माँ कालरात्रि की पूजा विधि
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। उसके बाद जहाँ पर घट स्थापना या देवी के स्वरुप की स्थापना की है, वहां पर गंगाजल से जमीन को पवित्र करके माँ के सामने बैठ जाएं और माँ का ध्यान करते हुए माँ कालरात्रि के इस मंत्र का जाप करें।
करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालरात्रिं करालीं च विद्युन्मालाविभूषिताम् ॥

अब माँ कालरात्रि के सामने धूप-दीप जलाएँ। माँ कालरात्रि को लाल रंग अति प्रिय है। आज के दिन माँ को गुड़ का भोग लगाएं और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्न होकर माँ अपने भक्तों की सभी विपदाओं का नाश करती हैं। माँ को फूल अर्पित करते हुए श्री मंदिर पर माँ कालरात्रि की आरती सुनते हुए माता रानी की आरती उतारें।
करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालरात्रिं करालीं च विद्युन्मालाविभूषिताम् ॥
यह मातारानी का ध्यान मंत्र है, जिससे भक्तजन माँ कालरात्रि की आराधना का प्रारम्भ कर सकते है।
तो मित्रों ये थी माँ कालरात्रि की पूजाविधि के बारे में जानकारी। इसी के साथ इस दिन शाम को माँ की कथा पढ़ें और माँ का स्तोत्र पाठ करें। ये है माँ कालरात्रि का स्तोत्र पाठ।
ह्रीं कालरात्रिः श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती ।
कालमाता कलिदर्पघ्नी कपदींशकृपन्विता ॥
कामबीजजपानन्दा कामबीजस्वरूपिणी ।
कुमतिघ्नी कुलीनाऽऽर्तिनशिनी कुलकामिनी ॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्रवर्णेन कालकण्टकघातिनी ।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा ॥
यह माँ कालरात्रि का स्तोत्र पाठ है। जिसे नवरात्रि के दौरान करने से माँ कालरात्रि की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। ऐसे ही माँ कालरात्रि का कवच का पाठ भी भक्तजनों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
श्री मंदिर पर देखना ना भूलें माँ कालरात्रि की कथा।
माँ कालरात्रि की कथा
प्राचीनकाल की बात है एक बार एक रक्तबीज नाम का राक्षस हुआ करता था। वो हमेशा प्रजा और देवताओं को भी परेशान कर दिया था। उसकी विशेषता यह थी कि जहां भी उसके रक्त की एक बूंद गिरती वहां उसी के जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाता। त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे।

भगवान शिव जानते थे कि माता पार्वती इस राक्षस का वध कर सकती हैं। भगवान शिव के अनुरोध करने पर मां पार्वती ने अपनी योग शक्ति के तेज से देवी के रूप की रचना की जिनका शरीर काला होने की वजह से माँ का नाम कालरात्रि पड़ा।
इसके बाद मां कालरात्रि ने राक्षस रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को भूमी पर गिरने से पहले ही अपने मुंह में भर लिया। अन्य दानवों का भी गला काटकर मां ने उनका वध किया और प्रजा तथा देवताओं को राक्षसों के आतंक से बचाया।
श्री मंदिर पर देखना ना भूलें माँ महागौरी के बारे में।
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा करने के लिए सुबह सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। उसके बाद जहाँ पर घट स्थापना या देवी के स्वरुप की स्थापना की है, वहां पर गंगाजल से जमीन को पवित्र करके माँ के सामने बैठ जाएं और माँ का ध्यान करते हुए माँ कालरात्रि के इस मंत्र का जाप करें।
करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालरात्रिं करालीं च विद्युन्मालाविभूषिताम् ॥

अब माँ कालरात्रि के सामने धूप-दीप जलाएँ। माँ कालरात्रि को लाल रंग अति प्रिय है। आज के दिन माँ को गुड़ का भोग लगाएं और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्न होकर माँ अपने भक्तों की सभी विपदाओं का नाश करती हैं। माँ को फूल अर्पित करते हुए श्री मंदिर पर माँ कालरात्रि की आरती सुनते हुए माता रानी की आरती उतारें।
करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालरात्रिं करालीं च विद्युन्मालाविभूषिताम् ॥
यह मातारानी का ध्यान मंत्र है, जिससे भक्तजन माँ कालरात्रि की आराधना का प्रारम्भ कर सकते है।
तो मित्रों ये थी माँ कालरात्रि की पूजाविधि के बारे में जानकारी। इसी के साथ इस दिन शाम को माँ की कथा पढ़ें और माँ का स्तोत्र पाठ करें। ये है माँ कालरात्रि का स्तोत्र पाठ।
ह्रीं कालरात्रिः श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती ।
कालमाता कलिदर्पघ्नी कपदींशकृपन्विता ॥
कामबीजजपानन्दा कामबीजस्वरूपिणी ।
कुमतिघ्नी कुलीनाऽऽर्तिनशिनी कुलकामिनी ॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्रवर्णेन कालकण्टकघातिनी ।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा ॥
यह माँ कालरात्रि का स्तोत्र पाठ है। जिसे नवरात्रि के दौरान करने से माँ कालरात्रि की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। ऐसे ही माँ कालरात्रि का कवच का पाठ भी भक्तजनों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
श्री मंदिर पर देखना ना भूलें माँ कालरात्रि की कथा।
माँ कालरात्रि की कथा
प्राचीनकाल की बात है एक बार एक रक्तबीज नाम का राक्षस हुआ करता था। वो हमेशा प्रजा और देवताओं को भी परेशान कर दिया था। उसकी विशेषता यह थी कि जहां भी उसके रक्त की एक बूंद गिरती वहां उसी के जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाता। त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे।

भगवान शिव जानते थे कि माता पार्वती इस राक्षस का वध कर सकती हैं। भगवान शिव के अनुरोध करने पर मां पार्वती ने अपनी योग शक्ति के तेज से देवी के रूप की रचना की जिनका शरीर काला होने की वजह से माँ का नाम कालरात्रि पड़ा।
इसके बाद मां कालरात्रि ने राक्षस रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को भूमी पर गिरने से पहले ही अपने मुंह में भर लिया। अन्य दानवों का भी गला काटकर मां ने उनका वध किया और प्रजा तथा देवताओं को राक्षसों के आतंक से बचाया।
श्री मंदिर पर देखना ना भूलें माँ महागौरी के बारे में।
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