G-B7QRPMNW6J Karshana: भगवान शिव ने कैसे पाए श्रीकृष्ण के बाल रूप के दर्शन? जानिए नंदगांव की अद्भुत कथा"✅
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Karshana: भगवान शिव ने कैसे पाए श्रीकृष्ण के बाल रूप के दर्शन? जानिए नंदगांव की अद्भुत कथा"✅

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Karshana: भगवान शिव ने कैसे पाए श्रीकृष्ण के बाल रूप के दर्शन? जानिए नंदगांव की अद्भुत कथा

🙏🌹"भगवान शिव का कृष्ण-प्रेम: जब भोलेनाथ ने जोगी वेष में नंदगांव पहुँचकर किया बालकृष्ण के दिव्य स्वरूप का दर्शन"✅

🙏🌹"जानिए वह रोचक कथा जब भगवान शिव ने जोगी का रूप धारण कर नंदगांव जाकर बालकृष्ण के दर्शन किए। कैसे यशोदा मैया ने शिवजी को रोते हुए कृष्ण का दर्शन कराया और भोलेनाथ ने लाला को गोद में लेकर नृत्य किया।"✅

🙏🌹"भगवान शिव ने कैसे किया कृष्ण के बालरुप का दर्शन ?"✅

🙏🌹भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु। जब विष्णुजी ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो अपने इष्ट के बाल रूप के दर्शन और उनकी लीला को देखने के लिए शिवजी ने जोगी रूप बनाया।
श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्रीशंकरजी समाधि में थे। जब वह जागृत हुए तब उन्हें मालूम हुआ कि श्रीकृष्ण ब्रज में बाल रूप में प्रकट हुये हैं, इससे शंकरजी ने बालकृष्ण के दर्शन के लिए जाने का विचार किया। शिवजी ने जोगी का स्वाँग सजाया और उनके दो गण–श्रृंगी व भृंगी भी उनके शिष्य बनकर साथ चल दिए।

 🙏🌹‘श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय’  का कीर्तन करते हुए, वे नन्दगाँव में माता यशोदा के द्वार पर आकर खड़े हो गए। ‘अलख निरंजन’  शिवजी ने आवाज लगायी। आज परमात्मा कृष्ण रूप में प्रत्यक्ष प्रकट हुए हैं। शिवजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए हैं। यशोदामाता को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं। उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा दी। दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा।

🙏🌹शिवजी ने दासी से कहा -  कि, ‘मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं। इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ। मुझे लाला के दर्शन करने हैं।’  दासी ने भीतर जाकर यशोदामाता को सब बात बतायी। यशोदाजी को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झांककर देखा की एक साधु खड़े हैं। उन्होंने बाघाम्बर पहिना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं, हाथ में त्रिशूल है। यशोदामाता ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा - कि, ‘महाराज आप महान पुरुष लगते हैं। क्या भिक्षा कम लग रही है? आप मांगिये,  मैं आपको वही दूंगी, पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊंगी। अनेक मनौतियां मानी हैं तब वृद्धावस्था में यह पुत्र हुआ है। यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है। आपके गले में जो सर्प है उसको देख कर वो डर जाएगां। वो बहुत कोमल है।" 

🙏🌹जोगी वेषधारी शिवजी ने कहा - 

‘मैया,  तुम्हारा पुत्र देवों का देव है,  वह काल का भी काल है और संतों का तो सर्वस्व है। वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा। मां, मैं लाला के दर्शन के बिना पानी भी नहीं पीऊंगा। आपके आंगन में ही समाधि लगाकर बैठ जाऊंगा।’
आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां शिवजी श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं।

🙏🌹शिवजी महाराज ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्णलाल उनके हृदय में पधारे। और बालकृष्ण ने अपनी लीला करना शुरु कर दिया। बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया। माता यशोदा ने उन्हें दूध, फल, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वह चुप ही नहीं हो रहे थे। एक गोपी ने माता यशोदा से कहा - कि आँगन में जो साधु बैठे हैं उन्होंने ही लाला पर कोई मन्त्र फेर दिया है। तब माता यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया। शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं। उन्होंने माता यशोदा से कहा-  ‘मां,  आंगन में जो साधु बैठे हैं,  उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है। मां उन्हें लाला का दर्शन करवाइये।’  माता यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार किया–बालकृष्ण को पीताम्बर पहिनाया, लाला को नजर न लगे इसलिए गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहिनाया। साधू से लाला को एकटक देखने से मना कर दिया, कि कहीं लाला को उनकी नजर न लग जाए। माता यशोदा ने शिवजी को भीतर बुलाया। नन्दगांव में नन्दभवन के अन्दर आज भी नंदीश्वर महादेव हैं।

🙏🌹श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप अति दिव्य है। श्रीकृष्ण और शिवजी की आँखें जब चार हुयीं तब शिवजी को अति आनंद हुआ। शिवजी की दृष्टि पड़ी तो बालकृष्ण हँसने लगे। यशोदामाता को आश्चर्य हुआ कि अभी तो बालक इतना रो रहा था,  अब हंसने लगा। माता ने शिवजी का बारम्बार वंदन किया और लाला को शिवजी की गोद में दे दिया। माता यशोदा ने जोगी से लाला को नजर न लगने का मन्त्र देने को कहा। जोगी रूपी शिवजी ने लाला की नजर उतारी और बालकृष्ण को गोद में लेकर नन्दभवन के आँगन में नाचने लगे। 
सारा नन्दगाँव शिवलिंगाकार बन गया, और आज भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि नन्दगाँव पहाड़ पर है और नीचे से दर्शन करने पर ऐसा लगता है कि भगवान शंकर बैठे हैं।

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