ पर गोचरवश आता है तब जातक के भाई-बहनों
के बच्चों के साथ कोई न कोई अशुभ दुर्घटना होती है।। इसके अतिरिक्त अत्यधिक
कठिनाइयां , जन्म स्थान को छोड़ना , विपत्ति , गरीबी , बड़े
भाई बहनों की मृत्यु , स्थान हानि , मानसिक परेशानियां , ताऊ अर्थात पिता
के भाइयों की मृत्यु आदि फल होते हैं
सप्तमेश जिस नवांश राशि में हो उस पर तथा उस से
त्रिकोण में जब शनि उस राशि स्वामी के अंशों पर गोचर वश आता है तब तथा सप्तमेश जिस
राशि को देखें उस पर जब आये तब जातक के नाना को जीवन हानि का डर होता है ।। इसके
अतिरिक्त यदि सप्तमेश की दशा भी हो तो उस समय दादी की मृत्यु हो, अचानक
धन हानि हो , मामा की मृत्यु हो, मौसी की मृत्यु हो या उन्हें परेशानियां हो ।
अष्टमेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि तथा उसे
त्रिकोण राशि तथा अषटमेश से दृष्ट राशि पर जब गोचर में शनि आए तब जातक के पुरुष
संबंधी रिश्तेदार के साथ कोई भयानक घटना घटती है ।।
इसके अतिरिक्त जातक का स्वास्थ्य खराब हो,
पिता
तथा बड़े लोगों को मानसिक परेशानी हो, अप मृत्यु का भय हो, स्वयं की मृत्यु,
धनहानि,
परिवार
में कोई अशुभ घटना, बच्चों को लेकर परेशानी, किसी नजदीकी मित्र की मृत्यु, जातक
को हॉस्पिटल में भर्ती होना और विरोधियों का डर होता है।
नवमेश जिस नवमांश राशि में हो उस पर तथा उसके
त्रिकोण में जब उन राशि स्वामियों के अशौँ पर गोचर में शनि आता है तब जातक की माता
की बहनों के बच्चों को नष्ट करता है ।। इसके अतिरिक्त झगड़े हो, गले
एवं आंखों में रोग हो, धन हानि हो, मानसिक अवसाद रहे।
दशमेश जिस नवांश राशि में हो उस पर तथा उसे
त्रिकोण की राशियों पर उन राशि स्वामियों के अंशों पर जब गोचर में शनि आता है तब
जातक के ससुर के लिए घातक अथवा परेशानी देता है ।। इसके अतिरिक्त जातक के भाइयों
के बच्चों तथा परिवार में रोग, शोक, मानसिक अवसाद, भाई बहनों को
दर्द स्वयं भी हॉस्पिटल में भर्ती हो आदि फल मिलते हैं ।
एकादशेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि पर तथा
उसे त्रिकोण में उन राशि स्वामियों के अंशों पर जब गोचर में शनि आता है तब जातक के
ननिहाल में कष्ट तथा स्वयं भी मानसिक रुप से परेशान होता है ।।
इस के अतिरिक्त माताजी को कष्ट होता है क्योंकि
उसके भाई बहन देश छोड़कर बाहर चले जाते हैं तथा जातक के रिश्तेदारी में घटनाएं
घटती है ।। माता की मृत्यु तड़पकर हो स्थान त्याग हो प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े हो।
द्वादशेश जिस नवांश राशि में हो उस पर तथा उसे
त्रिकोण में तथा द्वादशेश से दृष्ट राशि पर जब गोचर में शनि आता है तब जातक के
बच्चों के साथ अशुभ घटनाएं घटती है इसके अतिरिक्त दादाजी को कष्ट , परीक्षा
में असफलता , बड़ी बहन के पति को कष्ट , बड़े भाई की पत्नी को कष्ट , धन
हानि , बच्चों की मृत्यु का शोक व्यवसाय में शत्रुता , चाचा
के साथ कोई दुर्घटना घटे आदि फल मिलते हैं ।।
यदि
उपरोक्त राशियों पर से बृहस्पति का गोचर हो तो जातक को शुभ परिणाम प्राप्त होते
हैं इस प्रकार बृहस्पति के बारे में समझना चाहिए।
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