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Manan Karne Yogi Katha Blinking of eyelids of a living person - Mystery - An unheard interesting story |
Manan Karne Yogy Katha आंखों की पलकें बार बार क्यों झपकती हैं इसका धार्मिक रहस्य
Manan Karne Yogy Katha राजा जनक किसके पुत्र थे ?
जनक निमी नाम के राजा के पुत्र थे, जिनको सिर्ध्वाज के नाम से भी जाना जाता है। यह बात त्रेता युग की है। एक बार राजा निमी ने तत्कालीन महान महर्षि वशिष्ठ को यज्ञ करने के लिए बुलाया परन्तु वाशिष्ठ को देवराज इन्द्र के यहां यज्ञ करने जाना था इसीलिए उन्होंने कहा सही समय पर वे इन्द्र के यहां यज्ञ समाप्त करके यज्ञ के लिए आ जाएंगे, परन्तु महाराज निमी ने उनकी प्रतीक्षा ना करके ऋषि गौतम को यज्ञ करने के लिए बुला लिया, गौतम ऋषि ने विधि विधान से यज्ञ शुरू किया।
जब महर्षि वाशिष्ठ ने इंद्र के यहां यज्ञ समाप्त किया, तो वे निमी के यहां यज्ञ करने के लिए आए वहां जाकर पता चला, कि यज्ञ तो उस दिन गौतम ऋषि के द्वारा संपन्न किया जा चुका है, और यज्ञ अभी कई दिनों तक लंबा चलने वाला है। इस पर महर्षि वाशिष्ठ आश्चर्यचकित हुए और तब उन्होंने राजा निमी से मिलने के लिए कहा, परन्तु राजा निमी अत्यधिक थके होने के कारण विश्राम करते रहे और सेवकों ने डर के कारण उन्हें उठाया नहीं।
Manan Karne Yogy Katha महर्षि वाशिष्ठ और राजा निमी के श्राप:
काफी इंतजार के बाद भी जब निमी नहीं आए तो महर्षि वाशिष्ठ क्रोधित हो गए, और उन्होंने महाराज निमी को श्राप देते हुए कहा, कि तुमने मेरी अवहेलना की है, इसीलिए तुम्हारा शरीर अचेतन होकर भस्म हो जाएगा, श्राप के कारण महाराज निमी जाग गए और गुस्से में दौड़कर वशिष्ठ के पास आए, उन्होंने कहा कि उन्हें बिल्कुल भी भान नहीं था कि वशिष्ठ आए हैं, क्योंकि उन्हें किसी ने इस बारे में बताया ही नहीं, निमी बहुत ही धार्मिक अध्यात्मिक और तेजस्वी महाराज थे, उन्होंने वाशिष्ठ से कहा कि आपने अकारण ही मुझे श्राप दिया है तब राजा निमी ने भी वाशिष्ठ को श्राप दे दिया, कि वे भी अचेतन हो जाएंगे।
श्राप के असर से वाशिष्ठ और निमी दोनों का ही शरीर अचेतन हो गया, तब भृगु ऋषि और उनके सहयोगी ऋषियों ने निमी के शरीर को सुरक्षा प्रदान की और उनके अधूरे रह गए यज्ञ को पूरा करने के लिए आहुति देने लगे।
यज्ञ संपन्न होने के बाद भृगु ऋषि ने निमी की आत्मा से कहा कि अब उनका यज्ञ पूरा हो गया है, और उनका शरीर भी सुरक्षित है अब वे चाहें तो अपने शरीर में वापिस आ जाएं और सामान्य जीवन व्यतीत करें, परन्तु महाराज निमी ने उस शरीर में वापिस जाने से इंकार कर दिया, इस पर ऋषियों ने कहा कि बताओ आपकी आत्मा का क्या किया जाए उसे कहां स्थापित किया जाए, इस पर राजा निमी ने कहा कि वे सभी जीवों की आंखों में निवास करना चाहते हैं।
Manan Karne Yogy Katha राजा जनक के नाम से संबोधित होने का रहस्य:
तब देवताओं और ऋषियों ने उनसे कहा, कि ठीक है आप सभी जीवित प्राणियों के नेत्रों में वायु के रूप में निवास करेंगे और उनमें विचरण करते रहेंगे, आपकी थकावट दूर करने के लिए प्राणी आंख बंद करके आपको आराम प्रदान किया करेंगे, अब बारी थी कि राजा जनक के वंश को आगे कैसे बढ़ाया जाएगा, तब देवताओं और ऋषियों ने उनके मृत शरीर का मंथन करना शुरू किया, इस मंथन से उन्हे राजा निमी से एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम रखा गया मिथी, इन्हे ही राजा मिथि जनक कहा जाने लगा। और आगे चलकर इनके वंश के सभी राजा जनक के नाम से संबोधित किए गए।
इस कथा उल्लेख हमें "श्री मद्देवीभागवतमहापुराण के षष्ट स्कन्ध - अध्यय १४ से लिया है"
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