श्रीमद भगवत गीता जी के श्लोक हर सकते है जीवन के सभी कष्ट और परेशानियाँ
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श्रीमद भगवत गीता जी के श्लोक हर सकते है जीवन के सभी कष्ट और परेशानियाँ |
2. भगवान श्रीकृष्ण की दया:- जिन कुंडलियों
में शनि पर गुरू की दृष्टि हो, उन्हें दूसरे अध्याय का नियमित पाठन करना चाहिये ।
3. शंका का समाधान:- दसवें भाव पर शनि की
दृष्टि होने पर तीसरे अध्याय का पाठन करना चाहिये । इससे जातक को अपने कर्म
क्षेत्र में मंगल और गुरू का सहयोग मिलता है।
4. इष्ट साधना:- जिन जातको का लग्न कमजोर हो
और इष्ट निर्धारित नही हो, उन्हें चातुर्य अध्याय का पाठन करना लाभ दिलाता है। इससें विचारों में
स्थिरता आती है।
5. द्वंद्व का निराकरण:- कुंडली में
नौवें-दसवें भावों में अंतसंबंध होने पर इस अध्याय का पाठ लाभ देगा । दोनो भावों
के स्वामी ग्रह अगर शत्रु हो तों यह अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्हें पांचवें
अध्याय का पाठ करना चाहिये ।
6. समय का बदलाव:- खराब दषा के बाद अच्छी दषा
आने पर जातक यह अवष्य पढें । गुरू और शनि ग्रहों की दषा में बेहतर होती है। छठें
अध्याय का पाठ करें।
7. सांसारिक की समस्या:- मोक्ष का भाव (आठवां
भाव) खराब होने पर सांसारिक पीड़ित रखने लगती है। आठवां भाव नष्ट या पीड़ित होने पर
इस सातवें अध्याय का पाठ लाभ देता है।
8. मृत्यु का भय:- मृत्यु से पहले मृत्यु का
भय आठवें और बारहवें भाव के संबंध से आता है। इस अध्याय का पाठन मृत्यु के भय को
कम या समाप्त करता है।
9. शुभ फल पाने के लिए:- क्षमता के अनुरूप
प्रदर्षन नही कर पा रहे जातक जिनकी कुंडली में लग्नेष, नवमेष और मूल
स्वभाव राषि का संबंध हो, नवम अध्याय का पाठ कर शुभ फल पाने में काम आ सकते है।
10. लग्नेष को मजबूत बनाएं:- गीता के दसवें
अध्याय का पाठन हर जातक को करना चाहिये । इससे जातक का लग्न मजबूत होता है।
11. लाभ का सौदा:- काम करते-करते जातक कभी
उखड़ने लगे तो यह अध्याय उपयोगी सिद्ध होता है । ग्याहरवें यानि लाभ को भाव को
मजबूत बनाने के लिए इस अध्याय का ग्यारहवें का पाठ करना चाहिए ।
12. प्रारब्ध का बंधन:- जातक का की कुंडली में
पांचवा और नौवा भाव कमजोर होने पर ग्याहरवें भाव का पाठन लाभ देता है। नौवे धर्म
के भाव को मजबूत करने के लिए भी इस बारहवें अध्याय का सहारा लिया जा सकता है।
13. दूसरी दुनिया से संबंध:- कुंडली में
चंद्रमा और बारहवें भाव का संबंध होने पर व्यक्ति वैराग्य के बारे में सोचने लगता
है । इस 13वें
अध्याय का पाठ जातक को संसार में रहकर अपनी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए बंधनों से
मुक्त रहने में मदद करता है।
14. अकस्मात लाभ:- आठवें भाव में उच्च का ग्रह
मौजूद होने पर जातक को अचानक लाभ की स्थितियां बनती है । ऐसे में गीता का के
चैदहवें भाव का नियमित पाठन अध्यात्मिक दृष्टि से उम्मीद से अधिक लाभ दिलाने में
सहायक सिद्ध होता है ।
15. संभावनाए:- प्रारब्ध में संचित अच्छे
कर्मो का लाभ लेने के लिए इस अध्याय का पाठन महत्वपूर्ण है । पंचमेष और लग्नेष का
संबंध होने पर इस 15 वें
अध्याय का पाठ करना लाभदायक है।
16. शक्ति संतुलन:- कुंडली में सूर्य और मंगल
खराब स्थिति में हो तो इस 16वें अध्याय का पाठ जातक को लाभ दिला सकता है । यह अध्याय शक्तियों को
संतुलित करने और उनके सही उपयोग के लिए जरूरी है ।
17. राहु की पीड़ा:- राहु की महादषा अथवा कारक ग्रह सहित कुडली में राहु से
पीड़ित होने पर 17वां और 18वां अध्याय लाभ
देता है ।
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