🔱 छिन्नमस्ता (Chinnamasta) मूल मन्त्र:-
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥ रूद्राक्ष माला से दस माला से प्रतिदिन जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
🔱 क्यों मनाते हैं प्राकट्य दिवस:
शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है।
🔱 छिन्नमस्तका (Chinnamasta) साधना:
चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है। शरीर रोग मुक्त हो जाते हैं। सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं। यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है।
🔱 छिन्नमस्ता (Chinnamasta) मा का स्वरूप:-
माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। इस पविवर्तन शील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है। इनका सिर कटा हुआ और इनके कबंध से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं। इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन है। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है। इन्हें चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। जिन्हें अजया और विजया भी कहा जाता है। युद्ध दैत्यों को परास्त करने के बाद भी जब सखियों की रुधिर पिपासा शांत नहीं हुई तो देवी ने ही उनकी रुधिर पिपासा शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर रुधिर पिलाया था। इसीलिए माता को छिन्नमस्ता नाम से पुकारा जाता है।
🙏🌹👉देवी छिन्नमस्ता स्तुति मंत्र
छिन्नमस्ता महाविद्या दस महाविद्याओं में पांचवें स्थान की साधना मानी जाती हैं। माँ छिन्नमस्ता स्तुति पढ़ने से साधक जीवन में सभी दृष्टियों से सुखी रहता है। साधक का शरीर स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक बन जाता है। भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है।
🙏🌹👉देवी छिन्नमस्ता पौरिणीक कथा
एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय सेदूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान कीइच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हमसनान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं सनान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नेंपुनह देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए,
देवी सनान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इसपर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गलेसे रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटालो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करनेलगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी,
देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिवका रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया। देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है।
⛅🌞🌹✍Chhinnamasta Jayanti 2025: कौन हैं मां छिन्नमस्ता और उन्होंने अपना सिर क्यों काट लिया था? पढ़ें पौराणिक कथा
🌹🔹👉Chhinnamasta Jayanti 2025: मां छिन्नमस्ता की कथा
Chhinnamasta Jayanti 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मां छिन्नमस्ता की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह जयंती आज यानी 11 मई को मनाई जा रही है। देवी छिन्नमस्ता, मां पार्वती का एक अत्यंत उग्र और रौद्र रूप मानी जाती हैं। ये दस महाविद्याओं में छठवें स्थान पर हैं और तांत्रिक साधना में इनका बहुत महत्व है। मां का यह रूप भले ही देखने में भीषण हो, लेकिन इसके पीछे भी जगत कल्याण की भावना ही छिपी है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर मां छिन्नमस्ता ने अपना सिर क्यों काट लिया था। यहां पढ़ें पौराणिक कथा…
🌹🔹👉कौन हैं देवी छिन्नमस्ता?
मां छिन्नमस्ता को प्रचंड चण्डिका के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें काली कुल से संबंधित माना जाता है और तांत्रिकों, अघोरियों और योगियों द्वारा विशेष रूप से पूजा जाता है। देवी छिन्नमस्ता के शरीर से उनका सिर अलग होता है, और धड़ से तीन रक्त की धाराएं बहती हुई दिखाई देती हैं। यह स्वरूप आत्मबलिदान, त्याग और परोपकार का प्रतीक है।
🌹🔹👉मां छिन्नमस्ता की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार एक बार मां पार्वती अपनी दो सहचरियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं। स्नान के दौरान सहचरियों को तेज भूख लगने लगी। उन्होंने पार्वतीजी से भोजन की मांग की, लेकिन देवी पार्वती जल-क्रीड़ा में लीन थीं, इसलिए उन्होंने इसपर ध्यान नहीं दिया। काफी समय बीतने के बाद जब सहचरियों की भूख असहनीय हो गई, तो उन्होंने कहा, मां तो अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए रक्त तक दे देती है, लेकिन आप हमारी सुध नहीं ले रहीं। यह सुनकर मां पार्वती अत्यंत क्रोधित हो उठीं। उन्होंने तत्काल अपने खड्ग से अपना सिर काट लिया। सिर कटते ही तीन रक्त की धाराएं निकलीं, दो धाराएं उन्होंने अपनी भूखी सहचरियों को दीं और तीसरी धार से स्वयं की तृप्ति की। इसी घटना के कारण देवी पार्वती का यह रूप ‘छिन्नमस्ता’ कहलाया।
🌹🔹👉छिन्नमस्ता प्राकट्य दिवस क्यों मनाया जाता है?
ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन मां छिन्नमस्ता ने अपना सिर काटकर बलिदान दिया, वह दिन वैशाख शुक्ल चतुर्दशी का था। इसलिए हर साल इसी तिथि को उनकी जयंती मनाई जाती है। यह दिन त्याग, बलिदान और परोपकार की भावना को समर्पित होता है। मां छिन्नमस्ता का यह रूप हमें सिखाता है कि दूसरों की सहायता के लिए स्वयं का भी त्याग करना पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। इस दिन देवी पार्वती के छिन्नमस्ता रूप की पूजा और उपासना की जाती है।
🌹🔹👉छिन्नमस्ता पूजन का महत्व
मां छिन्नमस्ता की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधना से जुड़ी होती है। कहा जाता है कि इनकी विधिवत पूजा करने से हर प्रकार की चिंता समाप्त होती है, इसलिए इन्हें ‘चिंतपूर्णी देवी’ भी कहा जाता है।
🙏🌹👉स्तुति मंत्र
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:।
🔱🙏🌹👉 छिन्नमस्तिके (Chinnamasta) मंदिर:-
कामाख्या के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है। झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर है। रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है। यह मंदिर लगभग 6000 साल पुराना बताया जाता है।
🔱🙏🌹👉 छिन्नमस्ता मंत्र (Chinnamasta) "ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा" है। यह मंत्र देवी छिन्नमस्ता की पूजा के लिए उपयोग किया जाता है।
छिन्नमस्ता (Chinnamasta) मंत्र के फायदे:
🙏🌹👉कार्य सिद्धि:
इस मंत्र का जाप करने से कार्य सिद्ध होते हैं, अपार लक्ष्मी मिलती है और जीवन में बेहतरी आती है.
🙏🌹👉स्वास्थ्य लाभ:
यह मंत्र अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है और वाणी की सिद्धि भी देता है.
🙏🌹👉राहु से मुक्ति:
देवी छिन्नमस्ता राहुकृत पीड़ा से मुक्ति दिला सकती हैं.
🙏🌹👉भय और चिंता से मुक्ति:
यह मंत्र मन से भय और चिंता को दूर करता है.
🙏🌹👉छिन्नमस्ता (Chinnamasta) मंत्र का जाप:
इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए चार लाख जाप बताया गया है।
आप आज से शुरू करके अगली शुक्ल चतुर्दशी तक चार लाख जप करने की सोचें, और जाप का दशांश हवन, दशांश तर्पण और दशांश मार्जन करें.
जाप करते समय काले नमक की डली बाएं हाथ में और दाएं हाथ से काले हकीक, अष्टमुखी रुद्राक्ष माला, या लाजवर्त की माला से मंत्र का जाप करें.
"जय जय श्री हरि"
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