हमारी भारतीय संस्कृति और शास्त्रों के अनुसार जिस घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा होता है, वहां पर कभी नकरात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती. ऐसी मान्यता है तुलसी के पौधे में साक्षात मां लक्ष्मी का वास होता है. इसके घर में होने से कंगाली दूर होती है।
अगर होती भी है तो यह उसे
नष्ट कर घर में धन की वृद्धि करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं घर का एक ऐसा कोना
है जहां पर कभी तुलसी नहीं लगानी चाहिए, आइए जाने इसके बारे में…
पूर्व या उत्तर दिशा : तुलसी के गमले में दूसरा कोई पौधा न लगाएं। तुलसी हमेशा घर के
पूर्व या उत्तर दिशा में लगाएं।
दक्षिण में लगना होगा नुक़सान : वास्तु के अनुसार, घर के दक्षिण भाग को छोड़कर
कहीं भी तुलसी का पौधा लगाया जा सकता है क्योंकि दक्षिण में लगा पौधा फायदे की
बजाय नुकसान पहुंचा सकता है।
शालिग्राम का पूजन : प्राचीन परम्परा से तुलसी
का पूजन सद्गृहस्थ परिवार में होता आया है, जिनकी संतान नहीं होती, वे
तुलसी विवाह भी कराते हैं। तुलसी पत्र चढ़ाए बिना शालिग्राम का पूजन नहीं होता।
पंचामृत में तुलसी : विष्णु भगवान को चढ़ाए
श्राद्ध भोजन में, देव प्रसाद, चरणामृत, पंचामृत
में तुलसी पत्र होना आवश्यक है अन्यथा वह प्रसाद भोग देवताओं को नहीं चढ़ता।
मरते हुए प्राणी के अंतिम समय में गंगाजल व तुलसी पत्र : मरते हुए प्राणी के अंतिम समय में गंगाजल व तुलसी पत्र दिया जाता
है. तुलसी जितनी धार्मिक मान्यता किसी भी पेड़-पौधे की नहीं है।
भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख
ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है।
(1). हिक्काज विश्वास पाश्र्वमूल
विनाशिन:।
पितकृतत्कफवातघ्नसुरसा: पूर्ति: गन्धहा।।
अर्थात – सुरसा यानी तुलसी हिचकी, खांसी, जहर
का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु
खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।
(2). तुलसी कटु कातिक्ता
हद्योषणा दाहिपित्तकृत।
दीपना कृष्टकृच्छ् स्त्रपाश्र्व रूककफवातजित।।
अर्थात – तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा
रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को
मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।
शास्त्रों में भी कहा गया
है
(3). त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश
तुलसी यदि।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रायण शतं बिना।।
तुलसी गंधमादाय यत्र गच्छन्ति: मारुत:।
दिशो दशश्च पूतास्तुर्भूत ग्रामश्चतुर्विध:।।
अर्थात – यदि सुबह, दोपहर और शाम को तुलसी का
सेवन किया जाए तो उससे शरीर इतना शुद्ध हो जाता है, जितना अनेक चांद्रायण व्रत
के बाद भी नहीं होता। तुलसी की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहां तक का वातारण और निवास
करने वाले जीव निरोगी और पवित्र हो जाते हैं।
(4). तुलसी तुरवातिक्ता
तीक्ष्णोष्णा कटुपाकिनी।
रुक्षा हृद्या लघु: कटुचौहिषिताग्रि वद्र्धिनी।।
जयेद वात कफ श्वासा कारुहिध्मा बमिकृमनीन।
दौरगन्ध्य पार्वरूक कुष्ट विषकृच्छन स्त्रादृग्गद:।।
अर्थात – तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर
तरह के दर्द, कोढ़
और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने
की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे
और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर
में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप
में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।
तुलसी की मुख्य जातियां
तुलसी मुख्यत: पांच प्रकार की होती है लेकिन घरों में दो प्रकार की तुलसी लगाई जाती हैं, ये
हैं इन्हें रामा और श्यामा।
रामा तुलसी : रामा तुलसी को गौरी भी कहा
जाता है क्योंकि इनके पत्तों का रंग हल्का होता है।
श्यामा तुलसी : श्यामा तुलसी के पत्तों का
रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं और इसलिए इसे दवा के रूप में अधिक
उपयोग में लाया जाता है।
वन तुलसी : वन तुलसी में जहरनाशक
प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़
और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह कारगर दवा है।
मरूवक तुलसी : एक अन्य जाति मरूवक है, जो
बहुत कम पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर
इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।
बर्बरी तुलसी : तुलसी की एक और जाति जो
बहुत उपयोगी है वह है, बर्बरी तुलसी। इसके बीजों का प्रयोग वीर्य को गाढ़ा करने
वाली दवा के रूप में किया जाता है।
तुलसी के फायदे
बुखार : जुकाम के कारण आने वाले
बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए।
त्वचा के रोगों : तुलसी के रस में पाए जाने
थाइमोल तत्व से त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
संक्रमण : तुलसी के पत्तों को त्वचा
पर रगड़ने से त्वचा के संक्रमण में फायदा मिलता है।
थकान होने पर : ज्यादा थकान होने पर तुलसी
की पत्तियों और मंजरी का सेवन करें, थकान दूर होगी।
फ्लू संक्रमण : फ्लू के रोगियों को तुलसी
के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से काफी फायदा होता है।
ह्रदय और कोलेस्ट्रॉल : दिल की बीमारी से ग्रस्त
लोगों के लिए यह अमृत समान है। इससे खून में कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है।
माइग्रेन : रोजाना 4- 5 बार तुलसी की पत्तियाँ चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की
समस्या में आराम मिलता है।
मलेरिया : मलेरिया में तुलसी एक कारगर
औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता
है।
कैन्सर व ख़ून की ख़राबी : तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में एक घंटे तक
भीगा रहने दें। यह पानी पीने से बहुत से कैन्सर, हार्ट अटैक, ख़ून
की ख़राबी जैसी बीमारियाँ पास नहीं आतीं।
पथरी : किडनी की पथरी होने पर रोगी
को तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह
तक पिलाएं, पथरी
मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाएगी।
प्रतिरोधक क्षमता : शरीर टूट रहा हो या जब लग
रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में
मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें, आराम मिलेगा।
खांसी व ज़ुकाम : तुलसी के रस में मुलहटी व
थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी व ज़ुकाम की परेशानी दूर हो जाती है, आप
चाहें तो चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर भी पी सकते हैं।
काली या सुखी खांसी : तुलसी के पत्तों और अडूसा
के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से काली या सुखी खांसी दूर होती
है। इसके अलावा तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से भी खांसी में
बहुत जल्दी आराम मिलता है।
4 टिप्पणियाँ
Dhanywad Sir
जवाब देंहटाएंThanks for all
जवाब देंहटाएंDhanyvad Akshay ji jankari dene k liya
जवाब देंहटाएंThanks
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