G-B7QRPMNW6J सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति भगवन विष्णु को यह चक्र किसने दिया था ये चलने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंच कर वापस आ जाता है
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सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति भगवन विष्णु को यह चक्र किसने दिया था ये चलने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंच कर वापस आ जाता है

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सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति भगवन विष्णु को यह चक्र किसने दिया था

Origin of Sudarshan Chakra: Who gave this Chakra to Lord Vishnu? After walking, it returns after reaching its target
Origin of Sudarshan Chakra Who gave this Chakra to Lord Vishnu


सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति यह कभी नष्ट नहीं होता:-

सुदर्शन चक्र भगवन विष्णु का शस्त्र है।यह चक्र एक ऐसा अस्त्र है ,जो चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंच कर वापस आ जाता है। यानि यह चक्र कभी नष्ट नहीं होता।

इस चक्र की उत्पत्ति की कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। कुछ लोगों का मानना है,कि ब्रह्मा,विष्णु,महेश,ब्रहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इस की उत्पत्ति की है।

यह भी माना जाता है,कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है।

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सुदर्शन दो शब्दों से जुड़ क्र बना है, सु यानि शुभ और दर्शन।चक्र शब्द चरुहु और करूहु शब्दों के मेल से बना है,जिस का अर्थ है गति (हमेशा चलने वाला)।

यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इस की ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इस में अत्यंत विषैले किस्म के विष का उपयोग किया गया था।

सुदर्शन चक्र से जुडी एक कहानी यह भी है ,कि इस का निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा किया गया है:-

विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संजना का विवाह सूर्य देव के साथ किया!परन्तु संजना सूर्य देव की रोशनी तथा गर्मी के कारण उन के समीप ना जा सकी।यह बात जब विश्वकर्मा को पता चली तब उन्होंने सूर्य की चमक को थोड़ा कम कर दिया और सूर्य की बाकि बची ऊर्जा से त्रिशूल,पुष्पक विमान तथा सुदर्शन चक्र का निर्माण किया।

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सुदर्शन चक्र शत्रु पर गिराया नहीं जाता यह प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है।यह चक्र किसी भी चीज़ को समाप्त करने की क्षमता रखता है|

माना जाता है,कि कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को सुदर्शन चक्र की सहायता से उठाया था।श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल सूर्यास्त दिखने के लिया किया था! जिसकी मदद से जयद्रथ का वध अर्जुन द्वारा हो पाया।

सब कुछ अच्छा न होने पर भी क्यो कही जाती है ! ये कहावत !

इस चक्र ने देवी सती के शरीर के ५१ हिस्से कर भारत में जगह-जगह बिखेर दिए और इन जगहों को शक्ति-पीठ के नाम से जाना जाता है।

यह तब हुआ जब देवी सती ने अपने पिता के घर हो रहे यग्न में खुद को अग्नि में जला लिया।तब भगवान शिव शोक में आकर सती के प्राण-रहित शरीर को उठाए घूमते रहे।

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सुदर्शन चक्र की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है ,जैसे वक़्त, सूर्य और ज़िंदगी कभी रूकती नहीं हैं ,वैसे ही इस का भी कोई अंत नहीं कर सकता।यह परम्-सत्य का प्रतीक है।

हमारे शरीर में भी कई तरह के चक्र मौजूद है!जिस में अत्यंत ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करने की क्षमता है।योग उपनिषद् में सहस्रार चक्र के आलावा ६ चक्र और हैं-मूलधारा,स्वाधिष्ठान,मणिपुर,अनाहत,विसुद्धा और अजना।

श्री मंदिर के रत्न सिंहासन के ४ देवताओं को चतुर्द्धामूर्थी कहा जाता जिन में सुदर्शन चक्र को भी देव माना गया है.

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