माँ कात्यायनी की कथा
नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायनी की पूजा के बाद कथा पढ़ने मात्र से ही आपको पुण्य की प्राप्ति होती है और माँ अपने भक्तों से प्रसन्न होती है।
प्राचीनकाल की बात है, महर्षि कत नाम के एक महान् ऋषि थे जिनके पुत्र का नाम ऋषि कात्या था। विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन का जन्म उन्हीं के गोत्र में हुआ था। भगवती की पूजा करते हुए उन्होंने कई वर्षों तक कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उनके घर में माता भगवती, पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती उनकी तपस्या से प्रसन्न हुई और उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।

देवी उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी की पूजा सबसे पहले महर्षि कात्यायन ने की थी। 3 दिनों तक महर्षि जी की पूजा स्वीकार करने के बाद देवी ने महर्षि जी से विदा लिया। जिसके बाद उन्होंने महिषासुर का वध किया और विजय प्राप्त की। मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं साथ ही उन्हें अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त करती है।
श्री मंदिर पर देखना ना भूलें माँ कालरात्रि के स्वरूप के बारे में।
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