G-B7QRPMNW6J Mahashiv Ratri: महाशिवरात्रि पर भक्तों को संकटों और पापों से मुक्त करने वाला श्रीशंकरसपर्याष्टकं का पाठ
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Mahashiv Ratri: महाशिवरात्रि पर भक्तों को संकटों और पापों से मुक्त करने वाला श्रीशंकरसपर्याष्टकं का पाठ

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Shivalinga worship Mahashivratri
Mahashiv Ratri: Recitation of Shri Shankar Sapryashtakam, which frees the devotees from troubles and sins on Mahashivratri



Mahashiv Ratri: पापोंका विनाश करने वाला और अपने भक्तों के संकटोंको दूर करने वाला भगवान् शिवशंकर का श्रीशंकरसपर्याष्टकं भावानुवादसहितम्

श्रीशंकरसपर्याष्टकं भावानुवादसहितम् (Srishankarsaparyaashtakam bhavanuvadasahitam)

अनुष्टुप् – 

शरच्चन्द्रप्रभां हास्यभासादीनत्वमापयन् । जगद्बीज महादेव विशदेन्दुद्युते जय ॥ १ ॥ 

हे महादेव शंकर भगवान्! आपकी जय हो। भक्तोंपर अनुग्रह करते समय जब आपके ओष्ठ और अधरपर हँसी झलकती है, तब उस हँसीके आगे शरदऋतुके चन्द्रमाकी कान्ति भी फीकी प्रतीत होती है। आप इस विश्वके मूल कारण हैं। आपके श्रीविग्रहकी कान्ति निर्मल चन्द्रमाके समान गौर वर्णवाली है।

मालिनी-

धृतसरसिजमालं जाह्नवीशोभिभालं कृतफणिपतिहारं मोददं भूतिकारम् ।

नृसुरमुनिभिरर्च्य शर्मदं लोकवन्द्यं  हिमगिरितनयेशं नौम्यहं श्रीमहेशम् ॥ २ ॥

मैं पार्वती-वल्लभ- श्रीशंकर भगवान्‌को प्रणाम करता हूँ। वे अपने कण्ठमें कमलोंकी माला पहने हुए हैं। जटाजूटमें विराजमान गङ्गा-तरङ्गोंके कारण उनके मस्तककी बड़ी शोभा हो रही है। एक विशाल नाग उनके वक्षःस्थलपर हारके समान लटक रहा है। वे अपने भक्तोंको आनन्द प्रदान करते रहते हैं और उन्हें उनका अभीष्ट वैभव भी देते रहते हैं। ऋषि-मुनि इस विश्वके वासी मानव एवं स्वर्गके देवगण भी उनकी पूजामें लगे रहते हैं। वे सबके सुखदायी हैं। चौदह लोकोंके निवासियोंद्वारा वे वन्दनीय हैं।

मालिनी-

नगपतिकृतवासं पारिजाते निषण्णं त्रिनयनमखिलेशं शूलपाणिं महेशम् । 

मुनिजनशुभचित्ते वीतदोषे विभात- मजगवकरमेतं नौम्यहं भक्तियुक्तः ॥ ३ ॥ 

मैं भक्तिपूर्वक इन भगवान् शंकरको प्रणाम कर रहा हूँ। ये गिरिराज हिमालयपर निवास करते हैं और कल्पवृक्षकी छायामें बैठे हैं। इनके तीन नेत्र हैं, सभीके स्वामी हैं, त्रिशूल हाथमें लिये हुए हैं और दूसरे हाथमें शत्रु विनाशके समय पिनाक नामक अपने धनुषको भी धारण कर लेते हैं। काम और क्रोध आदि दोषोंसे रहित मुनिजनोंके मनोमन्दिरमें इनका प्रकाश सदा रहता है। ये महेश्वर हैं।

उपजाति-

अघं ह्रदो  दो मेऽपनयाज शम्भो नित्यं विधेहीश महेश शं भोः ।

भवेम        युष्मच्चरणानुरक्ताः नश्यन्तु नोऽरं विपदः समस्ताः ॥ ४ ॥

हे अज अर्थात् कर्मवश जन्म न लेनेवाले, हे शम्भो अर्थात् कल्याणकारिन् प्रभो ! मेरे हृदयसे पापको दूर कर दीजिये। हे ईश्वर ! हे महेश्वर ! आप प्रतिदिन शं अर्थात् मङ्गल-विधान करते रहिये। आपके अनुग्रहसे हम आपके चरणारविन्दोंमें अनुराग करते रहें, जिससे हमारी सारी विपत्तियाँ शीघ्र ही नष्ट हो जायँ।

उपजाति-

अब्धौ सुरैः सम्मथिते समस्तान् विलोक्य भीतान् गरदर्शनात् तान् । 

पीत्वा विषं यो जनतां ररक्ष तमादिदेवं प्रणमामि शम्भुम् ॥ ५ ॥

Shivalinga worship Mahashivratri
Mahashiv Ratri: Recitation of Shri Shankar Sapryashtakam, which frees the devotees from troubles and sins on Mahashivratri


अमर होनेके लिये देवता अमृत प्राप्त करना चाहते थे। सबने मिलकर क्षीरसागरका मन्थन किया, तो सर्वप्रथम हलाहल विष प्रकट हुआ। उसे देखकर वे सब भयभीत हो गये। उनके उस भयके निवारणार्थ जिन भगवान् शंकरने उस विषको पीकर उनकी रक्षा की थी, मैं उन आदिदेव शिव शम्भुको प्रणाम कर रहा हूँ।

उपजाति- 

सूत्राण्यपूर्वाणि  पुरा पुरारि- निर्माय  योऽज्ञानतमोविलीनम् ।

व्यधाज्जगद् व्याकरणप्रकाशं तमादिविज्ञं प्रणमामि शम्भुम् ।। ६ ।।

जिन त्रिपुरासुरान्तक भगवान् शंकरने प्राचीन कालमें माहेश्वर नामसे प्रसिद्ध चौदह नवीन सूत्रोंका उपदेश करके पाणि पिद्वारा अशासधकारमें विलीन जगत् व्याकरणका प्रकाश फैला दिया था, उन आदिविद्वान् शिवजीको मैं प्रणाम कर रहा हूँ|

शार्दुलविक्रीडित 

गंगास्वच्छधाराशिशिरकर विधारश्यियुक्तालिकेऽत्र

शम्भो सर्वेश्वरेऽस्मिन् विदधति करुणां नास्ति मे दुःखहेतुः । 

लेख सर्वे स्तुतोऽयं हिमगिरिशिखरे बद्धपद्मासनस्थः 

पुष्णीयात पर्वतीशो हृदयसदनगं कामनाऽनोकहं मे ॥

जिसका मस्तक गुङ्गाजीके निर्मल जलको धारासे एवं चन्द्रमाको कान्तिमती किरणोंसे सदा सुशोभित रहता है, वे सर्वेश्वर भगवान् शंकर जब मुझपर करुणा कर रहे हैं, तब मेरे दुःखका कोई हेतु नहीं हो सकता। सभी देवता जिनको स्तुति करते रहते हैं, जो कैलासपर्वतपर पद्मासन लगाकर विराजमान रहते हैं, वे पार्वतीपति भगवान् शंकर मेरे हृदय-भवनमें बद- मूल उनके साक्षात्कारको कामनाके तरुवरको हरा-भरा रखें। 

उपजाति-

राजन्ति पुण्याः  सुरनिम्नगापो यमूर्ध्नि चन्द्रस्य गभस्तयश्च ।

पापापहारी स्वजनार्तिहारी जयेत् सदा श्रीशिवशङ्करः सः ॥ ८ ॥ 

जिनके मस्तकपर गङ्गाजीका पवित्र जल तथा चन्द्रमाकी किरणावली विराजमान रहती है, वे पापोंका विनाश करनेवाले और अपने भक्तोंके संकटोंको दूर करनेवाले भगवान् शिवशंकर सदा विजय प्राप्त करें।

                                                                                                      शिवोपासना अंक 283 

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