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Garuda Purana Mysteryआत्मा की 13 दिन की यात्रा, श्राद्ध पक्ष और सूतक–पातक के गूढ़ नियम |
📰 गरुड़ पुराण क्या है? मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति, श्राद्ध पक्ष का महत्व और सूतक–पातक के रहस्य
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गरुड़ पुराण: मृत्यु और मोक्ष का ग्रंथ
आत्मा 13 दिन तक घर में क्यों रहती है?
गरुड़ पुराण पाठ का महत्व और लाभ
श्राद्ध पक्ष 2025 की तिथियाँ और विशेषता
श्राद्ध में खरीदी: शुभ या अशुभ?
पितृ पक्ष का महत्व और पितृ ऋण से मुक्ति
सूतक और पातक: जन्म और मृत्यु के नियम
शनि पीड़ा निवारण के उपाय
📝गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की 13 दिन की स्थिति, श्राद्ध पक्ष का महत्व, सूतक–पातक के नियम और शनि उपायों का विस्तृत वर्णन।
गरुड़ पुराण में बताया गया है?
कि आत्मा लगभग 13 दिनों तक उसी घर में निवास करती है।
क्यूँ करवाया जाता है, गरुड़ 🦅 पुराण का पाठ
गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है l
तो 13 दिन तक गरुड़ पुराण का पाठ रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार कोई आत्मा तत्काल ही दूसरा जन्म धारण कर लेती है। किसी को 3 दिन लगते हैं, किसी को 10 से 13 दिन लगते हैं l
और किसी को सवा माह लगते हैं लेकिन जिसकी स्मृति पक्की, मोह गहरा या अकाल मृत्यु मरा है तो उसे दूसरा जन्म लेने के लिए कम से कम एक वर्ष लगता है।
तीसरे वर्ष उसका अंतिम तर्पण किया जाता है। फिर भी कईं ऐसी आत्माएं होती हैं जिन्हें मार्ग नजर नहीं आता है और वे भटकती रहती हैं।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि आत्मा लगभग 13 दिनों तक उसी घर में निवास करती है। ऐसी स्थिति में यदि घर में गरुड़ पुराण का नियमित पाठ किया जाता है l
तो इसके श्रवण मात्र से ही आत्मा को शांति तथा मोक्ष की प्राप्ति संभव हो जाती है। इसके अलावा इसमें जीवन से जुड़े सात ऐसे महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं,
जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति को बड़ी ही सहजता के साथ करना चाहिए।
🙏गरुड़ पुराण क्या है ?💛
एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नरक-योनियों तथा सद्गति के बारे में अनेक गूढ़ और रहस्य युक्त प्रश्न पूछे। उन्हीं प्रश्नों का भगवान विष्णु ने सविस्तार उत्तर दिया।
ये प्रश्न और उत्तर की श्रृंखला ही गरुड़ पुराण है। गरुड़ पुराण में स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य के अलावा भी बहुत कुछ है।
उसमें ज्ञान, विज्ञान, नीति, नियम और धर्म की बाते हैं। गरुड़ पुराण में एक ओर जहां मौत का रहस्य है तो दूसरी ओर जीवन का रहस्य छिपा हुआ है।
इससे हमें कई तरह की शिक्षाएं मिलती हैं। गरुड़ पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।
💛यह पुराण भगवान विष्णु की भक्ति और उनके ज्ञान पर आधारित है। प्रत्येक व्यक्ति को यह पुराण पढ़ना चाहिए।💐
गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक है। 18 पुराणों में से इसे एक माना जाता है। गरुड़ पुराण में हमारे जीवन को लेकर कई गूढ़ बातें बताई गई हैं जिनके बारें में व्यक्ति को जरूर जनना चाहिए
श्राद्ध पक्ष में खरीदी शुभ या अशुभ
श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में हम अक्सर दो तरह की बातें सुनते हैं। एक तो यह कि इन 16 दिनों में कोई खरीदी नहीं की जानी चाहिए अन्यथा अशुभ होता है और दूसरी यह कि जब हमारे पूर्वज पथ्वी पर हमें आशीर्वाद देने आते हैं तो हमें कोई भी नई वस्तु खरीदते देखकर खुश ही होते हैं अत: इन 16 दिनों में खरीदी अवश्य की जानी चाहिए। हालांकि पहली बात को मानने वाले लोग अधिक हैं और दूसरी बात को मानने वाले कम हैं।
शास्त्रों में माना गया है कि श्राद्ध पक्ष में मृत्यु के देवता यमराज आत्मा को कुछ दिनों के लिए यमलोक से मुक्त कर देते हैं और वो पितृ पक्ष के दिनों में अपने प्रियजनों के पास पृथ्वी पर आते हैं।
पहली मान्यता वालों का पक्ष है कि श्राद्धपक्ष का संबंध मृत्यु से है इस कारण यह अशुभ काल माना जाता है। जैसे अपने परिजन की मृत्यु के पश्चात हम शोक अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को विराम दे देते हैं, वही भाव पितृपक्ष में भी जुड़ा है।
जबकि दूसरा पक्ष मानता है कि 16 की संख्या शुभता का प्रतीक होती है। दूसरी बात पितरों का पृथ्वी पर आना अशुभ कैसे हो सकता है? वे अब सशरीर हमारे बीच नहीं है किसी और लोक के निवासी हो गए हैं अत: वे पवित्र आत्मा हैं। उनका सूक्ष्म रूप में आगमन हमारे लिए कल्याणकारी है। जब हमारे पितृ हमें नवीन खरीदी करते हुए देखते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है कि हमारे वंशज सु्खी और संपन्न हैं। अगर हमारी समृद्धि बढ़ रही है तो ऐसे में उनकी आत्मा को भला क्यों क्लेश होगा?
श्राद्ध पक्ष पितरों की शांति और प्रसन्नता के लिए मनाया जाने वाला परंपरागत पर्व है। श्राद्ध के दिनों में खरीददारी करना एवं अन्य शुभ कार्य करना मंगलकारी एवं लाभदायक है। क्योंकि पितृ हमेशा गणेश आराधना और देवी पूजा के बीच में आते हैं। पितरों के आभासी उपस्थिति में यदि किसी वस्तु की खरीददारी की जाए तो उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितरों का आशीर्वाद अत्यधिक फलदायक रहता है।
पूर्वजों द्वारा किए गए त्याग के प्रति आदरपूर्वक कृतज्ञता निवेदित करना ही श्राद्ध कहलाता है। इन 16 दिनों में अनैतिक, आपराधिक, अमानवीय और हर गलत कार्य से बचना चाहिए ना कि शुभ और पवित्र कार्यों से। अत : इन 16 दिनों यह भ्रम त्याग देना चाहिए कि यह दिन अशुभ हैं। बल्कि यह दिन सामान्य दिनों से अधिक शुभ हैं क्योंकि हमारे पूर्वज हमारे साथ हैं, हमें देख रहे हैं।
पितृपक्ष २०२५ तिथि एवं महत्व ।।
पितृ पक्ष २०२५ के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्म किए जाते हैं, इस समय पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं, इस अवधि में पवित्र नदियों में स्नान करना और जरूरतमंदों को दान देना विशेष फलदायी माना जाता है, पितृ पक्ष में विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा जीवन में सुख-शांति लाती है।
इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत ०७ सितंबर २०२५, रविवार को हो रही है, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि ०७ सितंबर को देर रात ०१:४१0 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात ११:३८ बजे समाप्त हो जाएगी, ऐसे में ०७ सितंबर से ही पितृ पक्ष की विधिवत शुरुआत मानी जाएगी, पितृ पक्ष का समापन २१ सितंबर २०२५ को सर्व पितृ अमावस्या के दिन होगा, पितृ पक्ष २०२५ की तारीखें निम्नलिखित हैं।
रविवार, ०७ सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
सोमवार, ०८ सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
मंगलवार, ०9 सितंबर- द्वितीया श्राद्ध
बुधवार, १० सितंबर- तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध
गुरुवार, ११ सितंबर- पंचमी श्राद्ध, महा भरणी
शुक्रवार, १२ सितंबर - षष्ठी श्राद्ध
शनिवार, १३ सितंबर- सप्तमी श्राद्ध
रविवार, १४ सितंबर- अष्टमी श्राद्ध
सोमवार, १५ सितंबर- नवमी श्राद्ध
मंगलवार, १६ सितंबर- दशमी श्राद्ध
बुधवार, १७ सितंबर- एकादशी श्राद्ध
गुरुवार, १८ सितंबर- द्वादशी श्राद्ध
शुक्रवार, १९ सितंबर- त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
शनिवार, २० सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
रविवार, २१ सितंबर- सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध।
पितृपक्ष का महत्व-
पितृपक्ष, जिसे श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है, एक १६ दिनों की अवधि है जो हिंदू धर्म में पूर्वजों को समर्पित है, यह भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक कर्म किए जाते हैं, इन दिनों पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा लेकर आते हैं, जो संतान श्रद्धा भाव से उनका स्मरण और तर्पण करती है, उन्हें पितरों की कृपा प्राप्त होती है, इससे पितृ दोष दूर होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है, इस काल में गंगा स्नान, ब्राह्मण भोज और दान करना पुण्यदायी होता है, पितरों की संतुष्टि से वंश में समृद्धि, संतान सुख और कुल की उन्नति संभव होती है, इसलिए पितृ पक्ष को श्रद्धा और आस्था से मनाना अत्यंत आवश्यक है।
शनि देव की महादशा, अंतरदशा, साढ़ेसाती या ढैय्या से पीड़ित लोगों के लिए विशेष उपाय 🙏
1️⃣ तैलाभिषेक (सरसों के तेल का अभिषेक)
हर शनिवार सुबह एक लोटे पानी में थोड़ा काला तिल और सरसों का तेल मिलाकर शनि देव, पीपल के पेड़ या शिवलिंग पर चढ़ाएँ। इससे शनि दोष शांति पाता है और स्वास्थ्य व करियर में राहत मिलती है।
2️⃣ शनि दीपक (दीप दान)
लोहे के दीपक में सरसों का तेल डालकर शनिवार शाम पीपल के पेड़ के नीचे जलाएँ। दीपक को ऐसे रखें कि ज्योति पेड़ की जड़ को स्पर्श करे। यह साढ़ेसाती और ढैय्या में सबसे शक्तिशाली उपाय है।
3️⃣ छाया दान (दुर्लभ उपाय)
एक स्टील के बर्तन में सरसों का तेल भरकर उसमें अपना चेहरा देखें और बिना पीछे देखे उस तेल को मंदिर में या किसी गरीब को दान कर दें। इससे शनि की दृष्टि दोष शांति पाती है और दुर्घटना, कोर्ट केस व नौकरी में रुकावट से बचाव होता है।
4️⃣ सेवा और निष्काम कर्म
शनि देव कर्मफलदाता हैं, इसलिए उनके कष्ट से छुटकारा पाने का सबसे बड़ा उपाय है — सेवा। किसी अंधे, गरीब, मज़दूर या बुज़ुर्ग की सप्ताह में कम से कम एक बार निस्वार्थ सेवा करें। यह शनि की कृपा पाने का श्रेष्ठ मार्ग है।
🌹 मेरी शुभकामनाएँ हैं कि शनि देव की कृपा आप सभी पर बनी रहे
सूतक/पातक विचार
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हमारे ऊपर आ रहे कष्टो का एक कारण सूतक के नियमो का पालन नहीं करना भी हो सकता है।
सूतक का सम्बन्ध “जन्म एवं मृत्यु के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है ! जन्म के अवसर पर जो ""नाल काटा"" जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है !
जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता
3 पीढ़ी तक – 10 दिन
4 पीढ़ी तक – 10 दिन
5 पीढ़ी तक – 6 दिन
ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती … वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है !
प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है
प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं !
अपनी पुत्री
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पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का,
ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! और हमे कोई सूतक नहीं रहता है !
नौकर-चाकर
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अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का,
बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं !
पालतू पशुओं का
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घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर हमे 1 दिन का सूतक रहता है !
किन्तु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता !
बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक “अभक्ष्य/अशुद्ध” रहता है !
पातक
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पातक का सम्बन्ध “मरण के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है ! मरण के अवसर पर ""दाह-संस्कार"" में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “पातक” माना जाता है !
मरण के बाद हुई अशुचिता :-
3 पीढ़ी तक – 12 दिन
4 पीढ़ी तक – 10 दिन
5 पीढ़ी तक – 6 दिन
ध्यान दें :- जिस दिन """दाह-संस्कार"" किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से !
यदि घर का कोई सदस्य बाहर/विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता है !
अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है !
गर्भपात
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किसी स्त्री के यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए
घर का कोई सदस्य ""तपस्वी' साधु सन्यासी""" बन गया हो तो, उस साधु सन्त को , उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है ! किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है !
विशेष
किसी अन्य की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि जाननी चाहिए !
घर में कोई "आत्मघात "करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए !
यदि कोई स्त्री अपने पति के मोह/निर्मोह से"आग लगाकर जल मरे," बालक पढाई में फेल होकर या कोई अपने ऊपर दोष देकर "आत्महत्या" कर मरता है तो इनका पातक बारह पक्ष याने 6 महीने का होता है !
उसके अलावा भी कहा है कि जिसके घर में इस प्रकार "अपघात" होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है ! वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है !
जहां आत्महत्या हुई है, उस घर का पानी भी ६ माह तक नहीं पीना चाहिए। एवं अनाचारी स्त्री-पुरुष के हर समय ही पातक रहता है।
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सूतक-पातक की अवधि में “देव-शास्त्र-गुरु” का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं !
इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है ! यहाँ तक की गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है ! दान पेटी मे दान भी नहीं देना चाहिए।
देव-दर्शन, प्रदिक्षणा, जो पहले से याद हैं वो विनती/स्तुति बोलना, भाव-पूजा करना, हाथ की अँगुलियों पर जाप देना शास्त्र सम्मत है !
कहीं कहीं लोग सूतक-पातक के दिनों में मंदिर ना जाकर इसकी समाप्ति के बाद मंदिरजी से गंधोदक लाकर शुद्धि के लिए घर-दुकान में छिड़कते हैं, ऐसा करके नियम से घोनघोर पाप का बंध करते हैं ! मानो या न मानो,
यह सत्य है, नहीं मानने पर दुःख, कष्ट, तकलीफ, होगी
इन्हे समझना इसलिए ज़रूरी है, ताकि अब आगे घर-परिवार में हुए जन्म-मरण के अवसरों पर अनजाने से भी कहीं दोष का उपार्जन ना हो।
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